ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 4
इन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑र्षति ति॒रो वारा॑ण्य॒व्यया॑ । हरि॒र्वाज॑मचिक्रदत् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्दुः॑ । हि॒न्वा॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । ति॒रः । वारा॑णि । अ॒व्यया॑ । हरिः॑ । वाज॑म् । अ॒चि॒क्र॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्दुर्हिन्वानो अर्षति तिरो वाराण्यव्यया । हरिर्वाजमचिक्रदत् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्दुः । हिन्वानः । अर्षति । तिरः । वाराणि । अव्यया । हरिः । वाजम् । अचिक्रदत् ॥ ९.६७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दुः) स्वयम्प्रकाशः (हिन्वानः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (तिरः) अज्ञानानि तिरस्कृत्य (वाराणि) वरणीयानि (अव्यया) नित्यज्ञानानि (अर्षति) ददाति। (हरिः) पापहारकः परमात्मा ज्ञानदानाय (वाजम्) बलपूर्वकम् (अचिक्रदत्) अस्मानाह्वयति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दुः) स्वयंप्रकाश (हिन्वानः) सर्वप्रेरक परमात्मा (तिरः) अज्ञान को तिरस्कार करके (वाराणि) वरण करने योग्य (अव्यया) नित्य ज्ञानों को (अर्षति) देता है। (हरिः) पूर्वोक्त परमेश्वर ज्ञान देने के लिए (वाजम्) बलपूर्वक (अचिक्रदत्) आह्वान करता है ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में अज्ञान को निवृत्त करके ईश्वर के सद्गुणों के धारण का उपदेश किया गया है ॥४॥
विषय
हरिः वाजम् अचिक्रदत्
पदार्थ
[१] (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (हिन्वानः) = शरीर में प्रेरित किया जाता हुआ (तिरः) = तिरोहित रूप में, छिपे रूप में, (अर्षति) = हमें प्राप्त होता है । रुधिर के अन्दर व्याप्त हुआ- हुआ यह सोम दिखता तो न ही, पर रुधिर में सर्वत्र होता है। इस प्रकार यह उन्हीं वाराणि इन्द्रिय द्वारों को [वाराणि: द्वाराणि] प्राप्त होता है, जो कि (अव्यया) = [अवि अय्] विविध विषयों की ओर जानेवाले नहीं हैं। जिस समय हम इन्द्रिय द्वारों को विषयों से रोकते हैं, इन्द्रियों को विषयों में नहीं जाने देते, तभी ये सोमकण शरीर में तिरोहित होकर रहते हैं । [२] (हरिः) = यह सब अशुभों का हरण करनेवाला सोम वाजं (अचिक्रदत्) = शक्ति को पुकारता है, अर्थात् जीवन का लक्ष्य शक्ति-सम्पादन को बना देता है। इस सुरक्षित सोम से शक्ति-सम्पन्न होकर हम सब बुराइयों से ऊपर उठते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- इन्द्रियों को विषयों में भटकने से बचायेंगे तो सोम हमारे अन्दर तिरोहित रूप में निवास करेगा। यह हमें शक्ति सम्पन्न बनाकर सब कष्टों से बचायेगा ।
विषय
उत्तम विद्वान् उपदेष्टा के कर्त्तव्य उनके अनेकानेक कर्त्तव्य।
भावार्थ
(हिन्वानः इन्दुः) वृद्धि प्राप्त करता हुआ ऐश्वर्ययुक्त दयालु तेजस्वी पुरुष (अव्यया वाराणि) अवि अर्थात् स्नेहादि के बने नाना वरणीय, मनलुभाने वाले उत्तम प्रलोभनों को भी (अति अर्षति) पार कर जाता है। वह (हरिः) अज्ञान दूर करने हारा (वाजम् अचिक्रदत्) ज्ञान का उपदेश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Invoked, exalted and inspiring, divine Soma manifests and vibrates, and across all obstructions gives cherished and imperishable gifts. The spirit that eliminates all want and suffering exhorts us to action and victory.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात अज्ञान निवृत्त करून ईश्वराच्या सद्गुणांना धारण करण्याचा उपदेश केलेला आहे. ॥४॥
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