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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 16
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराडार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑स्व सोम म॒न्दय॒न्निन्द्रा॑य॒ मधु॑मत्तमः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । सो॒म॒ । म॒न्दय॑न् । इन्द्रा॑य । मधु॑मत्ऽतमः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व सोम मन्दयन्निन्द्राय मधुमत्तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । सोम । मन्दयन् । इन्द्राय । मधुमत्ऽतमः ॥ ९.६७.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) जगज्जनक परमात्मन् ! त्वम् (मधुमत्तमः) अत्यानन्दमयोऽसि। अतः (मन्दयन्) आनन्दयन् (इन्द्राय) उद्योगिनं (पवस्व) मङ्गलमयभावैः पवित्रय ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! आप (मधुमत्तमः) अत्यन्त आनन्दमय हैं, अतः (मन्दयन्) आनन्दित करते हुए (इन्द्राय) उद्योगी के लिए (पवस्व) मङ्गलमय भावों से पवित्र करिए ॥१६॥

    भावार्थ

    उद्योगी पुरुष को परमात्मा उत्साहित करके पवित्र करता है ॥१६॥

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    विषय

    मन्दयन्-मधुमत्तमः

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (मन्दयन्) = हमें आनन्दित करता हुआ अथवा प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाला बनाता हुआ पवस्व प्राप्त हो। [२] तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को पैदा करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारे जीवन को आनन्दमय व मधुर बनाता है ।

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    विषय

    उसका अन्नादि ऋद्धि के लिये उद्योग।

    भावार्थ

    तू (मधुमत्-तमः) अति मधुर स्वभाव वा जल अन्न और बल का बड़ा भारी स्वामी होकर हे (सोम) शासक ! तू (मन्दयन्) सब को प्रसन्न करता हुआ (इन्द्राय पवस्व) ऐश्वर्ययुक्त पद को प्राप्त करने के लिये आगे बढ़।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, creative spirit, highest honey sweet of divine ecstasy, flow abundant, pure and purifying, energising and rejoicing for Indra, the divine soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    उद्योगी पुरुषाला परमात्मा उत्साहित करून पवित्र करतो. ॥१६॥

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