ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 11
ऋषिः - अत्रिः
देवता - पवमानः सोमः पूषा वा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒यं सोम॑: कप॒र्दिने॑ घृ॒तं न प॑वते॒ मधु॑ । आ भ॑क्षत्क॒न्या॑सु नः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । सोमः॑ । क॒प॒र्दिने॑ । घृ॒तम् । न । प॒व॒ते॒ । मधु॑ । आ । भ॒क्ष॒त् । क॒न्या॑सु । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं सोम: कपर्दिने घृतं न पवते मधु । आ भक्षत्कन्यासु नः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । सोमः । कपर्दिने । घृतम् । न । पवते । मधु । आ । भक्षत् । कन्यासु । नः ॥ ९.६७.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयं सोमः) प्रागुक्तः परमेश्वरः (कपर्दिने) कर्मयोगिने (घृतम्) स्वप्रेम्णा (मधु न) मधुवत् (पवते) मधुरयति। अथ च (नः) अस्मान् (कन्यासु) कमनीयपदार्थेषु (आभक्षत्) गृह्णाति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयं सोमः) पूर्वोक्त परमात्मा (कपर्दिने) कर्मयोगी को (घृतं) अपने प्रेम से (मधु न) मधु के समान (पवते) मधुर बनाता है और (नः) हम लोगों को (कन्यासु) कमनीय पदार्थों में (आ भक्षत्) ग्रहण करता है ॥११॥
भावार्थ
परमात्मा कर्मयोगियों को कमनीय पदार्थों का प्रदान करता है ॥११॥
विषय
आभक्षत् कन्यासु नः
पदार्थ
[१] 'कपर्दी' शब्द का अर्थ है 'कस्य परा [ पूरणेन] दायति' मस्तिष्क के पूरण से जो अपना शोधन करता है, मस्तिष्क को ज्ञान से परिपूर्ण करता हुआ जीवन को जो शुद्ध बनाता है, उस कपर्दिने कपर्दी के लिये (अयं सोमः) = यह सोम (घृतं न) = घृत के समान (मधु पवते) = मधु को भी प्राप्त कराता है। सुरक्षित सोम ज्ञानदीप्ति [घृ दीप्तौ] का कारण बनता है और जीवन में माधुर्य को भर देता है । [२] इस प्रकार यह सोम (नः) = हमें (कन्यासु) = सब दीप्तियों में (आभक्षत्) = भागी बनाये ।
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञान को ही अपना ध्येय बना लेने पर हम सोम का रक्षण कर पाते हैं। यह हमें ज्ञान दीप्ति व माधुर्य को प्राप्त कराता है ।
विषय
वही मधुपर्क योग्य होता है।
भावार्थ
(अयं) यह (सोमः) उत्तम विद्वान्, वधू की कामना करने चाला, (कपर्दिने) उत्तम मुकुट से सजने वाले राजा के योग्य (मधु घृतं न पवते) मधुर, आनन्ददायक खाद्य पदार्थ, मधुपर्क और जल, अर्ध्य पाद्य आदि प्राप्त करता है वह (नः कन्यासु आभक्षत्) हमारी कन्याओं के निमित्त हमें प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May this honey sweet soma ecstasy of divinity flow and bless the veteran scholar as well as the fresh graduate as ghrta flows to the vedi in yajna, and inspire us too to join the scholars with absolute dedication and commitment in our cherished pursuits of knowledge, research and advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कर्मयोग्यांसाठी कमनीय पदार्थ प्रदान करतो. ॥११॥
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