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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गोतमोः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    क॒कु॒हः सो॒म्यो रस॒ इन्दु॒रिन्द्रा॑य पू॒र्व्यः । आ॒युः प॑वत आ॒यवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒कु॒हः । सो॒म्यः । रसः॑ । इन्दुः॑ । इन्द्रा॑य । पू॒र्व्यः । आ॒युः । प॒व॒ते॒ । आ॒यवे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ककुहः सोम्यो रस इन्दुरिन्द्राय पूर्व्यः । आयुः पवत आयवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ककुहः । सोम्यः । रसः । इन्दुः । इन्द्राय । पूर्व्यः । आयुः । पवते । आयवे ॥ ९.६७.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ककुहः) महान् (“ककुह इति महन्नामसु पठितम्” नि० ३।१।३) (सोम्यः) सौम्यस्वभावः (इन्दुः) समस्तैश्वर्ययुक्तः (आयुः) सर्वगः (रसः) रसस्वरूपः (पूर्व्यः) अनादिः परमेश्वरः (आयवे) सर्वत्र गन्तारं (इन्द्राय) कर्मयोगिने (पवते) पवित्रयति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ककुहः) महान् (सोम्यः) सौम्य स्वभाव (इन्दुः) सर्वैश्वर्यसंपन्न (आयुः) सर्वत्र गन्ता (रसः) रसस्वरूप (पूर्व्यः) अनादि परमात्मा (आयवे) सर्वत्र गतिवाले (इन्द्राय) कर्मयोगी को (पवते) पवित्र करता है ॥८॥

    भावार्थ

    इन्द्र शब्द के अर्थ यहाँ केवल कर्मयोगी नहीं, किन्तु कर्मयोगी, ज्ञानयोगी दोनों के हैं। तात्पर्य यह है कि जो पुरुष कर्म वा ज्ञान द्वारा परमात्मा को उपलब्ध करना चाहते हैं, उनके लिए परमात्मा सदैव सुलभ है ॥८॥

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    विषय

    'ककुह' सोम

    पदार्थ

    [१] (सोम्यः) = सोम सम्बन्धी (रसः) = रस (ककुहः) = सर्वश्रेष्ठ है, सर्वोत्तम रस यही है, यही अपने रक्षक को उन्नति के शिखर पर पहुँचाता है । (इन्दुः) = यह शक्तिशाली बनाता है। (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पूर्व्यः) = यह पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम है । [११] (आयुः) = यह जीवन है (आयवे) = गतिशील पुरुष के लिये पवते प्राप्त होता है। गतिशील पुरुष ही इसका अपने में रक्षण कर पाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह सोम 'इन्द्र, पूर्व्य व आयु' है। यही हमें सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाता है।

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    विषय

    वह प्रशास्ता, इन्द्रपद पाकर सर्वोपकारी हो।

    भावार्थ

    (ककुहः) सर्वश्रेष्ठ (सोम्यः) प्रशास्ता पद के योग्य (रसः) बलवान् (इन्दुः) ऐश्वर्यवान (पूर्व्यः) पूर्व विद्वान् एवं शक्ति से पूर्ण जनों से उपदिष्ट और सत्कार पाकर (इन्द्राय पवते) ऐश्वर्ययुक्त पद को प्राप्त करने के लिये आगे बढ़ता है और वह स्वयं (आयुः) श्रेष्ठ मनुष्य होकर (आयवे) मनुष्य मात्र के उपकार के लिये हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    High, exhilarating and living nectar of eternal Soma bliss ever vibrant in nature, flows to the dedicated heart of the celebrant for his honour and excellence in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    इन्द्र शब्दाचा अर्थ येथे केवळ कर्मयोगी नाही, तर कर्मयोगी व ज्ञानयोगी दोन्ही आहे. तात्पर्य हे की जो पुरुष कर्म किंवा ज्ञानाद्वारे परमेश्वराला उपलब्ध करू इच्छितात त्यांच्यासाठी परमात्मा सुलभ आहे. ॥८॥

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