ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 26
ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा
देवता - अग्निर्ग्निर्वा सविता च
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्रि॒भिष्ट्वं दे॑व सवित॒र्वर्षि॑ष्ठैः सोम॒ धाम॑भिः । अग्ने॒ दक्षै॑: पुनीहि नः ॥
स्वर सहित पद पाठत्रि॒ऽभिः । त्वम् । दे॒व॒ । स॒वि॒तः॒ । वर्षि॑ष्ठैः । सो॒म॒ । धाम॑भिः । अग्ने॑ । दक्षैः॑ । पु॒नी॒हि॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिभिष्ट्वं देव सवितर्वर्षिष्ठैः सोम धामभिः । अग्ने दक्षै: पुनीहि नः ॥
स्वर रहित पद पाठत्रिऽभिः । त्वम् । देव । सवितः । वर्षिष्ठैः । सोम । धामभिः । अग्ने । दक्षैः । पुनीहि । नः ॥ ९.६७.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 26
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्ने) ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (सवितः) हे सर्वोत्पादक ! (देव) दिव्यगुणसम्पन्न परमेश्वर ! (त्वम्) त्वं (त्रिभिः) त्रिभिः (धामभिः) शरीरैः (वर्षिष्ठैः) श्रेष्ठैस्तथा (दक्षैः) दक्षतायुक्तैः (सोम) हे परमात्मन् ! (नः) अस्मान् (पुनीहि) पवित्रय ॥२६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) परमात्मन् ! (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप ! (सवितः) हे सर्वोत्पादक ! (देव) हे दिव्यगुणसंपन्न परमात्मन् ! (त्वं) आप (त्रिभिः) तीन (धामभिः) शरीरों से (वर्षिष्ठैः) जो श्रेष्ठ हैं तथा (दक्षैः) दक्षतायुक्त हैं, उनसे (नः) हम लोगों को (पुनीहि) पवित्र करिए ॥२६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों शरीरों के शुद्धि की प्रार्थना है। प्रलयकाल में जीवात्मा जब प्रकृतिलीन होकर रहता है, उसका नाम कारणशरीर है तथा जिसके द्वारा जन्मान्तरों को प्राप्त होता है, उसका नाम सूक्ष्मशरीर है और तीसरा स्थूलशरीर है। इन तीनों शरीरों की पवित्रता का उपदेश यहाँ किया गया है ॥२६॥
विषय
त्रिभिः धामभिः
पदार्थ
[१] हे (देव) = प्रकाशमय (सवितः) = प्रेरक प्रभो ! (त्वम्) = आप (त्रिभिः) = तीनों (वर्षिष्ठैः) = अत्यन्त वृद्धतम [बढ़े हुए] (सोमधामभिः) = सोम [वीर्यशक्ति] से जनित तेजों से (नः) = हमें (पुनीहि) = पवित्र करिये । सोमरक्षण से शरीर में उत्पन्न हुआ हुआ तेज व वीर्य शरीर को नीरोग बनाता है। मन में उत्पन्न हुआ हुआ ओज व बल हृदय को पवित्र करता है और बुद्धि में उत्पन्न हुआ हुआ ज्ञान उसे प्रकाशमय बनाता है। [२] हे अग्ने अग्रणी प्रभो ! आप दक्षैः शरीर, मन व बुद्धि के बलों से [न: पुनीहि ] हमें पवित्र जीवनवाला बनाइये ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु कृपा से सोमरक्षण के द्वारा हमें शरीर, मन व बुद्धि का बल प्राप्त हो, इससे हमारा जीवन पवित्र बने ।
विषय
तेजस्वी ज्ञानी लोग सबको पवित्र करें।
भावार्थ
हे (देव सवितः) तेजस्विन्, ज्ञानप्रद, सर्वप्रकाशक, सर्वोत्पादक प्रभो ! हे (सोम) सर्वाध्यक्ष ! हे (अग्ने) सर्वाग्रणी ज्ञानवन् ! तू (त्रिभिः दक्षैः वर्षिष्ठैः धामभिः) पापों को भस्म करने वाले, सब सुखों के देने वाले, तीनों तेजों से (नः पुनीहि) हमें पवित्र कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Savita, creator, Soma, energiser, and Agni, illuminator, energise, vitalise and illuminate us with your highest all three powers and potentials of light, purity and vitality. Bless us in the gross, subtle and causal bodies.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात सूक्ष्म, स्थूल व कारण या तीन शरीरांच्या शुद्धीची प्रार्थना केलेली आहे. प्रलय काळात जीवात्मा जेव्हा प्रकृतिलीन होऊन राहतो त्याचे नाव कारण शरीर आहे व ज्याच्या द्वारे जन्मांतर प्राप्त होते त्याचे नाव सूक्ष्मशरीर आहे व तिसरे स्थूल शरीर आहे. या तिन्ही शरीरांच्या पवित्रतेचा येथे उपदेश केलेला आहे. ॥२६॥
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