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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं सु॑ष्वा॒णो अद्रि॑भिर॒भ्य॑र्ष॒ कनि॑क्रदत् । द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॑मुत्त॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सु॒स्वा॒नः । अद्रि॑ऽभिः । अ॒भि । अ॒र्ष॒ । कनि॑क्रदत् । द्यु॒ऽमन्त॑म् । शुष्म॑म् । उ॒त्ऽत॒मम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सुष्वाणो अद्रिभिरभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सुस्वानः । अद्रिऽभिः । अभि । अर्ष । कनिक्रदत् । द्युऽमन्तम् । शुष्मम् । उत्ऽतमम् ॥ ९.६७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (त्वम्) भवान् (कनिक्रदत्) वेदवाणीभिः (सुष्वाणः) स्तूयमानोऽस्ति। एवम्भूतस्त्वं (द्युमन्तम्) दीप्तिमत् (उत्तमम्)   सर्वोत्कृष्टं (शुष्मम्) बलं (अद्रिभिः) स्वकीयादरणीयशक्तिभिः (अभ्यर्ष) प्रापय ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्वं) आप (कनिक्रदत्) वेदरूपी वाणियों द्वारा (सुष्वाणः) स्तूयमान हैं। (द्युमन्तं) दीप्तिवाले (उत्तमं) सबसे अच्छे (शुष्मं) बल को (अद्रिभिः) अपने आदरणीय शक्तियों से (अभ्यर्ष) प्राप्त कराइये ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा वेदवाणियों के द्वारा ज्ञानरूपी बल को प्रदान करता है ॥३॥

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    विषय

    घुमान् शुष्म

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! (अद्रिभि:) = [adore] प्रभु के उपासकों से (सुष्वाणः) = उत्पन्न किया जाता हुआ (त्वम्) = तू (कनिक्रदत्) = प्रभु का आह्वान करता हुआ, हमारी वृत्ति को और अधिक प्रभु-प्रवण करता हुआ, (द्युमन्तम्) = ज्योतिर्मय (उत्तमं शुष्मम्) = उत्तम बल को अभ्यर्ष हमें प्राप्त करा । [२] प्रभु की उपासना से, विषय-वासनाओं से बचकर हम सोम का रक्षण करते हैं। यह सोम हमें और अधिक प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाला बनाता है। उस समय हमें उत्कृष्ट ज्ञान की ज्योति से युक्त बल की प्राप्ति होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञान व बल को प्राप्त कराता है। इस ज्योतिर्मय बल को प्राप्त करनेवाला यह व्यक्ति 'कश्यप' है, ज्ञानी है [पश्यकः] । यह सोम-स्तवन करता हुआ कहता है-

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    विषय

    सेनापति का वर्णन।

    भावार्थ

    (त्वं) तू (अद्विभिः सुष्वाणः) पाषाण खण्डों के समान दृढ़ और मेघों के समान जल-धारा और सुखों की वर्षा करने वाले पुरुषों द्वारा अभिषिक्त होता हुआ (कनिक्रदत्) गर्जता हुआ, (द्युमन्तं) तेज से युक्त (उत्तमम् शुष्मम्) उत्तम शत्रु शोषक बल को (अभि अर्ष) प्राप्त कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You, stirred by the brave celebrants in yajna and meditation, arise and sanctify loud and bold, bringing us showers of bliss, highest and most vigorous strength and power for living a life of purity and happy fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा वेदवाणीद्वारे ज्ञानरूपी बल प्रदान करतो. ॥३॥

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