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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 23
    ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यत्ते॑ प॒वित्र॑म॒र्चिष्यग्ने॒ वित॑तम॒न्तरा । ब्रह्म॒ तेन॑ पुनीहि नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । प॒वित्र॑म् । अ॒र्चिषि॑ । अग्ने॑ । विऽत॑तम् । अ॒न्तः । आ । ब्रह्म॑ । तेन॑ । पु॒नी॒हि॒ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते पवित्रमर्चिष्यग्ने विततमन्तरा । ब्रह्म तेन पुनीहि नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । पवित्रम् । अर्चिषि । अग्ने । विऽततम् । अन्तः । आ । ब्रह्म । तेन । पुनीहि । नः ॥ ९.६७.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 23
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्ने) ज्ञानस्वरूप जगन्नियन्तः ! (यत्) यानि (ते अन्तः) त्वयि (पवित्रम्) शुद्धानि (आविततम्) विस्तृतानि (अर्चिषि) ज्योतींषि (तेन) तैः (ब्रह्म) हे परमेश्वर ! (नः) अस्मान् (पुनीहि) पवित्रय ॥२३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (यत्) जो (ते अन्तः) तुममें (पवित्रम्) पवित्र (आविततं) विस्तृत (अर्चिषि) ज्योतियें हैं, (तेन) उनसे (ब्रह्म) हे परमात्मन् ! (नः) हम लोगों को (पुनीहि) पवित्र करिये ॥२३॥

    भावार्थ

    ब्रह्म शब्द के अर्थ यहाँ परमात्मा के हैं। सायणाचार्य ने इसके अर्थ शरीर के किये हैं, जो कि वेदाशय से सर्वथा विरुद्ध है ॥२३॥

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    विषय

    अग्नि द्वारा पवित्रीकरण

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = हमें आगे ले चलनेवाले प्रभो ! (यत्) = जो (ते) = तेरा (अर्चिषि अन्तरा) = ज्ञान- ज्वालाओं में विततम् फैला हुआ प्रकाश है वह (पवित्रम्) = हमें पवित्र करनेवाला है । [२] यह पवित्र करनेवाला प्रकाश ही ब्रह्म वृद्धि का साधनभूत वेदज्ञान है [बृहि वृद्धो, 'ब्रह्मवेदः '] । तेन उस ज्ञान के द्वारा (नः पुनीहि) = हमें पवित्र कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे जीवन को पवित्र करें।

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    विषय

    तेजस्वी ज्ञानी लोग सबको पवित्र करें।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) तेजस्विन् ! ज्ञानवन् ! प्रभो ! (यत्) जो (ते) तेरा (पवित्रम्) सब को शुद्ध पवित्र करने वाला (ब्रह्म) महान् तेज (अर्चिषि) तेजोमय सूर्यादि के और (अन्तरा विततम्) समस्त जगत् के बीच व्याप्त है (तेन नः पुनीहि) उससे हमें पवित्र कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, lord of light, omniscient Spirit of the universe, whatever power and purity there is pervasive in the rays and radiation of light, with that same light, O lord infinite, illuminate and sanctify us and energise our song of adoration.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ब्रह्म शब्दाचा अर्थ येथे परमात्मा आहे. सायणाचार्याने याचा अर्थ शरीर केलेला आहे. जो वेदाशयाच्या सर्वस्वी विरुद्ध आहे. ॥२३॥

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