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यजुर्वेद अध्याय - 33

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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 2
    ऋषिः - विश्वरूप ऋषिः देवता - अग्नयो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    2

    हर॑यो धू॒मके॑तवो॒ वात॑जूता॒ऽउप॒ द्यवि॑।यत॑न्ते॒ वृथ॑ग॒ग्नयः॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हर॑यः। धू॒मके॑तव॒ इति॑ धू॒मऽके॑तवः। वात॑जूता॒ इति वात॑ऽजूताः। उप॑। द्यवि॑ ॥ यत॑न्ते। वृथ॑क्। अ॒ग्नयः॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हरयो धुमकेतवो वातजूताऽउप द्यवि । यतन्ते वृथगग्नयः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हरयः। धूमकेतव इति धूमऽकेतवः। वातजूता इति वातऽजूताः। उप। द्यवि॥ यतन्ते। वृथक्। अग्नयः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! ये धूमकेतवो वातजूता हरयोऽग्नयो वृथक् द्यवि उप यतन्ते, तान् कार्य्यसिद्धये संप्रयुङ्ग्ध्वम्॥२॥

    पदार्थः

    (हरयः) हरणशीलाः (धूमकेतवः) केतुरिव धूमो ज्ञापको येषान्ते (वातजूताः) वायुना प्राप्ततेजस्काः (उप) (द्यवि) प्रकाशे (यतन्ते) (वृथक्) पृथक्। वर्णव्यत्ययः (अग्नयः) पावकाः॥२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! येषां धूमो विज्ञापको वायुः प्रदीपको हरणशीलता च येषु वर्त्तते, तेऽग्नयः सन्तीति विजानीत॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (धूमकेतवः) जिनका जतानेवाला धूम ही पताका के तुल्य है (वाताजूताः) वायु से तेज को प्राप्त हुए ((हरयः) हरणशील (अग्नयः) पावक (वृथक्) नाना प्रकार से (द्यवि) प्रकाश के निमित्त (उप, यतन्ते) यत्न करते हैं, उनको कार्य्यसिद्धि के अर्थ उपयोग में लाओ॥२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जिनका धूम ज्ञान कराने और वायु जलानेवाला है और जिनमें हरणशीलता वर्त्तमान है, वे अग्नि हैं, ऐसा जानो॥२॥

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    विषय

    प्रजापालक विद्वान् अग्नियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( वृथक् ) नाना प्रकार के ( अग्नय: ) अग्निएं (हरयः) पीत वर्ण के आंत तेजस्वी, (धूमकेतवः) धूम से दूर से ही जानने योग्य, ( बातजूताः) वायु द्वारा प्रदीप्त होकर (द्यवि ) प्रकाश के निमित्त ( उप यतन्ते) जला करते हैं, उसी प्रकार (अग्नयः) तेजस्वी, ज्ञानी पुरुष (हरयः) ज्ञान धारण करने हारे (धूमकेतवः) धूम के समान चतुर्दिगन्त फैलने वाले ज्ञान से युक्त और (वातजूताः) वायु के समान प्राणपद, परमेश्वर की उपासना वा प्राणायाम से वा वायु के समान बल से बलवान् होकर (द्यबि) प्रकाश और ज्ञान के निमित्त (उप यतन्ते ) यत्न करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वरूप ऋषिः । अग्नयः । गायत्रा । षड्जः ॥

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    विषय

    प्रभुभक्त=धूमकेतु

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र - वर्णित प्रभुभक्त (हरयः) = औरों के दुःखों को हरण करनेवाले होते हैं। वस्तुतः ये औरों के दुःखों को अपना बना लेते हैं और उसे दूर किये बिना शान्ति अनुभव नहीं करते। २. (धूमकेतवः) = [धूम-वासनाओं को कम्पित करना, केतु-ज्ञानवाला] इनका ज्ञान वासनाओं को दूर करनेवाला होता है। इस ज्ञान को देकर वासना - विनाश के द्वारा ये लोगों को दुःखों से ऊपर उठाते हैं। ३. (वातजूता:) = अपने इस ज्ञान प्रसार के कार्य में ये वायु से प्रेरित होते हैं। वायु से प्रेरणा प्राप्त करके ये निरन्तर ज्ञान प्रसाररूप कार्य में लगे रहते हैं। ४. जिनका ये हित कर रहे हैं वे लोग सम्भवत: इनके कृतज्ञ न होकर इनका अपमान भी कर दें, परन्तु ये तो (वृथक्) = वृथा ही, अर्थात् किसी भी प्रकार की फलाशा को न लेकर (उपद्यवि) = उस द्योतनात्मक प्रभु के चरणों में स्थित हुए हुए (यतन्ते) = उद्योग में लगे रहते हैं। यह 'सर्वभूतहित में लगना ही तो सच्ची प्रभुभक्ति है. और अन्ततः ५. (अग्नयः) = 'अग्रेणी:' औरों को भी आगे ले चलनेवाले होते हैं। स्वयं अग्नि बनकर ये औरों को भी अग्नि बना पाते हैं। लोकहित में लगे हुए ये सबमें अपने को ही देखते हैं और इस कारण 'विश्वरूप' हो जाते हैं, सभी के सुख में ये सुख का अनुभव करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम स्वयं अग्नि बनकर औरों को भी अग्नि बनाने का प्रयत्न करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! धूर म्हणजे ज्याच्या पताकाच आहेत व वायूमुळे जो गतिमान असून, ज्वलनशील आहे, तसेच नाशही करणरा आहे असा तो अग्नीच असतो हे जाणा.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ : हे मनुष्यांनो, या जगात (धूमकेतवः) धूर हेच ज्यांची पताका आहे, असा अग्नी (वातजूताः) वायूमुळे तेज आणि तीव्रत्व प्राप्त करतो (वार्‍यामुळे अग्नी अधिक प्रकाशमान होतो व लवकर पसरतो) (हरयः) हरणशील (विनाशक वा जलशोषक) (अग्नयः) अग्नी , वायू, विद्युत आपल्या (पृथक) नाना प्रकारच्या रूपाने (द्यवि) मनुष्याला प्रकाश व उष्णता देण्याला (उप, यतन्ते) प्रयत्न करतात, तुम्ही त्या शक्तींना आपल्या कार्यसिद्धीसाठी उपयोगात आणा ॥2॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याचे ज्ञान करण्याचे साधन धूर आहे, जो दाहक आहे आणि ज्यात हरणशीलता (शोषण, गती) आहे ते सर्व पदार्थ अग्नी आहेत, असे जाणा (वायू, विद्यूत देखील एका प्रकारे अग्नी आहेत) ॥2॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Various flames of fire, moving in nature, bannered with the smoke, fanned by the wind, rise, aloft to heaven.

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    Meaning

    Fast as sunbeams, with banners of flame flown by the winds, the fires arise, each in its own way, upto the heights of heaven.

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    Translation

    Your consuming fire flames, urged by the wind, bannered with the smoke, rise and go aloft diversely to heaven. (1)

    Notes

    Vrthak, पृथक्, diversely; in different directions.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (ধূমকেতবঃ) কেতুর মত ধূমই যাহাদের জ্ঞাপন করায়, (বাতজূতাঃ) বায়ুর তেজ প্রাপ্ত (ইরয়ঃ) হরণশীল (অগ্নয়ঃ) পাবক (বৃথক্) নানা প্রকারে (দ্যবি) প্রকাশের নিমিত্ত (উপ, য়তন্তে) প্রযত্ন করে, তাহাদের কার্য্যসিদ্ধির জন্য উপযোগে আনো ॥ ২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–হে মনুষ্য যাহার ধূম জ্ঞান করায় এবং বায়ু পোড়ায় এবং যন্মধ্যে হরণশীলতা বর্ত্তমান সেটা অগ্নি, এইরূপ জানিবে ॥ ২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    হর॑য়ো ধূ॒মকে॑তবো॒ বাত॑জূতা॒ऽউপ॒ দ্যবি॑ ।
    য়ত॑ন্তে॒ বৃথ॑গ॒গ্নয়ঃ॑ ॥ ২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    হরয় ইত্যস্য বিশ্বরূপ ঋষিঃ । অগ্নয়ো দেবতাঃ । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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