यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 41
श्राय॑न्तऽइव॒ सूर्य्यं॒ विश्वेदिन्द्र॑स्य भक्षत।वसू॑नि जा॒ते जन॑मान॒ऽओज॑सा॒ प्रति॑ भा॒गं न दी॑धिम॥४१॥
स्वर सहित पद पाठश्राय॑न्तऽइ॒वेति॒ श्राय॑न्तःऽइव। सूर्य॑म्। विश्वा॑। इत्। इन्द्र॑स्य। भ॒क्ष॒त॒ ॥ वसू॒नि। जा॒ते। जन॑माने। ओज॑सा। प्रति॑। भा॒गम्। न। दी॒धि॒म॒ ॥४१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रायन्तऽइव सूर्यँविश्वेदिन्द्रस्य भक्षत । वसूनि जाते जनमानऽओजसा प्रति भागन्न दीधिम ॥
स्वर रहित पद पाठ
श्रायन्तऽइवेति श्रायन्तःऽइव। सूर्यम्। विश्वा। इत्। इन्द्रस्य। भक्षत॥ वसूनि। जाते। जनमाने। ओजसा। प्रति। भागम्। न। दीधिम॥४१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा वयमोजसा जाते जनमाने च जगति सूर्यं श्रायन्तइव विश्वा वसूनि प्रति दीधिम भागं न सेवेमहि तथेदिन्द्रस्येमं यूयं भक्षत॥४१॥
पदार्थः
(श्रायन्तइव) समाश्रयन्तइव। अत्र गुणे प्राप्ते व्यत्ययेन वृद्धिः। (सूर्य्यम्) स्वप्रकाशं सर्वात्मानं जगदीश्वरम् (विश्वा) सर्वाणि (इत्) एव (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (भक्षत) सेवध्वम् (वसूनि) वस्तूनि (जाते) उत्पन्ने (जनमाने) उत्पद्यमाने। अत्र विकरणव्यत्ययः। (ओजसा) सामर्थ्येन (प्रति) (भागम्) सेवनीयमंशम् (न) इव (दीधिम) प्रकाशयेम॥४१॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यदि वयं परमेश्वरं सेवमाना विद्वांस इव भवेम तर्हीह सर्वमैश्वर्यं लभेमहि॥४१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे हम लोग (ओजसा) सामर्थ्य से (जाते) उत्पन्न हुए और (जनमाने) उत्पन्न होनेवाले जगत् में (सूर्यम्) स्वयं प्रकाशस्वरूप सबके अन्तर्यामी परमेश्वर का (श्रायन्तइव) आश्रय करते हुए के समान (विश्वा) सब (वसूनि) वस्तुओं को (प्रति, दीधिम) प्रकाशित करें और (भागम्, न) सेवने योग्य अपने अंश के तुल्य सेवन करें, वैसे (इत्) ही (इन्द्रस्य) उत्तम ऐश्वर्य के भाग को तुम लोग (भक्षत) सेवन करो॥४१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो हम लोग परमेश्वर को सेवन करते हुए विद्वानों के तुल्य हों तो यहां सब ऐश्वर्य को प्राप्त होवें॥४१॥
विषय
परमेश्वर के आश्रय पर कमाये धन के समान कर्मफल का भोग ।
भावार्थ
हे मनुष्यो ! तुम लोग ( सूर्यम् ) सबके प्रेरक सर्वोत्पादक परमेश्वर का ( श्रायन्त इव) श्राश्रय लेते हुए ही (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् आत्मा के (विश्वा वसूनि ) समस्त देह में बसने से प्राप्त करने योग्य आनन्दों का (भक्षत) भोग करो। हम लोग (जाते) उत्पन्न हुए और ( जनमाने) आगे उत्पन्न होने वाले संसार में (भागं न ) अपने कमाये धन को प्रदान करते हैं, उसी प्रकार (ओजसा) बल पराक्रम से कमाये हुए ( भागम् ) सेवन करने योग्य कर्म-फल को अब तक उत्पन्न और आगे उत्पन्न होने वाले जन्म या देह में (दीधिम) धारण करते हैं । (२) सूर्य के समान तेजस्वी राजा का आश्रय लेकर ही हम ऐश्वर्यवान् राष्ट्र के धनों का भोग करें और उत्पन्न और आगे होने वाले प्रजा आदिक में अपने पराक्रम से कमाये धन प्रदान करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेधः सूर्यः । निचृद् बृहती । मध्यमः ॥
विषय
साम्यवाद "In the sweat of thy labour "=स्वेदस्य
पदार्थ
१. प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'नृ-मेध' है, जो सब नरों से मिलकर चलता है [मेध= संगम]। 'यह अकेला खाएगा' यह कैसे हो सकता है! इसका विचार है कि (सूर्यम् इव) = सूर्य की भाँति (श्रायन्तः) = [to sweat, to perspire] श्रम के कारण पसीने से तर-बतर होते हुए (विश्वा इत्) = सभी प्राणी (इन्द्रस्य) = उस प्रभु से दिये गये भोजन का (भक्षत) = भक्षण करें। इस मन्त्रार्थ में यह बात स्पष्ट है- [क] सबने अधिक-से-अधिक श्रम करना है, और [ख] अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार सबने भोजन प्राप्त करना है। वस्तुतः राष्ट्र को इस प्रकार के नियम बना देने चाहिएँ कि कोई व्यक्ति बिना कर्म किये न खा सके और कोई भी कर्म करनेवाला अपनी आवश्यकताओं को न पा सके, यह न हो। २. हम (ओजसा) = शक्ति के द्वारा (जाते) = धनों के उत्पन्न होने पर और जनमाने आगे उत्पन्न होनेवाले धनों में (वसूनि) = धनों को (भागं न) = सेवनीय भाग के अनुसार (प्रतिदीधिम) = प्रत्येक व्यक्ति के लिए धारण करें। अपनी शक्ति के अनुसार हम कमाएँ, परन्तु उसे सारा अपने पर व्यय करने के स्थान में भाग के अनुसार सबको दें। घर में यह साम्यवाद कितना सुन्दर चलता है। पिता कमाता है, वह कम खाता है, परन्तु न कमानेवाला बच्चा सबसे अधिक खाता है। एवं, घर में ये दोनों सिद्धान्त कार्य करते दिखते हैं। [क] काम सब शक्ति के अनुसार करते हैं और [ख] खाते सब आवश्यकतानुसार हैं। यही दो सिद्धान्त सारे राष्ट्र में लागू हों तो न राष्ट्र निर्धन हो और ना ही कोई भूखा मरे ।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्य की भाँति हम श्रमशील हों, उत्पन्न धनों को सबके साथ बाँटकर खाएँ, धनों को प्रभु का समझें ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्वांनी परमेश्वरावर विश्वास ठेवून विद्वानांप्रमाणे वागल्यास ऐश्वर्य प्राप्त होऊ शकते.
विषय
missing
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे आम्ही (विद्वान माणसें) (ओजसा) आपल्या सामर्थ्याने (जाते) या उत्पन्न झालेल्या आणि (जनमाने) उत्पन्न होणार्या जगात (सूर्यम्) प्रकाशस्वरूप सर्वांतर्यामी ईश्वराचा (आयन्तइव) आश्रय घेऊन त्यानुसार (विश्वा) सर्व (वसूनि) पदार्थांना (प्रति, दीधिम) जाणतो (त्यांचा उपयोग घेतो) आणि (भागम्, न) या जगातील पदार्थांत जो उपभोग्य वा आमच्या वाट्याचा भाग असेल, त्याचा उपयोग घेतो, (इत्) त्याचप्रमाणे (इन्द्रस्य) उत्तम ऐश्वर्यातील तुमचा जो उपभोग्य अंश असेल, त्याचा तुम्ही (भक्षत) उपभोग घ्या. ॥41॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जर आम्ही सामान्यजनांनी विद्वानांप्रमाणे परमेश्वराचा आश्रय घेतला, तर आम्हांला इथे या जगात सर्व इच्छित ऐश्वर्य अवश्य मिळेल. ॥41॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O people, just as we, manifest all substances depending upon God, Who shines in this world and the world to be, created through His might ; and enjoy the portion allotted to us, so should ye enjoy your share of prosperity.
Meaning
Only in the shelter and protection of the Sun, light and lord of existence, do you partake of the gifts of Indra, lord of the world’s wealth, exactly as we, in the world created and yet to be created by the lord’s might, receive and gratefully enjoy just our share.
Translation
As the gathering solar rays proceed to the sun, so the vital principles turn back to the Lord of resplendence and by their power divide all His loftiest glories among those, who have been or will be born; may we meditate on our shares. (1)
Notes
Śrāyantaḥ, आश्रयंत:,going back to; seeking shelter in. Bhakṣata, विभक्षंते विभजंते, divide; distribute. Jäte janamāne, among those who have been born and those who are yet to be born. Bhāgam, share.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন আমরা (ওজসা) সামর্থ্য বলে (জাতে) উৎপন্ন এবং (জনমানে) উৎপন্ন হইবার জগতে (সূর্য়ম্) স্বয়ং প্রকাশস্বরূপ সকলের অন্তর্য্যামী পরমেশ্বরের (শ্রায়ন্তইব) আশ্রয় করিবার সমান (বিশ্বা) সকল (বসূনি) বস্তুগুলিকে (প্রতি, দীধিম) প্রকাশিত করি এবং (ভাগম্, ন) সেবনীয় নিজের অংশের তুল্য সেবন করি সেইরূপ (ইৎ) ই (ইন্দ্রস্য) উত্তম ঐশ্বর্য্যের ভাগকে তোমরা (ভক্ষত) সেবন কর ॥ ৪১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । আমরা পরমেশ্বরকে সেবন করিয়া বিদ্বান্দিগের তুল্য হই, তাহা হইলে এখানে সকল ঐশ্বর্য্যকে প্রাপ্ত হইব ॥ ৪১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শ্রায়॑ন্তऽইব॒ সূর্য়্যং॒ বিশ্বেদিন্দ্র॑স্য ভক্ষত ।
বসূ॑নি জা॒তে জন॑মান॒ऽওজ॑সা॒ প্রতি॑ ভা॒গং ন দী॑ধিম ॥ ৪১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শ্রায়ন্তইবেত্যস্য নৃমেধ ঋষিঃ । সূর্য়ো দেবতা । নিচৃদ্ বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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