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यजुर्वेद अध्याय - 33

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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 95
    ऋषिः - नृमेध ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिग् बृहती स्वरः - मध्यमः
    2

    अपा॑धमद॒भिश॑स्तीरशस्ति॒हाथेन्द्रो॑ द्यु॒म्न्याभ॑वत्।दे॒वास्त॑ऽइन्द्र स॒ख्याय॑ येमिरे॒ बृह॑द्भानो॒ मरु॑द्गण॥९५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। अ॒ध॒म॒त्। अ॒भिश॑स्ती॒रित्य॒भिऽश॑स्तीः। अ॒श॒स्ति॒हेत्य॑शस्ति॒ऽहा। अथ। इन्द्रः॑। द्यु॒म्नी। आ। अ॒भ॒व॒त् ॥ दे॒वाः। ते॒। इ॒न्द्र॒। स॒ख्याय॑। ये॒मि॒रे॒। बृह॑द्भानो॒ इति॒ बृह॑त्ऽभानो। मरु॑द्ग॒णेति॒ मरु॑त्ऽगण ॥९५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपाधमदभिशस्तीरशस्तिहाथेन्द्रो द्युम्न्याभवत् । देवास्तऽइन्द्र सख्याय येमिरे बृहद्भानो मरुद्गण ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप। अधमत्। अभिशस्तीरित्यभिऽशस्तीः। अशस्तिहेत्यशस्तिऽहा। अथ। इन्द्रः। द्युम्नी। आ। अभवत्॥ देवाः। ते। इन्द्र। सख्याय। येमिरे। बृहद्भानो इति बृहत्ऽभानो। मरुद्गणेति मरुत्ऽगण॥९५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 95
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ के जना दुःखनिवारणसमर्थाः सन्तीत्याह॥

    अन्वयः

    ये बृहद्भानो मरुद्गगण इन्द्र! देवास्ते सख्याय येमिरेऽथ द्युम्नीन्द्रो भवानभिशस्तीरपाऽऽधमद-शस्तिहाऽभवद् भवतु॥९५॥

    पदार्थः

    (अप) दूरीकरणे (अधमत्) धमति (अभिशस्तीः) अभितो हिंसाः (अशस्तिहा) अप्रशस्तानां दुष्टानां हन्ता (अथ) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सभापती राजा (द्युम्नी) बहुप्रशंसाधनयुक्तः (आ) (अभवत्) भवतु (देवाः) विद्वांसः (ते) तव (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद सभापतेराजन्! (सख्याय) मित्रत्वाय (येमिरे) संयमं कुर्वन्ति (बृहद्भानो) बृहन्तो भानवः किरणा इव कीर्त्तयो यस्य तत्सम्बुद्धौ (मरुद्गण) मरुतां मनुष्याणां वायूनां वा गणः समूहो यस्य तत्सबुद्धौ॥९५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या धार्मिकाणां न्यायधीशानां धनाढ्यानां वा मित्रतां कुर्वन्ति, ते यशस्विनो भूत्वा सर्वेषां दुःखनिवारणाय सूर्यवद्भवन्ति॥९५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब कौन मनुष्यः दुःखनिवारण में समर्थ हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (बृहद्भानो) महान् किरणों के तुल्य प्रकाशित कीर्तिवाले (मरुद्गण) मनुष्यों वा पवनों के समूह से कार्य्यसाधक (इन्द्र) परमैश्वर्य्य के देने वाले सभापति राजा (देवाः) विद्वान् लोग (ते) आपकी (सख्याय) मित्रता के अर्थ (येमिरे) संयम करते हैं। (अथ) और (द्युम्नी) बहुत प्रशंसारूप धन से युक्त (इन्द्रः) परमैश्वर्यवाले आप (अभिशस्तीः) सबसे हिंसाओ को (अप, आ, अधमत्) दूर धमकाते हो (अशस्तिहा) दुष्टों के नाशक (अभवत्) हूजिये॥९५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य धार्मिक न्यायधीशों वा धनाढ्यों से मित्रता करते हैं, वे यशस्वी होकर सब दुःखनिवारण के लिये सूर्य के तुल्य होते हैं॥९५॥

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    भावार्थ

    ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् राजा, सेनापति ( अशस्तिहा ) शासन व्यवस्था से रहित उच्छृङ्खल पुरुषों को दण्ड देने में समर्थ होकर (अभि- शस्तीः ) सब ओर से आने वाली हिंसाकारिणी सेनाओं और अपवादों को ( अप- अधमत् ) दूर भगा दे और इस प्रकार वह (इन्द्रः ) शत्रुहन्ता होकर (द्यम्नी) अन्नादि से समृद्ध और ऐश्वर्यवान् ( अभवत् ) होता है । हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन्! शत्रुहन्तः ! हे (बृहद्भानो) अति अधिक तेज से युक्त अग्नि और सूर्य के समान तेजस्विन्! हे ( मरुद्गण ) वीर सैनिकों के गणाधीश्वर (देवाः) विजयशील पुरुष विद्वान् एवं व्यवहार कुशल वैश्यगण भी (ते) तेरे (सख्याय) मित्र भाव के लिये (येमिरे) यत्न करते एवं नियम व्यवस्था में रहते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमध ऋषिः । मरुत्वान् इन्द्रो देवता । भुरिग् बृहती । मध्यमः ॥

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    विषय

    हिंसा से दूर

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र का मनु देवों से देवत्व प्राप्त करके अब नृमेध बनता है, औरों के सम्पर्क में आकर उनके हित में प्रवृत्त होता है। २. यह (नृमेध अभिशस्ती:) = सब प्रकार की हिंसाओं को (अपाधमत्) = अपने से दूर फेंकता है, इन वृत्तियों को समाप्त करके अपने से दूर करके चमक जाता है। ३. यह केवल हिंसा से ही दूर नहीं होता। हिंसा तो यहाँ सब अवगुणों का प्रतीकमात्र है। यह (नृमेध अशस्तिहा) = सब अप्रशस्त बातों का नाश करनेवाला होता है। ४. (अथ) = अब-सब बुराइयों को दूर करके (इन्द्रः) = यह इन्द्रियों का अधिष्ठाता (नृमेध द्युम्नी) = ज्योतिरूप धनवाला (आभवत्) = सब प्रकार से हो जाता है। अधिक-से-अधिक व्यापक ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होता है। इस प्रकार - ५. हे (बृहद्भानो) = वृद्ध (बढ़ी हुई) ज्ञान की दीप्तिवाले मरुद्गण प्राणों के गण से युक्त नृमेध! (देवा:) = सब देव हे इन्द्र-इन्द्र ! (सख्याय) = प्रभु से मित्रता के लिए (ते) = तेरे जीवन को (येमिरे) = नियमित बनाते हैं। प्राणों की साधना से सब देवों की अनुकूलता प्राप्त होती है और यह नृमेध प्रकृति की आसक्ति से ऊपर उठकर प्रभु का मित्र बन पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम हिंसा से दूर रहें, बुराइयों को नष्ट करें, ज्ञानधन को प्राप्त करें, प्राणसाधना से देवों की अनुकूलता का सम्पादन करके प्रभु के सखा बनें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे धार्मिक, न्यायाधीश व धनाढ्य लोकांशी मैत्री करतात ती यशस्वी होऊन दुःखरूपी अंधःकार नष्ट होण्यासाठी सूर्याप्रमाणे तळपतात.

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    विषय

    कोण माणसें दुःख निवारणात समर्थ असतात, यावषियी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ -(बृहद्भाना) विशाल किरणां प्रमाणे कीर्तीमंत असलेल्या (मरुद्गणः) अनेक मनुष्यांच्या समूहाद्वारे आपले कार्य पूर्ण करणाया (इन्द्र) हे परमैश्‍वर्यसंपन्न सभापती राजा, (देवाः) विद्वद्गण (ते) आपल्या (सख्याय) मैत्रीकरिता (येमिरे) प्रयत्न करतात. आपणदेखील (द्युम्नी) अति प्रशंसित धनसंपन्न आणि (धन्द्रः) ऐश्‍वर्यशाली आहात. आपण (अभि, शस्तीः) सर्वप्रकारच्या भय, हिंसा, आदी प्रसंगी (अप, अधमत्) त्या भय, शत्रूदीनां दरडावून दूर पळवतात. आपण आपल्या राज्यातील (रशस्तिहा) दुष्टजनांचे नाशक (अभवत्) व्हा (म्हणजे सज्जन व प्रजा निर्भय राहू शकतील) ॥95॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे मनुष्य धार्मिक न्यायाधीशांशी अथवा धार्मिक धनवंतांशी मैत्री करतात, ते जीवनात यशस्वी होऊन सूर्य जसा अंधकाराला तसे दुःखांना दूर लोटण्यात समर्थ होतात. ॥95॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King refulgent with fame, lord of the hosts of men, the learned strive to win thy love. O supreme King, suppressor of violence from all sides, chastiser of the ignoble, be thou the master of richer.

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    Meaning

    May Indra, lord of power and ruler of the world, destroyer of cursers and evil-wishers, be the liberal giver of prosperity and splendour, and may he eliminate all fear, violence and terror. Indra, lord of light and glory like the sun, may all the nobilities of humanity, divinities of nature and powers of the winds be friends with you with all their support.

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    Translation

    The Lord of resplendence, the destroyer of unbelievers, drives away the malevolent and becomes glorious. O radiant one of mighty splendour, lord of troops of vital forces, Nature's bounties are invoking you for your friendship. (1)

    Notes

    Indraḥ, Lord of resplendence. Abhisastiḥ, curses; malevolence. Asastihā, dispeller of curses. Apādhamat, drives away. Dyumni, यशस्वी, glorious; famous. Brhadbhāno, O radiant with mighty splendour. Bhānuḥ, दीप्ति:, splendour; lustre.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ কে জনা দুঃখনিবারণসমর্থাঃ সন্তীত্যাহ ॥
    এখন কোন্ মনুষ্য দুঃখনিবারণে সমর্থ, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (বৃহদ্ভানো) মহান্ কিরণ সমূহের তুল্য প্রকাশিত কীর্ত্তিসম্পন্ন (মরুদ্গণ) মনুষ্যগণ বা পবনগুলির সমূহ দ্বারা কার্য্যসাধক (ইন্দ্র) পরমৈশ্বর্য্যের দাতা সভাপতি রাজা (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (তে) আপনার (সখ্যায়) মিত্রতার জন্য (য়েমিরে) সংযম করে (অথ) এবং (দ্যুম্নী) বহু প্রশংসারূপ ধন দ্বারা যুক্ত (ইন্দ্রঃ) পরমৈশ্বর্য্য সম্পন্ন আপনি (অভি শস্তীঃ) সর্বাপেক্ষা হিংসাগুলিকে (অপ্, আ, অধমৎ) দূরে সরাইয়া রাখুন (অশস্তিহা) দুষ্টদিগের নাশক (অভবৎ) হউন ॥ ঌ৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য ধার্মিক ন্যায়াধীশ বা ধনাঢ্যদিগের সঙ্গে মিত্রতা করেন তাহারা যশস্বী হইয়া সকল দুঃখনিবারণের জন্য সূর্য্য তুল্য হন ॥ ঌ৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অপা॑ধমদ॒ভিশ॑স্তীরশস্তি॒হাথেন্দ্রো॑ দ্যু॒ম্ন্যাভ॑বৎ ।
    দে॒বাস্ত॑ऽইন্দ্র স॒খ্যায়॑ য়েমিরে॒ বৃহ॑দ্ভানো॒ মর॑ুদ্গণ ॥ ঌ৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অপাধমদিত্যস্য নৃমেধ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । ভুরিগ্ বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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