यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 51
ऋषिः - कूर्म ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
अ॒र्वाञ्चो॑ऽअ॒द्या भ॑वता यजत्रा॒ऽआ वो॒ हार्दि॒ भय॑मानो व्ययेयम्। त्राध्वं॑ नो देवा नि॒जुरो॒ वृक॑स्य॒ त्राध्वं॑ क॒र्त्ताद॑व॒पदो॑ यजत्राः५१॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्वाञ्चः॑। अ॒द्य। भ॒व॒त॒। य॒ज॒त्राः॒। आ। वः॒। हार्दि। भय॑मानः। व्य॒ये॒य॒म् ॥ त्राध्व॑म्। नः॒। दे॒वाः॒। नि॒जुर॒ऽइति॑ नि॒जुरः॑। वृक॑स्य। त्राध्व॑म्। क॒र्त्तात्। अ॒व॒पद॒ इत्य॑व॒ऽपदः॑। य॒ज॒त्राः॒ ॥५१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्वाञ्चोऽअद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम् । त्राध्वन्नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वङ्कर्तादवपदो यजत्राः ॥
स्वर रहित पद पाठ
अर्वाञ्चः। अद्य। भवत। यजत्राः। आ। वः। हार्दि। भयमानः। व्ययेयम्॥ त्राध्वम्। नः। देवाः। निजुरऽइति निजुरः। वृकस्य। त्राध्वम्। कर्त्तात्। अवपद इत्यवऽपदः। यजत्राः॥५१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे यजत्रा देवा! यूयमद्यार्वाञ्चो भवत भयमानोऽहं वो हार्दि आव्ययेयं नो निजुरो वृकस्य सकाशात् त्राध्वम्। हे यजत्राः! यूयमवपदः कर्त्तादस्मान् त्राध्वम्॥५१॥
पदार्थः
(अर्वाञ्चः) अस्मदभिमुखाः (अद्य) अत्र निपातस्य च [अ॰६.३.१३६] इति दीर्घः। (भवत) अत्र संहितायाम् [अ॰६.३.११४] इति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गतिकर्त्तारः (आ) (वः) युष्माकम् (हार्दि) हृदि भवं मनः (भयमानः) भयं प्राप्नुवन्। अत्र व्यत्ययेन शप्। (व्ययेयम्) प्राप्नुयाम् (त्राध्वम्) रक्षत (नः) अस्मान् (देवाः) विद्वांसः (निजुरः) हिंसकस्य (वृकस्य) स्तेनस्य व्याघ्रस्य वा सकाशात् (त्राध्वम्) (कर्त्तात्) कूपात् (अवपदः) यत्राऽवपद्यन्ते ततः (यजत्राः) विदुषां सत्कर्त्तारः॥५१॥
भावार्थः
प्रजापुरुषै राजजना एवं प्रार्थनीयाः। हे पूज्या राजपुरुषा विद्वांसो! यूयं सदैवास्मदविरोधिनः कपटादिरहिता भयनिवारका भवत। चोरव्याघ्रादिभ्यो मार्गादिशोधनेन गर्त्तादिभ्यश्चास्मान् रक्षत॥५१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (यजत्राः) सङ्गति करनेहारे (देवाः) विद्वानो! तुम लोग (अद्य) आज (अर्वाञ्चः) हमारे सम्मुख (भवत) हूजिये अर्थात् हमसे विरुद्ध विमुख मत रहिये (भयमानः) डरता हुआ मैं (वः) तुम्हारे (हार्दि) मनोगत को (आ, व्ययेयम्) अच्छे प्रकार होऊं (नः) हमको (निजुरः) हिंसक (वृकस्य) चोर वा व्याघ्र के सम्बन्ध से (त्राध्वम्) बचाओ। हे (यजत्राः) विद्वानों का सत्कार करनेवाले लोगो! तुम (अवपदः) जिसमें गिर पड़ते उस (कर्त्तात्) कूप वा गढ़े से हमारी (त्राध्वम्) रक्षा करो॥५१॥
भावार्थ
प्रजापुरुषों को राजपुरुषों से ऐसे प्रार्थना करनी चाहिये कि-हे पूज्य राजपुरुष विद्वानो! तुम सदैव हमारे अविरोधी कपटादिरहित और भय के निवारक होओ। चोर, व्याघ्रादि और मार्ग शोधने से गढ़े आदि से हमारी रक्षा करो॥५१॥
विषय
प्रजा का विद्वानों की शरण आना और रक्षा की याचना करना ।
भावार्थ
हे (यजत्राः) अभय दान करने और राष्ट्रों को सुसंगत करने वाले, वीर, पूज्य, सत्संग योग्य पुरुषो ! (अद्य) आज आप लोग (अर्वाञ्चः) हमारे सन्मुख, हमें प्राप्त (भवत) होवो । ( वः ) आप लोगों के ( हार्दि) हृदय में स्थित भीतरी भाव को (आ वि अयेयम् ) मैं भली प्रकार जानूं । मैं प्रजाजन (भयमानः) शत्रुगण से भय करता हुआ आपकी शरण हूँ । हे (देवाः) विजयशील विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (नः) हमारी ( निजुर: ) सब प्रकार की सर्वथा विनाश करने वाले, (वृकस्य) हमारा सर्वस्व अप- हरण करने वाले चोर, डाकू तथा भेड़िये के समान क्रूर पुरुषों और जीवों से भी (त्राध्वम् ) रक्षा करो और हे (यजत्राः) सुसंगत, संघ बनाकर रहने वाले सेनाजनो ! आप लोग (अव पदः) गढ़े के समान गिरने का स्थान, संकट और विपत्ति रूप (कर्त्तात् ) गढ़े से, अथवा विपत्तिजनक पुरुष, अथवा राष्ट्र को नीचा गिरा देने वाले हिंसा कार्य, प्रजानाशकृत्य शस्त्रादि वध से (त्राध्वम् ) रक्षा करो । वृकः - वृक आदाने । भ्वादि: । श्वापि वृक उच्यते विकर्त्तनात् निरु० ५|४| २ || 'अवपदः कर्त्तात् । ' - यत्र अवपद्यन्ते पतन्ति ततः कर्त्तात् कूपात् इति उवट महीधरदयानन्दाः । विपदः कर्त्तरिति सायणः । हिसार्थस्य वा करोतेः कर्तस्तस्मात् । अथवा गर्तो वा कर्त्तः । कत्वं छान्दसम् ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कूर्मो गार्त्समद ऋषिः । विश्वेदेवा देवताः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
काम, क्रोध, लोभ व अभिमान का विजय
पदार्थ
१. प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि कूर्म है- निरन्तर क्रियाशील । क्रियाशीलता के कारण ही यह सबका धारण करनेवाला बनता है और स्वयं को शक्तिशाली बनाता है। यह सब देवों से प्रार्थना करता है - हे (यजत्राः) = यज्ञ के द्वारा त्राण करनेवाले देवो! (अद्य) = आज (अर्वाञ्चः) = हमारे समीप (भवत) = प्राप्त हानेवाले होओ। मनुष्य यज्ञशील होता है तो बुराइयों से बचा रहता है, जितना-जितना बुराइयों से दूर होता है, उतना उतना देवों के समीप होता है। २. जब मनुष्य संसार में इस दिव्यता के मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग पर चलता है तब प्रारम्भ में कुछ चमक लगने पर भी पीछे अन्धकार-ही-अन्धकार दिखता है और यह 'कूर्म' देवों से कहता है कि मैं (भयमान:) = डरता हुआ-सा (हार्दि) = हृदय से (वः) = आपके प्रति (आ व्ययेयम्) = सर्वथा आता हूँ। देवशून्य संसार में आसुर राज्य चलता है और उसमें एक-से-एक बढ़कर बलवाले निर्बलों को समाप्त करते हुए चलते हैं। वहाँ घात ही घात दृष्टिगोचर होता है, कल्पना करके भी डर लगता है, इसीलिए इन असुरों से घबराकर मनुष्य फिर देवों की शरण में चलता है । ३. हे (देवाः) = देवो! (नः) = हमें (निजुर:) = निश्चय ही जीर्ण करनेवाली इस कामवासना से (त्राध्वम्) = बचाओ। (वृकस्य) = [वृक आदाने] इस आदान- ही आदान (लाला) की भावनावाली लोभवृत्ति से भी हमें बचाओं। ४. (कर्तात्) = अपने आधार को ही छिन्न-भिन्न करनेवाले इस क्रोध से (त्राध्वम्) = बचाओ और हे (यजत्राः) = यज्ञों के द्वारा त्राण करनवाले देवो! (अवपदः) = नीचे की ओर ले जानेवाले, अर्थात् पाँवों तले कुचलनेवाले इस अभिमान से भी (त्राध्वम्) = रक्षा कीजिए । अभिमान सदा पतनोन्मुख है pride goeth before a fall. इस अभिमान से आप हमारी रक्षा कीजिए। वस्तुतः कूर्म - क्रियाशील व्यक्ति ही काम, क्रोध व अभिमान पर विजय पा सकता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम अपने जीवन को प्राणसाधना से प्रारम्भ करें, इससे हममें स्वास्थ्य, प्रेम व ज्ञान की अग्नियाँ समिद्ध होंगी। ये हमें दिव्य बनाएँगी और हम जीवन के लिए आवश्यक धन का अर्जन करते हुए उसमें आसक्त न होंगे।
मराठी (2)
भावार्थ
प्रजेने राजाला अशी प्रार्थना केली पाहिजे की, हे पूज्य विद्वान राजपुरुषांनो ! तुम्ही आम्हाला विरोध करू नका, कपटीपणा करू नका व भय नाहीसे करा. चोर, वाघ मार्ग आक्रमित असता खड्डे इत्यादींपासून आमचे रक्षण करा.
विषय
पुढील मंत्रात तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (यजत्राः) संगती, (सहयोग आणि ऐक्यभाव यांची वृद्धी) करणार्या (देवाः) विद्वज्जनहो, आपण (अद्य) आज (अर्वाञ्चः) आमच्यासमोर (भयत) या (उपस्थित व्हा) अर्थात आमच्याशी विरूद्ध वागूं नका, (अनुकूल व्हा) (भयमानः) (दुःख आणि संकटाला भिणारा मी (वः) तुमच्या (हार्दि) हृदयात (आ, व्ययेयम्) शिरावे (म्हणजे माझ्याविषयी तुमच्या मनात करूणा उत्पन्न व्हावी) (नः) आपण आम्हाला (सामान्यजनांना) (वृकस्य) चोर अथवा वाघ आदी (निजुरः) हिंसक प्राण्यांपासून (त्राध्वम्) वाचवा. हे (यजत्राः) विद्वांनांचा सत्कार करणार्या (राजपुरूष) लोकहो, तुम्ही (अवपदः) विहीर, खोल खड्डा आदी स्थानात पडण्यापासून (त्राध्वम्) आम्हास वाचवा (सुगम वा सुखकर मार्ग अथवा आचारवान् जीवन व्यतीत करण्याची रीती शिकवा) ॥51॥
भावार्थ
भावार्थ - प्रजाजनांनी राजपुरुषांना अशी प्रार्थना करावी की - हे पूज्य राजपुरूष, (पोलिस-अधिकारी वा पोलिस-शिपाई) तसेच हे विद्वज्जन, आपण सदा आम्हाशी अनुकूल रहा, कपट-धोका आदीने वागू नका आणि आम्हाला भयापासून वाचवा तसेच चोर, वाघ आदी प्राण्यापासून व रस्त्यातील खड्डे-खळग्यांहून आम्हास वाचवा (रस्ते चांगले तयार करा व येणार्या चोर-दरोडेखोरांपासून मार्ग मुक्त ठेवा) ॥51॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Ye sociable, holy persons, turn yourselves hitherward this day, that fearing I may know your internal intentions. Protect us from the violent thief and dacoit. Save us ye admires of the learned, from the pit in which we are liable to fall.
Meaning
Protective divinities of the yajakas, come to bless us to-day so that I may benefit from the strength innate in your heart. Come lest I feel afraid. Save us from the damage the thief or the tiger might cause. Devotees of yajna, worshippers of Divinity and admirers of the sages, save us from falling into the pit of sin.
Translation
O adorable illustrious ones, abide by me today, so that I cast off fear and gain your affectionate love. May you protect us from the rapacity of the wolf and the wicked. May you protect us from him, who works us misfortune. (1)
Notes
Arvāñcaḥ, अस्मदभिमुखा:, be gracious to us; or abide Vo hārdi vyayeyam, may I win your favour. Nijurah, नितरां जूर्यते हिनस्ति इति निजूः तस्मात्, one who is a vicious murderer. Vṛkasya, in place of, वृकात् from the wolf. Avapadaḥ kartät, from him, who works us misfortune.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (য়জত্রাঃ) সঙ্গতিকর্ত্তা (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ! আপনারা (অদ্য) আজ (অর্বাঞ্চঃ) আমাদের সম্মুখ (ভবত) হউন অর্থাৎ আমাদের হইতে বিরুদ্ধ বিমুখ হইবেন না । (ভয়মানঃ) ভীত হইয়া আমি (বঃ) আপনারা (হার্দি) মনোগতকে (আ, ব্যয়েয়ম্) ভালমত প্রাপ্ত হই । (নঃ) আমাদের (নিজুরঃ) হিংসক (বৃকস্য) চোর বা ব্যাঘ্রের সম্পর্ক হইতে (ত্রাধবম্) রক্ষা করুন । হে (য়জত্রাঃ) বিদ্বান্দিগের সৎকারকারী ব্যক্তিগণ! তোমরা (অবপদঃ) যন্মধ্যে পতিত হও, সেই (কর্ত্তাৎ) কূপ বা গর্ত্ত হইতে আমাদের (ত্রাধবম্) রক্ষা কর ॥ ৫১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–প্রজাপুরুষগণ রাজজনের নিকট প্রার্থনা করিবে–হে পূজ্য রাজপুরুষ বিদ্বান্গণ, আপনারা সর্বদা আমাদের অবিরোধী, কপটাদিরহিত, ভয়নিবারক হউন । চোর-ব্যাঘ্রাদি হইতে মার্গাদি শোধন দ্বারা গর্ত্তাদি হইতে আমাদিগকে রক্ষা করুন ॥ ৫১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒র্বাঞ্চো॑ऽঅ॒দ্যা ভ॑বতা য়জত্রা॒ऽআ বো॒ হার্দি॒ ভয়॑মানো ব্যয়েয়ম্ ।
ত্রাধ্বং॑ নো দেবা নি॒জুরো॒ বৃক॑স্য॒ ত্রাধ্বং॑ ক॒র্ত্তাদ॑ব॒পদো॑ য়জত্রাঃ৫১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অর্বাঞ্চ ইত্যস্য কূর্ম ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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