अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 13
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आर्ची पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
0
स यत्पि॒तॄननु॒व्यच॑लद्य॒मो राजा॑ भू॒त्वानु॒व्यचलत्स्वधाका॒रम॑न्ना॒दं कृ॒त्वा ॥
स्वर सहित पद पाठस: । यत् । पि॒तॄन् । अनु॑ । वि॒ऽअच॑लत् । य॒म: । राजा॑ । भू॒त्वा । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलत् । स्व॒धा॒ऽका॒रम् । अ॒न्न॒ऽअ॒दम् । कृ॒त्वा ॥१४.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
स यत्पितॄननुव्यचलद्यमो राजा भूत्वानुव्यचलत्स्वधाकारमन्नादं कृत्वा ॥
स्वर रहित पद पाठस: । यत् । पितॄन् । अनु । विऽअचलत् । यम: । राजा । भूत्वा । अनुऽव्यचलत् । स्वधाऽकारम् । अन्नऽअदम् । कृत्वा ॥१४.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अतिथिके उपकार का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [व्रात्यअतिथि] (यत्) जब (पितॄन् अनु) पितरों [पालनकर्ता बड़े लोगों की ओर] (व्यचलत्)विचरा, वह (यमः) न्यायी (राजा) राजा (भूत्वा) होकर और (स्वधाकारम्) अपने धारणसामर्थ्य को (अन्नादम्) जीवनरक्षक (कृत्वा) करके (अनुव्यचलत्) लगातार चला गया॥१३॥
भावार्थ
मन्त्र १, २ के समान॥१३, १४॥
टिप्पणी
१३, १४−(पितॄन्)पालकान् महापुरुषान् (यमः) न्यायी (राजा) प्रजाशासकः (स्वधाकारम्)स्वधारणसामर्थ्यम् (स्वधाकारेण) स्वधारणसामर्थ्येन। अन्यत् पूर्ववत्-म० १, २ ॥
विषय
यम: राजा अन्नाद स्वधाकार
पदार्थ
१. (स:) = वह (यत्) = जब (पितृृन अनुव्यचलत्) = पितरों को लक्ष्य करके गतिवाला हुआ तो (यमः राजा भूत्वा अनुव्यचलत्) = संयत व दीसजीवनवाला होकर चला। संयत व दीप्ति जीवनवाला बनकर ही तो वह पितरों के समान बन सकेगा। २. (यः एवं वेद) = जो पितरकोटि में प्रवेश के लिए संयम व ज्ञानदीप्ति के महत्त्व को समझता है, वह (स्वधाकारं अन्नादं कृत्वा) = स्वधाकार को अन्नाद बनाकर चलता है, अर्थात् पहले पितरों [बड़ों] को खिलाकर पीछे स्वयं खाता है [पितृभ्यः स्वधा]। यह (अन्नादेन स्वधाकारेण अन्नं अत्ति) = अन्न खानेवाले स्वधाकार से ही अन्न को खाता है, अर्थात् सदा पितृयज्ञ करके अवशिष्ट को ही खानेवाला बनता है।
भावार्थ
पितृयाणमार्ग का सफलता से आक्रमण करने के लिए आवश्यक है कि हम संयत व ज्ञानदीप्तजीवनवाले बनें और पितरों को खिलाकर पितृयज्ञावशिष्ट को ही खाएँ।
भाषार्थ
(सः) वह प्राणाग्निहोत्री व्रात्य (यत्) जो (पितॄन्) पिता, पितामह आदि वृद्ध पुरुषों को (अनु) लक्ष्य करके (व्यचलद्) विशेषतया चला, वह (यमः) यम नियमों का पालन करने वाला तथा संयमी, (राजा) और इन्द्रियों का राजा, वशयिता (भूत्वा) हो कर (अनु) तदनुसार (व्यचलत्) चला, (स्वधाकारम्) निज के धारण-पोषण रूप कर्म को (अन्नादम्) अन्न भोगी (कृत्वा) कर के।
टिप्पणी
[अर्थात् वृद्ध पिता आदि यमनियमों का पालन करते हुए संयम पूर्वक तथा निज शरीर के केवल धारण-पोषण के निमित्त भोजन करते हैं, विषय भोग के लिए नहीं, इसी प्रकार प्राणाग्निहोत्री भी करे। स्वधाकारम्= स्व +धा (धारण, पोषण) + कार (कर्म)]
विषय
व्रात्य अन्नाद के नानारूप और नाना ऐश्वर्य भोग।
भावार्थ
(सः) वह (यत्) जब (पितृन्) पितृ = पालकों के प्रति (अनुव्यचलत्) चला तो वह स्वयं (यमः राजा भूत्वा) यम राजा होकर (स्वधाकारम् अन्नाद कृत्वा अनुव्यचलत्) स्वधाकार को अन्नभोक्ता बनाकर चला। (यः एवं वेद) जो व्रात्य के प्रजापति के इस स्वरूप को जान लेता है वह (स्वधाकारेण अन्नादेन अन्नम् अत्ति) स्वधाकार रूप अन्नाद से अन्न का भोग करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ प्र० त्रिपदाऽनुष्टुप्, १-१२ द्वि० द्विपदा आसुरी गायत्री, [ ६-९ द्वि० भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप् ], २ प्र०, ५ प्र० परोष्णिक्, ३ प्र० अनुष्टुप्, ४ प्र० प्रस्तार पंक्तिः, ६ प्र० स्वराड् गायत्री, ७ प्र० ८ प्र० आर्ची पंक्तिः, १० प्र० भुरिङ् नागी गायत्री, ११ प्र० प्राजापत्या त्रिष्टुप। चतुर्विंशत्यृचं चतुर्दशं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
When he moved towards the Pitrs, parents and grand parents, he became Yama, lord controller and dispenser of law and justice, and thus moved.He made Svadha, offerings to the pitrs, as the receivers and consumers of food.
Translation
When he follows the elders, he follows them becoming the Controller Lord (Yama) and making the utterance of svadha enjoyer of food.
Translation
He, when walks towards fathers and grand-fathers, walks having become Rajayana, the resplendent air and making the act of Svadhakar consumer of food.
Translation
He, when he went away to the Fathers, went away having become justice-loving like a king and having made his innate strength a preserver of life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३, १४−(पितॄन्)पालकान् महापुरुषान् (यमः) न्यायी (राजा) प्रजाशासकः (स्वधाकारम्)स्वधारणसामर्थ्यम् (स्वधाकारेण) स्वधारणसामर्थ्येन। अन्यत् पूर्ववत्-म० १, २ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal