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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 14
    ऋषिः - प्रस्कण्वः देवता - सूर्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
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    अप॒ त्ये ता॒यवो॑ यथा॒ नक्ष॑त्रा यन्त्य॒क्तुभिः॑। सूरा॑य वि॒श्वच॑क्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । त्ये । ता॒यव॑: । य॒था॒ । नक्ष॑त्रा । य॒न्ति॒ । अ॒क्तुऽभि॑: ॥ सूरा॑य । वि॒श्वऽच॑क्षसे ॥४७.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप त्ये तायवो यथा नक्षत्रा यन्त्यक्तुभिः। सूराय विश्वचक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । त्ये । तायव: । यथा । नक्षत्रा । यन्ति । अक्तुऽभि: ॥ सूराय । विश्वऽचक्षसे ॥४७.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वचक्षसे) सबके दिखानेवाले (सूराय) सूर्य के लिये (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (नक्षत्रा) तारा गण (अप यन्ति) भाग जाते हैं, (यथा) जैसे (त्ये) वे (तायवः) चोर [भाग जाते हैं] ॥१४॥

    भावार्थ

    सूर्य के प्रकाश से रात्रि का अन्धकार मिट जाता है, मन्द चमकनेवाले नक्षत्र छिप जाते हैं, और चोर लोग भाग जाते हैं, वैसे ही वेदविज्ञान फैलने से अधर्म का नाश और धर्म की वृद्धि होती है ॥१४॥

    टिप्पणी

    १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥

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    विषय

    सूर्योदय-नक्षत्रविलय

    पदार्थ

    १. (विश्वचक्षसे) = सबको प्रकाशित करनेवाले (सूराय) = सूर्य के लिए-मानो सूर्य के आगमन के लिए स्थान को रिक्त करने के उद्देश्य से ही (नक्षत्रा) = नक्षत्र (अक्तुभिः) = रात्रियों के साथ इसप्रकार (अपयन्ति) = दूर चले जाते हैं, (यथा) = जैसेकि रात्रियों के साथ (त्ये तायवः) = वे चोर चले जाते हैं। चोर रात्रि के अन्धकार में ही चोरी करते हैं। अन्धकार-विलय के साथ ये चोरी आदि कार्य समाप्त हो जाते हैं। २. हमारे जीवनों में भी ज्ञान-सूर्योदय होता है और वासना-अन्धकार का विलय हो जाता है। वासना-विनाश से ही सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति के इच्छारूप नक्षत्र भी विलीन हो जाते हैं। ये भोग-इच्छाएँ ही तो हमारी शक्तियों का अपहरण करने के कारण चोरों के समान थीं। ज्ञान-सूर्योदय के होते ही ये समाप्त हो जाती हैं।

    भावार्थ

    जीवनों में ज्ञान-सूर्य के उदय होते ही भोग-इच्छारूप नक्षत्र अस्त हो जाते हैं।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (अक्तुभिः) रात्रियों समेत (नक्षत्रा) नक्षत्र-तारा-गण, सूर्य के प्रकाश में (अप यन्ति) हट जाते हैं, वैसे (तायवः) चोरी से अज्ञानान्धकार में आत्मा में प्रविष्ट हो जानेवाले काम, क्रोध, लोभ आदि, प्रभु के प्रकाश में (अप यन्ति) हट जाते हैं, उस उपासक के लिए जो कि (सूराय) सूर्य के सदृश आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित है, और (विश्वचक्षसे) विश्व के रहस्य का जिसने साक्षात्कार कर लिया है।

    टिप्पणी

    [तायवः=चोर (निघं০ ३.२४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    And, as thieves of the night steal away at dawn, so do all those stars steal away alongwith the darkness of the night so that the world may see only the sun, lord supreme of the heavens.

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    Translation

    For the All-beholding, All-impelling Lord the constellation pass away with nights like the thieves.

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    Translation

    For the All-beholding. All-impelling Lord the constellation pass away with nights like the thieves.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১৩-২১ আধ্যাত্মোপদেশঃ ॥

    भाषार्थ

    (বিশ্বচক্ষসে) সকলের প্রকাশকারী (সূরায়) সূর্যের জন্য (অক্তুভিঃ) রাত্রির সাথে (নক্ষত্রা) গতিশীল তারাগণ (অপ যন্তি) দূরে চলে যায়, (যথা) যেমন (ত্যে) সেই (তায়বঃ) চোর [পালিয়ে যায়] ॥১৪॥

    भावार्थ

    সূর্যের প্রকাশ দ্বারা রাত্রির অন্ধকার দূর হয়, মৃদু উজ্জ্বল নক্ষত্র লুকিয়ে যায় এবং চোরেরা পালিয়ে যায়, তেমনই বেদবিজ্ঞান বিস্তারিত হলে অধর্মের নাশ এবং ধর্মের বৃদ্ধি হয় ॥১৪॥

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    भाषार्थ

    (যথা) যেমন (অক্তুভিঃ) রাত্রি সমেত (নক্ষত্রা) নক্ষত্র-তারা-গণ, সূর্যের আলোতে (অপ যন্তি) দূরে সরে যায়, তেমনই (তায়বঃ) অলক্ষ্যে/গোপনে অজ্ঞানান্ধকারে আত্মার মধ্যে প্রবিষ্ট কাম, ক্রোধ, লোভ আদি, প্রভুর প্রকাশে (অপ যন্তি) সরে যায়/অপসারিত হয়, সেই উপাসকের জন্য যে (সূরায়) সূর্যের সদৃশ আধ্যাত্মিক জ্ঞানের প্রকাশ দ্বারা প্রকাশিত, এবং (বিশ্বচক্ষসে) বিশ্বের রহস্য যে সাক্ষাৎকার করেছে।

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