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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
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    इन्द्र॒ इद्धर्योः॒ सचा॒ संमि॑श्ल॒ आ व॑चो॒युजा॑। इन्द्रो॑ व॒ज्री हि॑र॒ण्ययः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । इत‌् । हर्यो॑: । सचा॑ । सम्ऽमि॑श्ल: । आ । व॒च॒:ऽयुजा॑ ॥ इन्द्र॑: । व॒ज्री । हि॒र॒ण्यय॑: ॥४७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र इद्धर्योः सचा संमिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्ययः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । इत‌् । हर्यो: । सचा । सम्ऽमिश्ल: । आ । वच:ऽयुजा ॥ इन्द्र: । वज्री । हिरण्यय: ॥४७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (वज्री) वज्रधारी, (हिरण्ययः) तेजोमय (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (इत्) ही (इन्द्रः) वायु [के समान] (सचा) नित्य मिले हुए (हर्योः) दोनों संयोग-वियोग गुणों का (संमिश्लः) यथावत् मिलानेवाला (आ) और (वचोयुजा) वचन का योग्य बनानेवाला है ॥॥

    भावार्थ

    जैसे पवन के आने-जाने से पदार्थों में चलने, फिरने, ठहरने का और जीभ में बोलने का सामर्थ्य होता है, वैसे ही दण्डदाता प्रतापी राजा के न्याय से सब लोगों में शुभ गुणों का संयोग और दोषों का वियोग होकर वाणी में सत्यता होती है ॥॥

    टिप्पणी

    ४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥

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    विषय

    वज्री हिरण्ययः

    पदार्थ

    १. (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (इत्) = निश्चय से (हर्योः) = इन्द्रियाश्वों को (संमिश्ल:) = हमारे साथ मिलानेवाले हैं। हमारे शरीर में प्रभु ही ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्वों को जोतते हैं। ये इन्द्रियाश्व (सचा) = परस्पर मेलवाले हैं, अर्थात् ज्ञानेन्द्रियों के ज्ञान के अनुसार कर्मेन्द्रियाँ कर्म करती हैं। ये इन्द्रियाश्व (आ) = सर्वथा (वचोयुजा) = वेदवाणी के अनुसार कर्मों में प्रवृत्त होनेवाले हैं। २. परिणामत: (इन्द्रः) = इन इन्द्रियों का अधिष्ठाता जीव (वज्री) = क्रियाशीलतारूप वज्र को हाथ में लिये हुए होता है और (हिरण्ययः) = ज्योतिर्मय मस्तिष्कवाला होता है। क्रियाशीलता इसे शक्ति-सम्पन्न बनाती है और स्वाध्याय ज्ञान-सम्पन्न ।

    भावार्थ

    हम इस शरीर में कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्मों को करते हुए शक्ति-सम्पन्न बनें। ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ज्ञान-वृद्धि करते हुए ज्योतिर्मय जीवनवाले हों।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः इत्) परमेश्वर ही (हर्योः) ऋग्वेद की स्तुतियों और सामगानों में (आ) पूर्णतया और (सम्) सम्यम् प्रकार से (सचा मिश्लः) मानो समवाय सम्बन्ध से मिश्रित हुआ-हुआ है, चूंकि (वचोयुजा) ऋग्वेद और सामवेद का जोड़ा, परमेश्वर का ही प्रवचन करता है। (इन्द्रः) परमेश्वर (वज्री) न्यायवज्रधारी है, (हिरण्ययः) तथा हिरण्य सदृश बहुमूल्य सम्पत्ति है। [देखो व्याख्या सू০ ३८, मं০ ५।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, the omnipresent Spirit, Indra, the universal energy of vayu or maruts, and Indra, the solar energy, the bond of unity and sustenance in things, co¬ existent synthesis of equal and opposite complementarities of positive and negative, activiser of speech, lord of the thunderbolt and the golden light of the day and the year.

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    Translation

    God Almighty is the holder of thunder-bolt and He is selfrefulgent. He maintaise the co-ordination between two cooperating forces (the electricity and air) which unite the speed.

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    Translation

    God Almighty is the holder of thunder-bolt and He is self refulgent. He maintaise the co-ordination between two cooperating forces (the electricity and air) which unite the speed.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বজ্রী) বজ্রধারী, (হিরণ্যযঃ) তেজোময় (ইন্দ্র) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান রাজা] (ইৎ)(ইন্দ্রঃ) বায়ুর [ন্যায়] (সচা) নিত্য সমবেত (হর্যোঃ) উভয় সংযোগ-বিয়োগ গুণসমূহের (সংমিশ্লঃ) যথাযথ সংমিশ্রনকারী (আ) এবং (বচোয়ুজা) বচন যোগ্য করেন ॥৫॥

    भावार्थ

    যেমন বায়ুপ্রবাহের মাধ্যমে পদার্থের মধ্যে সঞ্চালন, স্থির থাকার এবং জিভে কথা বলার শক্তি হয়, তেমনই দণ্ডদাতা প্রতাপী রাজার ন্যায় দ্বারা সকল লোকেদের মধ্যে শুভগুণের সংযোগ ও দোষের বিয়োগ হয়ে বাণীতে সত্যতা হয় ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ ইৎ) পরমেশ্বরই (হর্যোঃ) ঋগ্বেদের স্তুতি-সমূহ এবং সামগানের মধ্যে (আ) পূর্ণরূপে এবং (সম্) সম্যম্ প্রকারে (সচা মিশ্লঃ) মানো সমবায় সম্বন্ধ দ্বারা মিশ্রিত, কেননা/কারণ (বচোয়ুজা) ঋগ্বেদ এবং সামবেদের সমন্বয়, পরমেশ্বরেরই প্রবচন করে। (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (বজ্রী) ন্যায়বজ্রধারী, (হিরণ্যয়ঃ) তথা হিরণ্য সদৃশ বহুমূল্য সম্পত্তি। [দেখো ব্যাখ্যা সূ০ ৩৮, মং০ ৫।]

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