अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 18
येना॑ पावक॒ चक्ष॑सा भुर॒ण्यन्तं॒ जनाँ॒ अनु॑। त्वं व॑रुण॒ पश्य॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । पा॒व॒क॒ । चक्ष॑सा । भु॒र॒ण्यन्त॑म् । जना॑न् । अनु॑ ॥ त्वम् । व॒रु॒ण॒ । पश्य॑सि ॥१७.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । पावक । चक्षसा । भुरण्यन्तम् । जनान् । अनु ॥ त्वम् । वरुण । पश्यसि ॥१७.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(पावक) हे पवित्र करनेवाले ! (वरुण) हे उत्तम गुणवाले ! [सूर्य रविमण्डल] (येन) जिस (चक्षसा) प्रकाश से (भुरण्यन्तम्) धारण और पोषण करते हुए [पराक्रम] को (जनान् अनु) उत्पन्न प्राणियों में (त्वम्) तू (पश्यसि) दिखाता है ॥१८॥
भावार्थ
जैसे सूर्य अपने प्रकाश से वृष्टि आदि द्वारा अपने घेरे के सब प्राणियों और लोकों का धारण-पोषण करता है, वैसे ही मनुष्य सर्वोपरि विराजमान परमात्मा के ज्ञान से परस्पर सहायक होकर सुखी होवें ॥१८, १९॥
टिप्पणी
१३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥
विषय
पवित्र-निष-लोकहितप्रवृत्त
पदार्थ
१. हे (पावक) = प्रकाश से जीवनों को पवित्र करनेवाले। (वरुण) = सब रोगों व आसुरभावों का निवारण करनेवाले सूर्य! (त्वम्) = तू (जनान् भुरण्यन्तम्) = लोगों का भरण-पोषण करनेवाले को (येन चक्षसा) = जिस प्रकाश से (अनुपश्यसि) = अनुकूलता से देखता है, उसी प्रकाश को हम प्राप्त करें। वही प्रकाश हमसे स्तुत्य हो, जो लोग द्वेष का निवारण करके [वरुण] अपने हृदयों को पवित्र बनाकर [पावक] लोकहितकारी कार्यों में प्रवृत्त होते हैं [भुरण्यन्] उनके लिए सूर्य का प्रकाश सदा हितकारी होता है। वृत्ति के उत्तम होने पर सब लोक हमारे लिए हितकर होते हैं। वृत्तियों के विकृत हो जाने पर आधिदैविक आपत्तियाँ आया करती हैं।
भावार्थ
सूर्य का प्रकाश उनके लिए हितकर होता है जो पवित्र व निर्दृष बनकर लोकहित के कार्यों में प्रवृत्त होते हैं।
भाषार्थ
(पावक) हे पवित्र करनेवाले परमेश्वर! (येन चक्षसा) जिस कृपादृष्टि से आप (जनान् अनु) सर्वसाधारण जनों में से (भरण्यन्तम्) योगमार्ग पर तीव्रवेग से चलानेवाले उपासक को (पश्यसि) देखते हैं, उस पर अनुग्रह करते हैं, (वरुण) हे पापनिवारक प्रभो! मेरे पापों का निवारण करके (त्वम्) आप मुझ उपासक को भी कृपा दृष्टि से देखिये, मुझ पर भी अनुग्रह कीजिए।
टिप्पणी
[भुरण्युः=क्षिप्रम् (निघं০ २.१५)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Lord purifier and sanctifier, with the eye with which you watch the mighty world of dynamic activity and humanity holding everything in equipoise, with the same kind and benign eye pray watch and bless us.
Translation
O Ever-pure one, O Meritorious one, you behold the active man throughout mankind with that of your seeing power through which you see everything.
Translation
O Ever-pure one, O Meritorious one, you behold the active man throughout mankind with that of your seeing power through which you see everything.
Translation
See 13.2.21.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১৩-২১ আধ্যাত্মোপদেশঃ ॥
भाषार्थ
(পাবক) হে পবিত্রকারী ! (বরুণ) হে উত্তম গুণসম্পন্ন ! [সূর্য, রবিমণ্ডল] (যেন) যে (চক্ষসা) প্রকাশ দ্বারা (ভুরণ্যন্তম্) ধারণ এবং পোষণ করে [পরাক্রম] (জনান্ অনু) উৎপন্ন প্রাণীদের মধ্যে (ত্বম্) তুমি (পশ্যসি) দর্শাও ॥১৮॥
भावार्थ
যেমন সূর্য নিজের প্রকাশ দ্বারা বৃষ্টি আদির মাধ্যমে নিজের আয়ত্তের সব প্রাণীদের এবং লোক-সমূহকে ধারণ-পোষণ করো, তেমনই মনুষ্য সর্বোপরি বিরাজমান পরমাত্মার জ্ঞান দ্বারা পরস্পর সহায়ক হয়ে সুখী হোক ॥১৮, ১৯॥
भाषार्थ
(পাবক) হে পবিত্রকারী পরমেশ্বর! (যেন চক্ষসা) যে কৃপাদৃষ্টি দ্বারা আপনি (জনান্ অনু) সর্বসাধারণদের মধ্য থেকে (ভরণ্যন্তম্) যোগমার্গে তীব্রবেগে চালনাকারী উপাসককে (পশ্যসি) দেখেন, তাঁর প্রতি অনুগ্রহ করেন, (বরুণ) হে পাপনিবারক প্রভু! আমার পাপের নিবারণ করে (ত্বম্) আপনি আমাকে [উপাসককে]ও কৃপা দৃষ্টিতে দেখুন, আমার প্রতি অনুগ্রহ/কৃপা করুন।
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