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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४७
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    इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑। इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इत् । गा॒थिन॑: । बृ॒हत् । इन्द्र॑म् । अ॒र्केभि॑: । अ॒र्किण॑: ॥ इन्द्र॑म् । वाणी॑: । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥४७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । गाथिन: । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभि: । अर्किण: ॥ इन्द्रम् । वाणी: । अनूषत ॥४७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 47; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गाथिनः) गानेवालों और (अर्किणः) विचार करनेवालों ने (अर्केभिः) पूजनीय विचारों से (इन्द्रम्) सूर्य [के समान प्रतापी], (इन्द्रम्) वायु के समान फुरतीले (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को और (वाणीः) वाणियों [वेदवचनों] को (इत्) निश्चय करके (बृहत्) बड़े ढंग से (अनूषत) सराहा है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य सुनीतिज्ञ, प्रतापी, उद्योगी राजा के और परमेश्वर की दी हुई वेदवाणी के गुणों को विचारकर सबके सुख के लिये यथावत् उपाय करे ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ आ चुके हैं-अ० २०।३८।४-६ और आगे हैं-२०।७०।७-९ ॥ ४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥

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    विषय

    "ऋग-यजु-साम' द्वारा प्रभु का पूजन

    पदार्थ

    १. (गाथिनः) = साममन्त्रों का गायन करनेवाले उद्गाता (इत्) = निश्चय से (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु का (बृहत् अनूषत) = बहुत ही स्तवन करते हैं। (अर्किण:) = ऋचाओं के द्वारा प्रभु का पूजन करनेवाले (अभि:) = इन ऋड्मन्त्रों के द्वारा (इन्द्रम्) = उस प्रभु का ही पूजन करते हैं। २. हमसे उच्चरित वाणी-यजूरूप वाणियाँ भी उस इन्द्रम्-परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही स्तुत करती हैं।

    भावार्थ

    साम, ऋक्व यजूरूप वाणियाँ उस प्रभु का ही स्तवन व पूजन करती हैं।

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    भाषार्थ

    (गाथिनः) सामगान करनेवाले सामगानों द्वारा, (अर्किणः) ऋग्वेदी (अर्केभिः) ऋग्वेद की ऋचाओं द्वारा, (इन्द्रमित्) परमेश्वर का ही (बृहत् अनूषत) महागान करते हैं, और (वाणीः) यजुर्वेद तथा अथर्ववेद की वाणियाँ भी (इन्द्रम् इत्) परमेश्वर का ही महागान करती हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    The singers of Vedic hymns worship Indra, infinite lord of the expansive universe, Indra, the sun, lord of light, Indra, vayu, maruts, currents of energy, and Indra, the universal divine voice, with prayers, mantras, actions and scientific research.

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    Translation

    The invokers and supplicators sing the song of Almighty God through the verses of prayers. The vedic speeches praise the Almighty God.

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    Translation

    The invokers and supplicators sing the song of Almighty God through the verses of prayers. The vedic speeches praise the Almighty God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-६ आ चुके हैं-अ० २०।३८।४-६ और आगे हैं-२०।७०।७-९ ॥ ४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গাথিনঃ) গায়ক এবং (অর্কিণঃ) বিচারশীল মনুষ্যগণ (অর্কেভিঃ) পূজনীয় বিচার-সমূহকে (ইন্দ্রম্) সূর্য [এর সমান প্রতাপী], (ইন্দ্রম্) বায়ু [এর সমান শীঘ্রগামী] (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান রাজা] এর এবং (বাণীঃ) বাণীসমূহ [বেদবচন]কে (ইৎ) নিশ্চিতরূপে (বৃহৎ) যথার্থরূপে (অনূষত) প্রশংসা করেছে ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য সুনীতিজ্ঞ, প্রতাপী, উদ্যোগী রাজার ব্যবহার এবং পরমেশ্বর প্রদত্ত বেদবাণীর গুণ-সমূহ বিচার করে সকলের সুখের জন্য যথাবৎ উপায় করুক॥৪॥ মন্ত্র ৪-৬ আছে-অ০২০।৩৮।৪-৬ এবং আছে-২০।৭০।৭-৯॥

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    भाषार्थ

    (গাথিনঃ) সামগানকারী সামগান দ্বারা, (অর্কিণঃ) ঋগ্বেদী (অর্কেভিঃ) ঋগ্বেদের ঋচা-সমূহ দ্বারা, (ইন্দ্রমিৎ) পরমেশ্বরেরই (বৃহৎ অনূষত) মহাগান করে, এবং (বাণীঃ) যজুর্বেদ তথা অথর্ববেদের বাণীও (ইন্দ্রম্ ইৎ) পরমেশ্বরেরই মহাগান করে।

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