अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 16
त॒रणि॑र्वि॒श्वद॑र्शतो ज्योति॒ष्कृद॑सि सूर्य। विश्व॒मा भा॑सि रोचन ॥
स्वर सहित पद पाठत॒रणि॑: । वि॒श्वऽद॑र्शत: । ज्यो॒ति॒:ऽकृत् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ ॥ विश्व॑म् । आ । भा॒सि॒ । रो॒च॒न॒ ॥४७.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमा भासि रोचन ॥
स्वर रहित पद पाठतरणि: । विश्वऽदर्शत: । ज्योति:ऽकृत् । असि । सूर्य ॥ विश्वम् । आ । भासि । रोचन ॥४७.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सूर्य) हे सूर्य ! तू (तरणिः) अन्धकार से पार करनेवाला, (विश्वदर्शतः) सबका दिखानेवाला, (ज्योतिष्कृत्) [चन्द्र आदि में] प्रकाश करनेवाला (असि) है। (रोचन) हे चमकनेवाले ! तू (विश्वम्) सबको (आ) भले प्रकार (भासि) चमकाता है ॥१६॥
भावार्थ
जैसे यह सूर्य, अग्नि, बिजुली, चन्द्रमा, नक्षत्र आदि पर अपना प्रकाश डालकर उन्हें चमकीला बनाता है, वैसे ही परमात्मा अपने सामर्थ्य से सब सूर्य आदि को रचता है और वैसे ही विद्वान् लोग विद्या के प्रकाश से संसार को आनन्द देते हैं ॥१६॥
टिप्पणी
१३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥
विषय
तरणिः-ज्योतिष्कृत्
पदार्थ
१. हे (सूर्य) = सूर्य ! तू (तरणि) = उदय होता हुआ रोगकृमियों के विनाश के द्वारा हमें रोगों से तारनेवाला है। (विश्वदर्शत:) = इसप्रकार तू सारे संसार का ध्यान करता है [विश्वं द्रष्टव्यं यस्य दृश् to look after], (ज्योतिष्कृत् असि) = तू सर्वत्र प्रकाश करनेवाला है। (विश्वम् रोचनम्) = सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को (आ भासि) = तु भासित करता है। २. सूर्य रोगकृमियों के विनाश के द्वारा शरीर को स्वस्थ करता है [तरणिः] मस्तिष्क को यह ज्योतिर्मय करता है [ज्योतिष्कृत्] हृदयान्तरिक्ष को सब मलिताओं से रहित करके चमका देता है। एवं, सूर्य के प्रकाश का प्रभाव 'शरीर, मन व मस्तिष्क' तीनों पर पड़ता है। यह इन्हें नीरोग, निर्मल व दीप्त बनाता है।
भावार्थ
उदय होता हुआ सूर्य 'शरीर, मन व मस्तिष्क' के स्वास्थ्य को प्राप्त कराता है।
भाषार्थ
हे परमेश्वर! आप भवसागर से (तरणिः) तैरानेवाली नौका हैं, (विश्वदर्शतः) विश्व के द्रष्टा हैं। (सूर्य) हे सूर्यों के सूर्य! (ज्योतिष्कृत् असि) आप ही प्राकृतिक और आध्यात्मिक ज्योतियों के कर्त्ता हैं। (रोचन) हे ज्योतिर्मय! आप ही (विश्वम्) विश्व को (आ भासि) सब प्रकार से प्रभायुक्त कर रहें हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
O Sun, light of the world, creator of light and Light Itself, it is you alone who light the lights of the universe and reveal the worlds. You are the saviour, you are the redeemer, taking us across the seas of existence.
Translation
O All-impelling God. you are very swift saviour and the illuminator of light. You illumine all the universe.
Translation
O All-impelling God. you are very swift savior and the illuminator of light. You illumine all the universe.
Translation
See 13.2.19.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১৩-২১ আধ্যাত্মোপদেশঃ ॥
भाषार्थ
(সূর্য) হে সূর্য ! তুমি (তরণিঃ) অন্ধকার থেকে উদ্ধারকারী (বিশ্বদর্শতঃ) সর্বপ্রকাশক এবং (জ্যোতিষ্কৃৎ) [চন্দ্র আদির মধ্যে] প্রকাশকারী (অসি) হও। (রোচন) হে প্রকাশমান তুমি (বিশ্বম্) সবকিছু (আ) উত্তমরূপে (ভাসি) চমকিত করো॥১৬॥
भावार्थ
যেমন এই সূর্য অগ্নি, বিদ্যুৎ, চন্দ্র, নক্ষত্র ইত্যাদির ওপর নিজের আলো ফেলে সেগুলো চমকিত করে, তেমনই পরমাত্মা নিজের সামর্থ্য দ্বারা সব সূর্য আদি রচনা করেন এবং তেমনই বিদ্বানগণ বিদ্যার প্রকাশ দ্বারা সংসারকে আনন্দ দেয় ॥১৬॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! আপনি ভবসাগর থেকে (তরণিঃ) উদ্ধারকারী নৌকা/তরণী, (বিশ্বদর্শতঃ) বিশ্বের দ্রষ্টা। (সূর্য) হে সূর্য-সমূহের সূর্য! (জ্যোতিষ্কৃৎ অসি) আপনিই প্রাকৃতিক এবং আধ্যাত্মিক জ্যোতি-সমূহের কর্ত্তা। (রোচন) হে জ্যোতির্ময়! আপনিই (বিশ্বম্) বিশ্বকে (আ ভাসি) সব প্রকারে প্রভাযুক্ত করছেন।
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