अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 6
इन्द्रो॑ दी॒र्घाय॒ चक्ष॑स॒ आ सूर्यं॑ रोहयद्दि॒वि। वि गोभि॒रद्रि॑मैरयत् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । दी॒र्घाय॑ । चक्ष॑से । आ । सूर्य॑म् । रो॒ह॒य॒त् । दि॒वि ॥ वि । गोभि॑: । अद्रि॑म् । ऐ॒र॒य॒त् ॥४७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो दीर्घाय चक्षस आ सूर्यं रोहयद्दिवि। वि गोभिरद्रिमैरयत् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । दीर्घाय । चक्षसे । आ । सूर्यम् । रोहयत् । दिवि ॥ वि । गोभि: । अद्रिम् । ऐरयत् ॥४७.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (दीर्घाय) दूर तक (चक्षसे) देखने के लिये (दिवि) व्यवहार [वा आकाश] के बीच (गोभिः) वेदवाणियों द्वारा [वा किरणों वा जलों द्वारा] (सूर्यम्) सूर्य [के समान प्रेरक] और (अद्रिम्) मेघ [के समान उपकारी पुरुष] को (आ रोहयत्) ऊँचा किया और (वि) विविध प्रकार (ऐरयत्) चलाया है ॥६॥
भावार्थ
जैसे परमेश्वर के नियम से सूर्य आकाश में चलकर ताप आदि गुणों से अनेक लोकों को धारण करता और किरणों द्वारा जल सींचकर फिर बरसाकर उपकार करता है, वैसे ही दूरदर्शी राजा अपने प्रताप और उत्तम व्यवहार से सब प्रजा को नियम में रक्खे और कर लेकर उनका प्रतिपालन करे ॥६॥
टिप्पणी
४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥
विषय
अविद्या-पर्वत का विदारण
पदार्थ
१. (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु (दीर्घाय चक्षसे) = अन्धकार का विदारण करनेवाले विस्तृत प्रकाश के लिए (सूर्यम्) = सूर्य को (दिवि) = द्युलोक में (आरोहयत्) = आरूढ़ करते हैं। २. जिस प्रकार प्रभु बाह्य अन्धकार को दूर करने के लिए सूर्य को उदित करते हैं, इसी प्रकार (गोभिः) = ज्ञान की रश्मियों के द्वारा (अद्रिम्) = अविद्या-पर्वत को (वि ऐरयत्) = विशिष्टरूप से कम्पित करके विनष्ट करते हैं।
भावार्थ
प्रभु बाह्य आकाश में सूर्य का उदय करते हैं और अन्त:आकाश [मस्तिष्क] में ज्ञानरश्मियों का। इन ज्ञानरश्मियों को प्राप्त करके इनके अनुसार अपने कर्तव्यपालन में प्रसित पुरुष 'इरिम्बिठि' बनता है। क्रियाशीलता की भावना से युक्त हृदयान्तरिक्षवाला यही अगले तीन मन्त्रों का ऋषि -
भाषार्थ
(इन्द्रः) परमेश्वर ने (दीर्घाय) दूर-दूर तक (चक्षसे) देखने के लिए, (दिवि) द्युलोक में (सूर्यम्) सूर्य का (आ रोहयत्) आरोहण किया है। और (गोभिः) सूर्य की किरणों द्वारा (अद्रिम्) मेघ को (वि ऐरयत्) विविध स्थानों में प्रेरित किया है। [देखो व्याख्या सू০ ३८, मं০ ६।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, lord omnipotent, raised the sun high up in the heavens for expansive light and vision. With the rays of the sun, He forms and moves the cloud for rain.
Translation
God Almighty for the sake of vast visibility lifted up the sun to the heavenly region. He moves the cloud with the motions of air.
Translation
God Almighty for the sake of vast visibility lifted up the sun to the heavenly region. He moves the cloud with the motions of air.
Translation
See 20.38.6.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४-६-एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३८।४-६ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মা] (দীর্ঘায়) দূর পর্যন্ত (চক্ষসে) দেখার জন্য (দিবি) ব্যবহার [বা আকাশ] এর মাঝে (গোভিঃ) বেদবাণী দ্বারা [বা কিরণ ও জল দ্বারা] (সূর্যম্) সূর্য [সূর্যের ন্যায় প্রেরক] ও (অদ্রিম্) মেঘ [মেঘের সমান উপকারী পুরুষকে] (আ রোহয়ৎ) স্থাপিত করেছেন এবং (বি) বিবিধ প্রকারে (ঐরয়ৎ) প্রেরিত করেছেন॥৬॥
भावार्थ
যেমন পরমেশ্বরের নিয়মে সূর্য তাপ আদি গুণ দ্বারা অনেক লোকসমূহ ধারণ করে এবং কিরণসমূহ দ্বারা জল শোষন করে পুণরায় বর্ষন করে উপকার করে, তেমনই দূরদর্শী রাজা নিজের প্রতাপ ও উত্তম ব্যবহার দ্বারা সকল প্রজাকে নিয়মে রাখেন এবং কর গ্রহণ করে তাঁদের প্রতিপালন করেন ॥৬॥
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (দীর্ঘায়) দূর-দূর পর্যন্ত (চক্ষসে) দেখার জন্য, (দিবি) দ্যুলোকে, (সূর্যম্) সূর্যের (আ রোহয়ৎ) আরোহণ করিয়েছেন, এবং (গোভিঃ) সূর্যের কিরণ-সমূহ দ্বারা (অদ্রিম্) মেঘকে (বি ঐরয়ৎ) বিবিধ স্থানে প্রেরিত করেছেন।
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