अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 47/ मन्त्र 2
इन्द्रः॒ स दाम॑ने कृ॒त ओजि॑ष्ठः॒ स मदे॑ हि॒तः। द्यु॒म्नी श्लो॒की स सो॒म्यः ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । स: । दाम॑ने । कृ॒त: । ओजि॑ष्ठ: । स: । मदे॑ । हि॒त: ॥ द्यु॒म्नी । श्लो॒की । स: । सो॒म्य: ॥४७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः स दामने कृत ओजिष्ठः स मदे हितः। द्युम्नी श्लोकी स सोम्यः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । स: । दामने । कृत: । ओजिष्ठ: । स: । मदे । हित: ॥ द्युम्नी । श्लोकी । स: । सोम्य: ॥४७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (दामने) दान करने के लिये और (सः) वह (मदे) आनन्द देने के लिये (ओजिष्ठः) महाबली और (हितः) हितकारी (कृतः) बनाया गया है, (सः) वह (द्युम्नी) अन्नवाला और (श्लोकी) कीर्तिवाला पुरुष (सोम्यः) ऐश्वर्य के योग्य है ॥२॥
भावार्थ
प्रजागण प्रतापी, गुणी पुरुष को इसलिये राजा बनावें कि वह प्रजा के उपकार के लिये दान करके प्रयत्न करे और अन्न आदि पदार्थ बढ़ाकर कीर्ति पावे ॥२॥
टिप्पणी
२−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (सः) (दामने) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४। ददातेः-मनिन्। दानाय (कृतः) स्वीकृतः (ओजिष्ठः) ओजस्वितमः (सः) (मदे) आनन्ददानाय (हितः) हितकरः (द्युम्नी) अन्नवान् (श्लोकी) कीर्तिमान् (सः) (सोम्यः) ऐश्वर्ययोग्यः ॥
विषय
'इन्द्र' का लक्षण
पदार्थ
१. (इन्द्रः सः) = इन्द्र वह है-इन्द्रियों का अधिष्ठाता जीव वह है जो (दामने) = इन्द्रियों के दमन के निमित्त (कृत:) = किया गया है जिसका ध्येय इन्द्रियों का वशीकरण है। यह (ओजिष्ठः) = ओजस्वितम बनता है-इन्द्रियविजय ही इसे ओजस्वी बनाता है। ओजस्विता के कारण (सः) = वह (मदे) = सोमरक्षण जनित उल्लास में (हित:) = स्थापित होता है। २. यह इन्द्र (द्युम्नी) = सुरक्षित सोम को ज्ञानाग्नि का इंधन बनाकर दीत ज्ञानज्योतिवाला होता है। (श्लोकी) = उत्तम कर्मों को करता हुआ यशस्वी होता है। (सः) = वह यशस्वी होता हुआ भी सोम्यः अत्यन्त शान्त, विनीत स्वभाववाला होता है।
भावार्थ
इन्द्र वह है जो इन्द्रियदमन को अपना ध्येय बनाता है। इन्द्रियदमन द्वारा ओजस्वी बनता है। सोम-रक्षण द्वारा उल्लासमय जीवनवाला होता है। ज्ञानज्योति को प्राप्त करके बड़े यशस्वी जीवनवाला होता है। इस सबके होते हुए अतिविनीत बनता है।
भाषार्थ
(सः) वह (इन्द्रः) परमेश्वर (दामने) शक्तिप्रदान के लिए, (कृतः) हम उपासकों ने अपनी ओर प्रेरित कर लिया है, अथवा वश में कर लिया है, जैसे कि कोई (दामने) रस्सी में बन्धा जाकर वश में कर लिया जाता है। (ओजिष्ठः) अत्यन्त ओजस्वी (सः) वह परमेश्वर (मदे) हमारी आत्मतृप्ति के लिए, (हितः) हितकर है, (सः) वह (द्युम्नी) यशस्वी है, (श्लोकी) वेदमन्त्रों का स्वामी है, (सोम्यः) सौम्यस्वभाव वाला है।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, mind and intelligence, was created for enlightenment and for giving enlightenment. Most lustrous and powerful, it is engaged in the creation of joy. It is rich in the wealth of knowledge, praise-worthy, and cool, gentle and at peace in the state of enlightenment.
Translation
The Almighty God is deemed to be the giver of all gifts. He is most powerful and He rests in blessedness. He is master of wealth, symbol of all respect and endowed with generous qualities.
Translation
The Almighty God is deemed to be the giver of all gifts. He is most powerful and He rests in blessedness. He is master of wealth, symbol of all respect and endowed with generous qualities.
Translation
That Donor is made for giving the various gifts. The most Mighty One is engrossed in providing the best joys and pleasures to His subjects He is Glorious, Praiseworthy and Pleasure-giving.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (सः) (दामने) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४। ददातेः-मनिन्। दानाय (कृतः) स्वीकृतः (ओजिष्ठः) ओजस्वितमः (सः) (मदे) आनन्ददानाय (हितः) हितकरः (द्युम्नी) अन्नवान् (श्लोकी) कीर्तिमान् (सः) (सोम्यः) ऐश्वर्ययोग्यः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(সঃ) সেই (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান রাজা] (দামনে) দান করার জন্য এবং (সঃ) তিনি (মদে) আনন্দ দেওয়ার জন্য (ওজিষ্ঠঃ) মহাবলী ও (হিতঃ) হিতকারী (কৃতঃ) করা হয়েছে, (সঃ) সেই/তিনি (দ্যুম্নী) অন্নবান এবং (শ্লোকী) কীর্তিমান পুরুষ (সোম্যঃ) ঐশ্বর্যের যোগ্য হন ॥২॥
भावार्थ
প্রজাগণ প্রতাপী, গুণী পুরুষকে এজন্য রাজা করবে যেন, তিনি প্রজার উপকারের জন্য দান করেন প্রচেষ্টা করেন এবং অন্নাদি পদার্থ বৃদ্ধি করে কীর্তিমান হবেন ॥২॥
भाषार्थ
(সঃ) সেই (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বরকে (দামনে) শক্তিপ্রদানের জন্য, (কৃতঃ) আমার উপাসকগণ নিজের দিকে প্রেরিত করেছি, অথবা বশবর্তী করেছি, যেমন কোনো (দামনে) দড়িতে বেঁধে বশ করা হয়। (ওজিষ্ঠঃ) অত্যন্ত ওজস্বী/তেজস্বী (সঃ) সেই পরমেশ্বর (মদে) আমাদের আত্মতৃপ্তির জন্য, (হিতঃ) হিতকর, (সঃ) তিনি (দ্যুম্নী) যশস্বী, (শ্লোকী) বেদমন্ত্রের স্বামী, (সোম্যঃ) সৌম্যস্বভাবযুক্ত।
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