अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
क्षुत्कु॒क्षिरिरा॑ वनि॒ष्ठुः पर्व॑ताः प्ला॒शयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्षुत् । कु॒क्षि: । इरा॑ । व॒नि॒ष्ठु: । पर्व॑ता: । प्ला॒शय॑: ॥१२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षुत्कुक्षिरिरा वनिष्ठुः पर्वताः प्लाशयः ॥
स्वर रहित पद पाठक्षुत् । कुक्षि: । इरा । वनिष्ठु: । पर्वता: । प्लाशय: ॥१२.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ
[सृष्टि में] (क्षुत्) भूख (कुक्षिः) कोख, (इरा) अन्न (वनिष्ठुः) वनिष्ठु [अन्न रक्त आदि बाँटनेवाली आँत], (पर्वताः) मेघ (प्लाशयः) प्लाशियों [अन्न के आधार आँतों के समान हैं] ॥१२॥
भावार्थ
मन्त्र ७ के समान है ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(क्षुत्) बुभुक्षा (कुक्षिः) उदरपार्श्वः (इरा) अन्नम् (वनिष्ठुः) अ० २।३३।४। अन्नरक्तादिसंभाजकं स्थूलान्त्रम् (पर्वताः) मेघाः-निघ० १।१०। (प्लाशयः) अ० २।३३।४। प्र+अश भोजने−इञ्। रस्य लः। अन्नाधारा अन्त्रविशेषाः ॥
विषय
मित्र से प्रजा तक
पदार्थ
१.(मित्र: च वरुणः च) = मित्र और वरुण (अंसौ) = कन्धे हैं, (त्वष्टा च अर्यमा च) = त्वष्टा और अर्यमा (दोषणी) = भुजाओं के ऊपर के भाग हैं, (महादेवः बाहः) = महादेव बाहु हैं [अगली टाँगों का पिछला भाग], (इन्द्राणी) = विद्युत्-शक्ति (भसत्) = गुह्यभाग है, (वायुः पुच्छम्) = वायु पूंछ है, (पवमानः बाला:) = बहता हुआ वायु उसके बाल हैं। २. (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ब्रह्म और क्षत्र [ब्राह्मण और क्षत्रिय] (श्रोणी) = उसके श्रोणीप्रदेश [कुल्हे] हैं, (बलम्) = बल [सेना] (ऊरू) = जाँचे हैं। (धाता च सविता च) = धाता और सविता उसके (अष्ठीवन्तौ) = टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघा:) = गन्धर्व जंघाएँ हैं (अप्सरस:) = रूपवती स्त्रियाँ [अप्सराएँ] (कुष्ठिका:) = खुरों के ऊपर-पीछे की ओर लगी अंगुलियाँ हैं, (अदितिः) = पृथिवी (शफा:) = खुर हैं। ३. (चेत:) = चेतना (हृदयम्) = हृदय है, (मेधा) = बुद्धि (यकृत्) = जिगर है, (व्रत पुरीतत्) = व्रत उसकी अति है, (क्षुत् कुक्षि:) = भूख कोख है, (इरा) = अन्न व जल (वनिष्टुः) = गुदा व बड़ी आँतें हैं, (पर्वता:) = पर्वत व मेघ (प्लाशय:) = छोटी आंत हैं, (क्रोध:) = क्रोध वृक्को -गुर्दे हैं, (मन्यु:) = शोक व दीप्ति (आण्डौ) = अण्डकोश हैं, (प्रजा शेप:) = प्रजाएँ उसका लिंगभाग हैं [वृक्की पुष्टिकरी प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः । वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकर लिङ्गमयन वीर्यमूत्रयोः-शार्ङ्गधर]।
भावार्थ
वेद में मित्र, वरुण से लेकर क्रोध, मन्यु, प्रजा आदि का सुचारुरूपेण प्रतिपादन है।
भाषार्थ
(क्षुत्) क्षुधा है (कुक्षिः) कोख, जठर, (इरा) अन्न है (वनिष्ठुः) स्थूल-आन्त [colon], (पर्वताः) पर्वत हैं (प्लाशयः) प्लाशियां, मांस पेशियां, mussles।
टिप्पणी
[कुक्षिः = पशु की वह थैली जिसमें कि चबाया हुआ चारा एकत्रित होता है, जिस की कि जुगाली पशु करते हैं। वनिष्ठुः = “वनिष्ठोः स्थविरान्त्रात् (सायण, अथर्व० २।३३।४)। प्लाशयः = मांसपेशियां। ये शरीर में पर्वतश्रेणी के सदृश परस्पर सम्बद्ध हुई फैली हुई हैं । इरा-और-वनिष्ठु में तादात्म्य वर्णित किया है। वनिष्ठु में निःसार परिपक्व मल होता है]
इंग्लिश (4)
Subject
Cow: the Cosmic Metaphor
Meaning
Hunger is the assimilative power of digestion, food is the colon, mountains are the muscles.
Translation
Hunger (ksut) is his belly (kuksih), enjoyment (ira) his rectum (vanisthuh) and mountains his prostrate gland (plasih).
Translation
Hunger is the abdomen, cerial is like rectum and mountains like the inward parts.
Translation
Hunger is the belly, corn is the rectum, clouds are the inward parts.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(क्षुत्) बुभुक्षा (कुक्षिः) उदरपार्श्वः (इरा) अन्नम् (वनिष्ठुः) अ० २।३३।४। अन्नरक्तादिसंभाजकं स्थूलान्त्रम् (पर्वताः) मेघाः-निघ० १।१०। (प्लाशयः) अ० २।३३।४। प्र+अश भोजने−इञ्। रस्य लः। अन्नाधारा अन्त्रविशेषाः ॥
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