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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - गौ सूक्त
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    क्षुत्कु॒क्षिरिरा॑ वनि॒ष्ठुः पर्व॑ताः प्ला॒शयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षुत् । कु॒क्षि: । इरा॑ । व॒नि॒ष्ठु: । पर्व॑ता: । प्ला॒शय॑: ॥१२.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षुत्कुक्षिरिरा वनिष्ठुः पर्वताः प्लाशयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षुत् । कुक्षि: । इरा । वनिष्ठु: । पर्वता: । प्लाशय: ॥१२.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 12
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [सृष्टि में] (क्षुत्) भूख (कुक्षिः) कोख, (इरा) अन्न (वनिष्ठुः) वनिष्ठु [अन्न रक्त आदि बाँटनेवाली आँत], (पर्वताः) मेघ (प्लाशयः) प्लाशियों [अन्न के आधार आँतों के समान हैं] ॥१२॥

    भावार्थ

    मन्त्र ७ के समान है ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(क्षुत्) बुभुक्षा (कुक्षिः) उदरपार्श्वः (इरा) अन्नम् (वनिष्ठुः) अ० २।३३।४। अन्नरक्तादिसंभाजकं स्थूलान्त्रम् (पर्वताः) मेघाः-निघ० १।१०। (प्लाशयः) अ० २।३३।४। प्र+अश भोजने−इञ्। रस्य लः। अन्नाधारा अन्त्रविशेषाः ॥

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    विषय

    मित्र से प्रजा तक

    पदार्थ

    १.(मित्र: च वरुणः च) = मित्र और वरुण (अंसौ) = कन्धे हैं, (त्वष्टा च अर्यमा च) = त्वष्टा और अर्यमा (दोषणी) = भुजाओं के ऊपर के भाग हैं, (महादेवः बाहः) = महादेव बाहु हैं [अगली टाँगों का पिछला भाग], (इन्द्राणी) = विद्युत्-शक्ति (भसत्) = गुह्यभाग है, (वायुः पुच्छम्) = वायु पूंछ है, (पवमानः बाला:) = बहता हुआ वायु उसके बाल हैं। २. (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ब्रह्म और क्षत्र [ब्राह्मण और क्षत्रिय] (श्रोणी) = उसके श्रोणीप्रदेश [कुल्हे] हैं, (बलम्) = बल [सेना] (ऊरू) = जाँचे हैं। (धाता च सविता च) = धाता और सविता उसके (अष्ठीवन्तौ) = टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघा:) = गन्धर्व जंघाएँ हैं (अप्सरस:) = रूपवती स्त्रियाँ [अप्सराएँ] (कुष्ठिका:) = खुरों के ऊपर-पीछे की ओर लगी अंगुलियाँ हैं, (अदितिः) = पृथिवी (शफा:) = खुर हैं। ३. (चेत:) = चेतना (हृदयम्) = हृदय है, (मेधा) = बुद्धि (यकृत्) = जिगर है, (व्रत पुरीतत्) = व्रत उसकी अति है, (क्षुत् कुक्षि:) = भूख कोख है, (इरा) = अन्न व जल (वनिष्टुः) = गुदा व बड़ी आँतें हैं, (पर्वता:) = पर्वत व मेघ (प्लाशय:) = छोटी आंत हैं, (क्रोध:) = क्रोध वृक्को -गुर्दे हैं, (मन्यु:) = शोक व दीप्ति (आण्डौ) = अण्डकोश हैं, (प्रजा शेप:) = प्रजाएँ उसका लिंगभाग हैं [वृक्की पुष्टिकरी प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः । वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकर लिङ्गमयन वीर्यमूत्रयोः-शार्ङ्गधर]।

     

    भावार्थ

    वेद में मित्र, वरुण से लेकर क्रोध, मन्यु, प्रजा आदि का सुचारुरूपेण प्रतिपादन है।

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    भाषार्थ

    (क्षुत्) क्षुधा है (कुक्षिः) कोख, जठर, (इरा) अन्न है (वनिष्ठुः) स्थूल-आन्त [colon], (पर्वताः) पर्वत हैं (प्लाशयः) प्लाशियां, मांस पेशियां, mussles।

    टिप्पणी

    [कुक्षिः = पशु की वह थैली जिसमें कि चबाया हुआ चारा एकत्रित होता है, जिस की कि जुगाली पशु करते हैं। वनिष्ठुः = “वनिष्ठोः स्थविरान्त्रात् (सायण, अथर्व० २।३३।४)। प्लाशयः = मांसपेशियां। ये शरीर में पर्वतश्रेणी के सदृश परस्पर सम्बद्ध हुई फैली हुई हैं । इरा-और-वनिष्ठु में तादात्म्य वर्णित किया है। वनिष्ठु में निःसार परिपक्व मल होता है]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    Hunger is the assimilative power of digestion, food is the colon, mountains are the muscles.

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    Translation

    Hunger (ksut) is his belly (kuksih), enjoyment (ira) his rectum (vanisthuh) and mountains his prostrate gland (plasih).

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    Translation

    Hunger is the abdomen, cerial is like rectum and mountains like the inward parts.

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    Translation

    Hunger is the belly, corn is the rectum, clouds are the inward parts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(क्षुत्) बुभुक्षा (कुक्षिः) उदरपार्श्वः (इरा) अन्नम् (वनिष्ठुः) अ० २।३३।४। अन्नरक्तादिसंभाजकं स्थूलान्त्रम् (पर्वताः) मेघाः-निघ० १।१०। (प्लाशयः) अ० २।३३।४। प्र+अश भोजने−इञ्। रस्य लः। अन्नाधारा अन्त्रविशेषाः ॥

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