Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 26
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - गौ सूक्त
    0

    उपै॑नं वि॒श्वरू॑पाः॒ सर्व॑रूपाः प॒शव॑स्तिष्ठन्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । ए॒न॒म् । वि॒श्वऽरू॑पा: । सर्व॑ऽरूपा: । प॒शव॑: । ति॒ष्ठ॒न्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१२.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपैनं विश्वरूपाः सर्वरूपाः पशवस्तिष्ठन्ति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । एनम् । विश्वऽरूपा: । सर्वऽरूपा: । पशव: । तिष्ठन्ति । य: । एवम् । वेद ॥१२.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (एनम्) उस [पुरुष] को (विश्वरूपाः) सब रूप [वर्ण] वाले और (सर्वरूपाः) सब आकारवाले (पशवः) [व्यक्त वाणी और अव्यक्त वाणीवाले] जीव (उप तिष्ठन्ति) पूजते हैं, (यः) जो (एवम्) इस प्रकार (वेद) जानता है ॥२६॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमात्मा की महिमा विचारकर पूर्वोक्त प्रकार से उपासना करके अपनी उन्नति करता है, वह सब प्राणियों का शासक होता है ॥२६॥

    टिप्पणी

    २६−(उप तिष्ठन्ति) पूजयन्ति (एनम्) ब्रह्मवादिनम् (विश्वरूपाः) सर्ववर्णाः (सर्वरूपाः) सर्वाकाराः (पशवः) पशवो व्यक्तवाचश्चाव्यक्तवाचश्च-निरु० ११।२९। प्राणिनः (यः) (एवम्) (वेद) जानाति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'विश्वरूप, सर्वरूप' गोरूप

    पदार्थ

    १. (एतत्) = यह उपरिनिर्दिष्ट वर्णन (वै) = निश्चय से विश्वरूपम् वेदधेनु का सब पदार्थों का [संसार का] निरूपण करनेवाला विराट्प है, (सर्वरूपम्) = यह 'सर्व' [सब में समाये] प्रभु का निरूपण करनेवाला-सा है, (गोरूपम्) = वेदवाणी का गौ के रूप में निरूपण है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार समझ लेता है, (एनम्) = इसे (विश्वरूपा:) = भिन्न-भिन्न वर्गों व आकृतियोंवाले, (सर्वरूपा:) = 'सर्व' प्रभु की महिमा का प्रतिपादन करनेवाले–व्यक्त व अव्यक्त वाक् सब प्राणी-मनुष्य व पशु-पक्षी आदि (उपतिष्ठन्ति) = पूजित करते हैं। यह उन सब प्राणियों से जीवन के लिए आवश्यक लाभ प्राप्त करता हुआ उनमें प्रभु की महिमा देखता है।

    भावार्थ

    वेदवाणी में विश्व के सब पदार्थों का निरूपण है। इसमें 'सर्व' [सबमें समाये हुए] प्रभु का भी निरूपण है। वेदधेनु के इस विराट्रूप को देखनेवाला व्यक्ति सब प्राणियों से उचित लाभ प्राप्त करता है, सब प्राणियों में उस सर्व' प्रभु की महिमा को देखता है।

    विशेष

    विशेष-इसप्रकार वेदधेनु को अपनानेवाला यह व्यक्ति ज्ञानरूप अग्नि में परिपक्व होकर "भृगु' बनता है, अङ्ग-अङ्ग में रसवाला [नीरोग] यह व्यक्ति 'अङ्गिरस' होता है। यह भृग्वाङ्गिरा ही अगले सूक्त का ऋषि है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (यः) जो (एवम्) इस प्रकार (वेद) जानता है (एनम्) इसे (विश्वरूपाः) विश्व के रूप वाले, (सर्वरूपाः) सर्वरूपी (पशवः) पशु (उपतिष्ठन्ति) उपस्थित हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति भिन्न-भिन्न पशुओं के लाभों को जानता है वह निज आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न पशुओं का संग्रह करता है। यथा दूध के लिये गौ का, कृषि के लिये बैल का, सवारी के लिये अश्व का, गृहरक्षा के लिये श्वा का। इस प्रकार विविध प्रयोजनों के लिये विविध पशुओं का संग्रह करता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    To one that knows thus the Cosmic metaphor of the Cow, all living forms of the world, of all shapes and functions, present themselves simultaneously as One and All, the living, breathing, self-existing, all¬ functioning Universal Cow: All in One, One in all.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Cattle of all forms and of every form come to him, who knows this.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    To him who knows the mystery of this omni-formed animals who wear various shapes.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He, who knows this Omnipresent God, is worshipped by men of all grades, ranks, speaking and non-speaking souls

    Footnote

    Non-speaking: Animals. I have not been able to understand the connection between the parts of the body of the cow or bull, and the forces of nature. No commentator has thrown light on this relation.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(उप तिष्ठन्ति) पूजयन्ति (एनम्) ब्रह्मवादिनम् (विश्वरूपाः) सर्ववर्णाः (सर्वरूपाः) सर्वाकाराः (पशवः) पशवो व्यक्तवाचश्चाव्यक्तवाचश्च-निरु० ११।२९। प्राणिनः (यः) (एवम्) (वेद) जानाति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top