अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 25
ए॒तद्वै वि॒श्वरू॑पं॒ सर्व॑रूपं गोरू॒पम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । वै । वि॒श्वऽरू॑पम् । सर्व॑ऽरूपम् । गो॒ऽरू॒पम् ॥१२.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
एतद्वै विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपम् ॥
स्वर रहित पद पाठएतत् । वै । विश्वऽरूपम् । सर्वऽरूपम् । गोऽरूपम् ॥१२.२५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(एतद्) व्यापक ब्रह्म (वै) ही (विश्वरूपम्) जगत् का रूप देनेवाला, (सर्वरूपम्) सब का रूप देनेवाला और (गोरूपम्) [प्राप्ति योग्य] स्वर्ग [सुखविशेष] का रूप देनेवाला [है] ॥२५॥
भावार्थ
सर्वस्रष्टा परमेश्वर प्राणियों को उनके कर्मानुसार सुख देता है ॥२५॥
टिप्पणी
२५−(एतद्) एतेस्तुट् च। उ० १।१३३। इण् गतौ-अदि, तुट् च। व्यापकं ब्रह्म (वै) हि (विश्वरूपम्) जगतो रूपं यस्मात् तत् (सर्वरूपम्) सर्वरूपकरम् (गोरूपम्) गौः स्वर्गः। (स्वर्गस्य) रूपकरम् ॥
विषय
'विश्वरूप, सर्वरूप' गोरूप
पदार्थ
१. (एतत्) = यह उपरिनिर्दिष्ट वर्णन (वै) = निश्चय से विश्वरूपम् वेदधेनु का सब पदार्थों का [संसार का] निरूपण करनेवाला विराट्प है, (सर्वरूपम्) = यह 'सर्व' [सब में समाये] प्रभु का निरूपण करनेवाला-सा है, (गोरूपम्) = वेदवाणी का गौ के रूप में निरूपण है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार समझ लेता है, (एनम्) = इसे (विश्वरूपा:) = भिन्न-भिन्न वर्गों व आकृतियोंवाले, (सर्वरूपा:) = 'सर्व' प्रभु की महिमा का प्रतिपादन करनेवाले–व्यक्त व अव्यक्त वाक् सब प्राणी-मनुष्य व पशु-पक्षी आदि (उपतिष्ठन्ति) = पूजित करते हैं। यह उन सब प्राणियों से जीवन के लिए आवश्यक लाभ प्राप्त करता हुआ उनमें प्रभु की महिमा देखता है।
भावार्थ
वेदवाणी में विश्व के सब पदार्थों का निरूपण है। इसमें 'सर्व' [सबमें समाये हुए] प्रभु का भी निरूपण है। वेदधेनु के इस विराट्रूप को देखनेवाला व्यक्ति सब प्राणियों से उचित लाभ प्राप्त करता है, सब प्राणियों में उस सर्व' प्रभु की महिमा को देखता है।
विशेष
विशेष-इसप्रकार वेदधेनु को अपनानेवाला यह व्यक्ति ज्ञानरूप अग्नि में परिपक्व होकर "भृगु' बनता है, अङ्ग-अङ्ग में रसवाला [नीरोग] यह व्यक्ति 'अङ्गिरस' होता है। यह भृग्वाङ्गिरा ही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(एतद्) यह दृश्यमान् ब्रह्माण्ड (वै) निश्चय से (विश्वरूपम्) विश्वरूप है, (सर्वरूपम्) सर्वरूप है (मन्त्र २४), (गोरूपम्) गोरूप है।
इंग्लिश (4)
Subject
Cow: the Cosmic Metaphor
Meaning
It is thus this universal form, All-form of the cosmos, metaphor of the Cow.
Translation
This, indeed, wears all the forms, wears every form and wears the ox-form.
Translation
This bovine-formed world is the omni-formed it is verily whole of the universe which wears all forms.
Translation
God fashions the whole universe. He gives shape to animate and inanimate creation. He bestows joy on all.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(एतद्) एतेस्तुट् च। उ० १।१३३। इण् गतौ-अदि, तुट् च। व्यापकं ब्रह्म (वै) हि (विश्वरूपम्) जगतो रूपं यस्मात् तत् (सर्वरूपम्) सर्वरूपकरम् (गोरूपम्) गौः स्वर्गः। (स्वर्गस्य) रूपकरम् ॥
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