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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - साम्नी गायत्री सूक्तम् - गौ सूक्त
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    क्रोधो॑ वृ॒क्कौ म॒न्युरा॒ण्डौ प्र॒जा शेपः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्रोध॑: । वृ॒क्कौ । म॒न्यु: । आ॒ण्डौ । प्र॒ऽजा । शेप॑: ॥१२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेपः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्रोध: । वृक्कौ । मन्यु: । आण्डौ । प्रऽजा । शेप: ॥१२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [सृष्टि में] (क्रोधः) क्रोध (वृक्कौ) दोनों वृक्क [दो कुक्षिगोलक,] (मन्युः) तेज (आण्डौ) दोनों अण्डकोष, और (प्रजा) प्रजा [वंशावली] (शेषः) प्रजनन सामर्थ्य [के समान है] ॥१३॥

    भावार्थ

    जैसे देह में दोनों वृक्क [“गुरदे”], दोनों अण्डकोष और सन्तानोत्पादन नाड़ी शरीरबल के सूचक हैं, वैसे ही क्रोध आदि सृष्टि में हैं ॥१३॥ इन नाड़ियों के लक्षण इस प्रकार हैं− वृक्कौ पुष्टिकरौ प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः ॥१॥ वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकरं लिङ्गमयनं वीर्यमूत्रयोः ॥२॥ यह शार्ङ्गधर के वचन हैं-खण्ड १ अ० ५ श्लोक ४० व ४१ ॥ (वृक्कौ) दोनों वृक्क अर्थात् कुक्षिगोलक [गुरदे] पेट में रहनेवाले भेद पुष्ट करनेवाले कहे जाते हैं ॥१॥ दोनों वृषण अर्थात् आण्ड वीर्यवाही नाड़ियों के आधार, पुरुषार्थ के देनेवाले हैं, लिङ्ग गर्भाधान करनेवाला, वीर्य और मूत्र का मार्ग है ॥२॥

    टिप्पणी

    १३−(क्रोधः) कोपः (वृक्कौ) अ० ७।९६।१। स्वृवृभू०। उ० ३।४१। वृजी वर्जने वृक आदाने वा-कक्। कुक्षिगोलकौ (मन्युः) अ० १।१०।१। मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः-निरु० १०।२९। दीप्तिः। प्रतापः (आण्डौ) अण्ड-अण्। अण्डकोषौ। वृषणौ (प्रजा) वंशावली (शेषः) अ० ४।३७।७। प्रजननसामर्थ्यम् ॥

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    विषय

    मित्र से प्रजा तक

    पदार्थ

    १.(मित्र: च वरुणः च) = मित्र और वरुण (अंसौ) = कन्धे हैं, (त्वष्टा च अर्यमा च) = त्वष्टा और अर्यमा (दोषणी) = भुजाओं के ऊपर के भाग हैं, (महादेवः बाहः) = महादेव बाहु हैं [अगली टाँगों का पिछला भाग], (इन्द्राणी) = विद्युत्-शक्ति (भसत्) = गुह्यभाग है, (वायुः पुच्छम्) = वायु पूंछ है, (पवमानः बाला:) = बहता हुआ वायु उसके बाल हैं। २. (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ब्रह्म और क्षत्र [ब्राह्मण और क्षत्रिय] (श्रोणी) = उसके श्रोणीप्रदेश [कुल्हे] हैं, (बलम्) = बल [सेना] (ऊरू) = जाँचे हैं। (धाता च सविता च) = धाता और सविता उसके (अष्ठीवन्तौ) = टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघा:) = गन्धर्व जंघाएँ हैं (अप्सरस:) = रूपवती स्त्रियाँ [अप्सराएँ] (कुष्ठिका:) = खुरों के ऊपर-पीछे की ओर लगी अंगुलियाँ हैं, (अदितिः) = पृथिवी (शफा:) = खुर हैं। ३. (चेत:) = चेतना (हृदयम्) = हृदय है, (मेधा) = बुद्धि (यकृत्) = जिगर है, (व्रत पुरीतत्) = व्रत उसकी अति है, (क्षुत् कुक्षि:) = भूख कोख है, (इरा) = अन्न व जल (वनिष्टुः) = गुदा व बड़ी आँतें हैं, (पर्वता:) = पर्वत व मेघ (प्लाशय:) = छोटी आंत हैं, (क्रोध:) = क्रोध वृक्को -गुर्दे हैं, (मन्यु:) = शोक व दीप्ति (आण्डौ) = अण्डकोश हैं, (प्रजा शेप:) = प्रजाएँ उसका लिंगभाग हैं [वृक्की पुष्टिकरी प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः । वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकर लिङ्गमयन वीर्यमूत्रयोः-शार्ङ्गधर]।

    भावार्थ

    वेद में मित्र, वरुण से लेकर क्रोध, मन्यु, प्रजा आदि का सुचारुरूपेण प्रतिपादन है।

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    भाषार्थ

    (कोधः) क्रोध हैं (वृक्कौ) दो गुर्दे, (मन्युः) मन्यु है (आण्डौ) दो अण्ड-ग्रन्थियां (प्रजा) सन्तान है (शेपः) जननेन्द्रिय।

    टिप्पणी

    [कोध में अज्ञानांश होता है, और मन्यु में ज्ञानांश होता है। ये१ दोनों मानसिक वृत्तियां हैं, विश्व के अङ्ग हैं। वृक्कौ हैं [बैल] के अङ्ग। इसी प्रकार अण्डौ और शेपः भी बैल के अङ्ग है, और प्रजा है विश्व का अङ्ग। क्रोध-और-वृक्कौ का, तथा मन्यु-और-आण्डौ का परस्पर सम्बन्ध अनुसन्धेन्य है] [१. क्रोध रजस्तमोगुणप्रधाना चित्तवृत्ति है, और मन्यु सत्त्वगुणा चित्तवृत्ति है। परमेश्वर को भी मन्यु कहा है, और उस से मन्यु की प्रार्थना भी की गई है। यथा ''मन्युरसि मन्युं मयि धेहि"।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    Anger is the kidneys, passion is the scrotum, children are the creative urge.

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    Translation

    Anger is his two kidneys (vrkkau), ardour (manyuh) his two testicles (andau), and progeny (praja) his penis (Sepah).

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    Translation

    Anger is like its kidneys, wrath like its testes and Praja is like the generative organ.

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    Translation

    Wrath is the kidneys, enthusiasm the testicles, offspring the generative organ.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(क्रोधः) कोपः (वृक्कौ) अ० ७।९६।१। स्वृवृभू०। उ० ३।४१। वृजी वर्जने वृक आदाने वा-कक्। कुक्षिगोलकौ (मन्युः) अ० १।१०।१। मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः-निरु० १०।२९। दीप्तिः। प्रतापः (आण्डौ) अण्ड-अण्। अण्डकोषौ। वृषणौ (प्रजा) वंशावली (शेषः) अ० ४।३७।७। प्रजननसामर्थ्यम् ॥

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