अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 19
अ॒ग्निरासी॑न॒ उत्थि॑तो॒ऽश्विना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नि: । आसी॑न: । उत्थि॑त: । अ॒श्विना॑ ॥१२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निरासीन उत्थितोऽश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नि: । आसीन: । उत्थित: । अश्विना ॥१२.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ
[सृष्टि में वह प्रजापति] (आसीनः) बैठा हुआ (अग्निः) [पार्थिव वा जाठर] अग्नि, (उत्थितः) उठा हुआ वह (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा [के समान है] ॥१९॥
भावार्थ
जैसे अग्नि और सूर्य और चन्द्रमा अपने-अपने लोकों के लिये उपकारी हैं, वैसे ही परमेश्वर समस्त ब्रह्माण्ड का हितकारी है ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(अग्निः) पार्थिवो जाठरोऽग्निर्वा (आसीनः) उपविष्टः (उत्थितः) (अश्विना) अ० २।२९।६। सूर्याचन्द्रमसौ यथा ॥
विषय
वेद का मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'प्रभु'
पदार्थ
१. वेदवाणी में सभी पदार्थों, जीव के कर्तव्यों व आत्मस्वरूप का वर्णन है। इनका मुख्य प्रतिपाद्य विषय प्रभु हैं। यह प्रभु हमारे हृदय में (आसीन:) = आसीन हुए-हुए (अग्नि:) = अग्नि हैं हमें निरन्तर आगे ले-चलनेवाले हैं [भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्राद्धानि मायया], (उत्थितः) = हमारे हृदय में उठे हुए ये प्रभु (अश्विना) = प्राणापान हैं, जब प्रभु की भावना हमारे हृदयों में सर्वोपरि होती है तब हमारी प्राणापान की शक्ति का वर्धन होता है। (प्राङ् तिष्ठन्) = पूर्व में [सामने] ठहरे हुए वे प्रभु (इन्द्र:) = हमारे लिए परमैश्वर्यशाली व शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले हैं। (दक्षिणा तिष्ठन) = दक्षिण में स्थित हुए-हुए वे (यमः) = यम हैं, हमारे नियन्ता हैं, (प्रत्यङ् तिष्ठन) = पश्चिम में ठहरे हुए वे प्रभु (धाता) = हमारा धारण करनेवाले हैं। (उदङ् तिष्ठन्) = उत्तर में ठहरे हुए (सविता) = हमें प्रेरणा देनेवाले हैं। २. ये ही प्रभु (तृणानि प्राप्त:) = तृणों को प्राप्त हुए-हुए (सोमः राजा) = देदीप्यमान [राज् दीसौ] सोम होते हैं। ये तृण भोजन के रूप में उदर में प्राप्त होकर 'सोम' के जनक होते हैं। (ईक्षमाण:) = हमें देखते हुए, ये प्रभु (मित्र:) = हमें प्रमीति [मृत्यु] से बचानेवाले हैं [प्रमीते: त्रायते मित्रः], (आवृत्त:) = हममें व्याप्त हुए-हुए वे प्रभु (आनन्द:) = हमारे लिए आनन्दरूप हो जाते हैं।
भावार्थ
प्रभु हमारे लिए 'अग्नि, अश्विना, इन्द्र, यम, धाता, सविता, सोम' मित्र व आनन्दरूप है।
भाषार्थ
(अग्निः) अग्नि है (आसीनः) बैठा हुआ बैल, (अश्विना) दो अश्विन् तारा हैं (उत्थितः) उठा हुआ बैल।
टिप्पणी
[अग्नि है पार्थिव-अग्नि। यह पृथिवीस्थ है। अतः अग्नि को बैठा बैल कहा है। अश्विनौ है मेषराशिस्थ दो तारा। ये द्युलोक में ऊंचे उठे हुए हैं, इस लिये अश्विनौ को उत्थित अर्थात् उठा हुआ बैल कहा है। अग्नि और अश्विनौ विश्व के अङ्ग हैं, और बैल का बैठना और उठना बैल की क्रियाए हैं। इन में तादात्म्य दर्शाया है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Cow: the Cosmic Metaphor
Meaning
Sitting, it is Agni, up and doing, it is Ashvins
Translation
While sitting, he is the fire-divine (Agni); when risen up, he is the twins-divine (asvins).
Translation
When sitting it represents Agni and when it stands up represents twain of Ashvinau.
Translation
Sitting He is fire, when He hath stood up He is day and night
Footnote
Ashvina may also mean Sun and Moon.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(अग्निः) पार्थिवो जाठरोऽग्निर्वा (आसीनः) उपविष्टः (उत्थितः) (अश्विना) अ० २।२९।६। सूर्याचन्द्रमसौ यथा ॥
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