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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - आर्च्युष्णिक् सूक्तम् - गौ सूक्त
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    सोमो॒ राजा॑ म॒स्तिष्को॒ द्यौरु॑त्तरह॒नुः पृ॑थि॒व्यधरह॒नुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑: । राजा॑ । म॒स्तिष्क॑: । द्यौ: । उ॒त्त॒र॒ऽह॒नु: । पृ॒थि॒वी । अ॒ध॒र॒ऽह॒नु: ॥१२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो राजा मस्तिष्को द्यौरुत्तरहनुः पृथिव्यधरहनुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम: । राजा । मस्तिष्क: । द्यौ: । उत्तरऽहनु: । पृथिवी । अधरऽहनु: ॥१२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [सृष्टि में] (राजा) शासक (सोमः) ऐश्वर्य [अथवा अमृत जल वा चन्द्रमा] (मस्तिष्कः) भेजा [कपाल की चिकनाई], (द्यौः) आकाश (उत्तरहनुः) ऊपर का जबड़ा, (पृथिवी) पृथिवी (अधरहनुः) नीचे का जबड़ा [के तुल्य है] ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे भेजे की शक्ति का प्रभाव मनुष्य के शरीर और विचारों पर रहता है, अथवा जैसे जल और चन्द्रमा अन्न आदि के लिये उपयोगी हैं, वैसे ही चक्राकार सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में ईश्वरत्व प्रधान गुण है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सोमः) अ० १।६।२। षु ऐश्वर्ये-मन्। ऐश्वर्यम् (राजा) शासकः (मस्तिष्कः) मस्त+इष गतौ-क, पृषोदरादित्वात् साधुः। मस्तं मस्तकमिष्यति प्राप्नोतीति। मस्तकभवघृताकारस्नेहः (द्यौः) आकाशः (उत्तरहनुः) उपरिस्थकपोलप्रदेशः (पृथिवी) (अधरहनुः) नीचस्थकपोलभागः ॥

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    विषय

    प्रजापति से घर्म तक

    पदार्थ

    १. वेदधेनु के विराट् शरीर की यहाँ कल्पना की गई है। इस वेदवाणी में उस प्रभु का वर्णन है जोकि सब देवों के अधिष्ठान हैं-('ऋचो अक्षरे परमे व्योमन् यस्मिन् देवा अधि विश्वे निषेदुः')। = सब देवों को इस गौ के विराट् शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग में दिखलाते हैं। प्(रजापतिः च परमेष्ठी च शृंगे) = प्रजापति और परमेष्ठी दोनों इस गौ के सींग है, (इन्द्रः शिर:) = इन्द्र सिर है, (अग्निः ललाटम्) = अग्नि ललाट है, (यमः कृकाटम्) = यम गले की घंटी है। २. (सोमः राजा मस्तिष्क:) = सोम राजा उसका मस्तिष्क है, (द्यौः उत्तरहनु:) = धुलोक उसका ऊपर का जबड़ा है, (पृथिवी अधरहनुः) = पृथिवी उसका नीचे का जबड़ा है। ३. (विद्युत् जिह्वा) = विद्युत् उसकी जिला है। (मरुतः दन्त:) = मरुत् [वायुएँ] उसके दाँत हैं, (रेवती: ग्रीवा:) = रेवतीनक्षत्र उसकी गर्दन है, (कृत्तिकाः स्कन्धा:) = कृत्तिका नक्षत्र कन्धे हैं और (धर्मः वहः) = प्रकाशमान् सूर्य व ग्रीष्मऋतु उसके ककुद के पास का स्थान है।

    भावार्थ

    वेदवाणी में 'प्रजापति परमेष्ठी' के प्रतिपादन के साथ 'इन्द्र, अग्नि, यम, सोम, द्यौ, पृथिवी, विद्युत, वायु, रेवती व कृत्तिका आदि नक्षत्र व धर्म' का ज्ञान उपलभ्य है।

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    भाषार्थ

    (सोमः राजा) प्रदीप्त चन्द्रमा (मस्तिष्कः) मस्तिष्क है, (द्यौः) द्युलोक (उत्तरहनुः) ऊपर का जबड़ा है, (पृथिवी अधरहनुः) पृथिवी निचला जबड़ा है।

    टिप्पणी

    [राजा= राजृ दीप्तौ। चन्द्रमा का सम्बन्ध मन (मस्तिष्क) के साथ है। यथा "चन्द्रमा मनसो जातः” (यजु० ३१।१२), तथा "मनश्चन्द्रो दधातु मे" (अथर्व० १९।४३।४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    Soma Raja, ruling bright joyous vitality, is the brain, the region of light, the upper jaw, the earth, the lower jaw.

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    Translation

    The blissful Lord (Soma), the sovereign, is his brain; heaven (dyauh) is his upper jaw (hanu), and earth the lower jaw (adhara hanu).

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    Translation

    The brain of this Cow is like Soma Raja, the upper jaw like sky and the lower jaw like earth.

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    Translation

    Soma, the king of herbs, is the brain, Sky is the upper jaw, Earth is the lower jaw.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सोमः) अ० १।६।२। षु ऐश्वर्ये-मन्। ऐश्वर्यम् (राजा) शासकः (मस्तिष्कः) मस्त+इष गतौ-क, पृषोदरादित्वात् साधुः। मस्तं मस्तकमिष्यति प्राप्नोतीति। मस्तकभवघृताकारस्नेहः (द्यौः) आकाशः (उत्तरहनुः) उपरिस्थकपोलप्रदेशः (पृथिवी) (अधरहनुः) नीचस्थकपोलभागः ॥

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