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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 22
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - एकपदासुरी जगती सूक्तम् - गौ सूक्त
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    तृणा॑नि॒ प्राप्तः॒ सोमो॒ राजा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तृणा॑नि । प्रऽआ॑प्त: । सोम॑: । राजा॑ ॥१२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तृणानि प्राप्तः सोमो राजा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तृणानि । प्रऽआप्त: । सोम: । राजा ॥१२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 22
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [वह] (तृणानि) तृणों [सृष्टि के पदार्थों] में (प्राप्तः) प्राप्त होकर (राजा) सर्वशासक (सोमः) जन्मदाता है ॥२२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर ही सृष्टिकर्ता और सर्वनियन्ता है ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(तृणानि) अ० २।३०।१। तृणवत् सृष्टिवस्तूनि (प्राप्तः) व्याप्तः सन् (सोमः) उत्पादकः (राजा) सर्वशासकः ॥

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    विषय

    वेद का मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'प्रभु'

    पदार्थ

    १. वेदवाणी में सभी पदार्थों, जीव के कर्तव्यों व आत्मस्वरूप का वर्णन है। इनका मुख्य प्रतिपाद्य विषय प्रभु हैं। यह प्रभु हमारे हृदय में (आसीन:) = आसीन हुए-हुए (अग्नि:) = अग्नि हैं हमें निरन्तर आगे ले-चलनेवाले हैं [भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्राद्धानि मायया], (उत्थितः) = हमारे हृदय में उठे हुए ये प्रभु (अश्विना) = प्राणापान हैं, जब प्रभु की भावना हमारे हृदयों में सर्वोपरि होती है तब हमारी प्राणापान की शक्ति का वर्धन होता है। (प्राङ् तिष्ठन्) = पूर्व में [सामने] ठहरे हुए वे प्रभु (इन्द्र:) = हमारे लिए परमैश्वर्यशाली व शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले हैं। (दक्षिणा तिष्ठन) = दक्षिण में स्थित हुए-हुए वे (यमः) = यम हैं, हमारे नियन्ता हैं, (प्रत्यङ् तिष्ठन) = पश्चिम में ठहरे हुए वे प्रभु (धाता) = हमारा धारण करनेवाले हैं। (उदङ् तिष्ठन्) = उत्तर में ठहरे हुए (सविता) = हमें प्रेरणा देनेवाले हैं। २. ये ही प्रभु (तृणानि प्राप्त:) = तृणों को प्राप्त हुए-हुए (सोमः राजा) = देदीप्यमान [राज् दीसौ] सोम होते हैं। ये तृण भोजन के रूप में उदर में प्राप्त होकर 'सोम' के जनक होते हैं। (ईक्षमाण:) = हमें देखते हुए, ये प्रभु (मित्र:) = हमें प्रमीति [मृत्यु] से बचानेवाले हैं [प्रमीते: त्रायते मित्रः], (आवृत्त:) = हममें व्याप्त हुए-हुए वे प्रभु (आनन्द:) = हमारे लिए आनन्दरूप हो जाते हैं।

    विशेष

    प्रभु हमारे लिए 'अग्नि, अश्विना, इन्द्र, यम, धाता, सविता, सोम' मित्र व आनन्दरूप है।

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    भाषार्थ

    (सोमः राजा) सोम राजा है [बैल], जब कि वह [चारे के लिये] घास आदि तृणों को प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    [सोम है महौषध। अतः यह वीरुधों का अधिपति है। यथा "सोमो वीरुधामधिपतिः” (अथर्व० ५।२४।७)। सोम अन्य तृणरूप-वीरुधों में प्राप्त रहता है। अतः इसे बैलरूप में वर्णित किया है जब कि बैल घास आदि के तृणों के खाने के लिये तृणों को प्राप्त होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cow: the Cosmic Metaphor

    Meaning

    Reaching the grasses, it is life-ruling Soma, ffpr ii r ^ ii

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    Translation

    Having received grass he is the blissful Lord (Soma) the sovereign.

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    Translation

    When it has approached to grass it is like the Raja-Soma.

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    Translation

    Pervading in all objects of the universe, He is the Creator and Ruler of all.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(तृणानि) अ० २।३०।१। तृणवत् सृष्टिवस्तूनि (प्राप्तः) व्याप्तः सन् (सोमः) उत्पादकः (राजा) सर्वशासकः ॥

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