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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 10
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुष्युष्णिक् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    देव॑ त्वप्रतिसूर्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑ । त्वत्प्रतिसूर्य ॥१३०.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव त्वप्रतिसूर्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देव । त्वत्प्रतिसूर्य ॥१३०.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (देव) हे विद्वान् ! (त्वप्रतिसूर्य) तू सूर्य समान [प्रतापी] है ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    १०−(देव) हे विद्वन् (त्वप्रतिसूर्य) विभक्तेर्लुक्। त्वमेव सूर्यसमानः प्रतापवान् ॥

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    विषय

    सुन्दर जीवन

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार यह वीर्यरक्षण करनेवाला-सोमयज्ञ करनेवाला व्यक्ति (यवान:) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] अपने से बुराइयों को दूर करता है और अच्छाइयों का अपने से मिश्रण करता है। यह (यतिस्वभिः) = [यति+स्व-भा+इ] संयत जीवनवाला व आत्मदीप्तिवाला होता है। (कु-भि:) = [कु+भा+इ] इस पृथिवी पर अपने कर्मों से यह दीस होता है। २. (अकुप्यन्तः) = [कुप्+ सच-अन्त] यह कभी क्रोध नहीं करता। (कुपायकु:) = इस पृथिवी पर सबका रक्षण करनेवाला बनता है। ३. (आमणक:) = [मण् to sound] यह चारों ओर ज्ञानोपदेश करनेवाला होता है। (मणत्सक:) = सदा स्तुतिवचनों के उच्चारण के स्वभाववाला बनता है। ४. यह मणत्सक इसप्रकार प्रभु का स्मरण करता है कि [क] (देव) = प्रभो! आप प्रकाशमय हो-दिव्यगुणों के पुञ्ज हो। तु-दिव्यगुणों के पुञ्ज होने के साथ आप (अ-प्रतिसूर्य) = एक अद्वितीय सूर्य हो। सूर्य के समान अन्धकारमात्र को विनष्ट करनेवाले हो। ५. यह प्रभु-स्मरण मणत्सक को भी 'देव व सूर्य' बनने की प्रेरणा देता है।

    भावार्थ

    सोम का रक्षण करनेवाला अनुपम सुन्दर जीवनवाला बनता है। [क] यह ब्रह्मचर्याश्रम में बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों का ग्रहण करता है [ख] संयत जीववाला व आत्मदीसिवाला होता है [ग] इस पृथिवी पर यशोदीप्त होता है [घ] गृहस्थ में क्रोध नहीं करता [ङ] सब सन्तानों का रक्षण करता है [च] ज्ञान का प्रचार करता है [छ] प्रभु का स्तवन करता है कि आप दिव्यगुणों के पुञ्ज हो, ज्ञान के सूर्य हो। इस स्तवन से वह ऐसा बनने की ही प्रेरणा लेता है। अब संन्यस्थ होकर स्वयं देव व सूर्य बनता है।

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    भाषार्थ

    (देव) हे गुरुदेव! (तु अप्रतिसूर्य) आपका मुकाबिला तो सूर्य भी नहीं कर पाता।

    टिप्पणी

    [सूर्य तो प्राकृतिक-प्रकाश देकर आँखों पर उपकार करता है, और आप आध्यात्मिक-प्रकाश देकर आत्मा का उपकार करते हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The learned teacher is brilliant as the sun.

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    Translation

    O learned man, you shine like sun.

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    Translation

    O learned man, you shine like sun.

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    Translation

    On attaining topmost spiritual light, our friend may know me and Thee, too. (i.e., Realization of the soul and God is achieved only at the highest stage of spiritual attainment).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(देव) हे विद्वन् (त्वप्रतिसूर्य) विभक्तेर्लुक्। त्वमेव सूर्यसमानः प्रतापवान् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (দেব) হে বিদ্বান! (ত্বপ্রতিসূর্য) তুমি সূর্য সমান [প্রতাপী] ॥১০॥

    भावार्थ

    মনুষ্য শরীর এবং আত্মায় বলবান হয়ে ভূমির রক্ষা এবং বিদ্যার বৃদ্ধি করুক ॥৭-১০॥

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    भाषार्थ

    (দেব) হে গুরুদেব! (তু অপ্রতিসূর্য) আপনার প্রতিদ্বন্দ্বিতা তো সূর্যও করতে পারে না।

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