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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 17
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    1

    अथो॑ इ॒यन्निय॒न्निति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अथो॑ । इ॒यन्ऽइय॒न् । इति॑ ॥१३०.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अथो इयन्नियन्निति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथो । इयन्ऽइयन् । इति ॥१३०.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (अथो) फिर वह [पुत्र] (इयन्-इयन्) चलता हुआ, चलता हुआ [होवे], (इति) ऐसा है ॥१७॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥

    टिप्पणी

    १७−(अथो) अनन्तरम् (इयन्नियम्) इण् गतौ-शतृ, इयङ् इत्यादेशः, द्वित्वं च। यन् यन्। गच्छन् गच्छन्-स भवतु (इति) एवम् ॥

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    विषय

    क्रियाशील और क्रियाशील

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार चाहे मनुष्य को धन का उपभोग नहीं करना, (अथ उ) = तो भी [Even then] वह (इति) = निश्चय से (इयन्) = चलता हुआ हो और (इयन्) = चलता हुआ ही हो। गतिशीलता आवश्यक है। २. (अथ उ) = और अब (इयन् इति) = चलता हुआ ही हो। गतिशील पुरुष ही पवित्र जीवनवाला बनता है। संसार में इस गतिशील पुरुष को ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। इस ऐश्वर्य का विनियोग इसने यज्ञों में करना है। ।

    भावार्थ

    धन का उपभोग न करने की अवस्था में भी धनार्जन का प्रयत्न आवश्यक है इन प्रयत्नार्जित धनों से ही तो यज्ञ आदि उत्तम कर्म सिद्ध होंगे।

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    भाषार्थ

    (अथ उ) और यह सांसारिक भोगों की मदिरा में स्थितिवाला और मदिरा में तन्मय हुआ, (इयन्) इस मदिरा की ओर आता हुआ, (इयन्) आता हुआ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    And let the man of holiness be moving, moving, ever onwards.

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    Translation

    Let the child be progresive and active.

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    Translation

    Let the child be progressive and active.

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    Translation

    Of this great measure is the Prakriti.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(अथो) अनन्तरम् (इयन्नियम्) इण् गतौ-शतृ, इयङ् इत्यादेशः, द्वित्वं च। यन् यन्। गच्छन् गच्छन्-स भवतु (इति) एवम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অথো) তারপর সে [পুত্র] (ইয়ন্-ইয়ন্) প্রগতিশীল, অগ্রগতিশীল [হয়/হোক], (ইতি) এই রকম ॥১৭॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ গুণবতী স্ত্রী-এর সন্তানদের উত্তম শিক্ষাদান করে মহান বিদ্বান এবং উদ্যোগী করুক। এমনটা না করলে বালকরা/শিশুরা নির্গুণী এবং পীড়াদায়ক হয়ে কুকুরের সমান অপমানিত হয়।।১৫-২০॥

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    भाषार्थ

    (অথ উ) এবং এই সাংসারিক ভোগের মদ্যের মধ্যে স্থিত এবং মদ্য-এর মধ্যে তন্ময়, (ইয়ন্) এই মদ্য-এর দিকে এসে/আগমন করে, (ইয়ন্) এসে/আগমন করে।

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