अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 9
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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आम॑णको॒ मण॑त्सकः ॥
स्वर सहित पद पाठआम॑णक॒: । मण॑त्सक: । १३०.९॥
स्वर रहित मन्त्र
आमणको मणत्सकः ॥
स्वर रहित पद पाठआमणक: । मणत्सक: । १३०.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
(आमणकः) उपदेश करनेवाला और (मणत्सकः) विद्वानों में शक्तिमान् होकर ॥९॥
भावार्थ
मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥
टिप्पणी
९−(आमणकः) कुञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ।३। आ+मण शब्दे-वुन्। उपदेशकः (मणत्सकः) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्। उ० २।८४। मण शब्दे-अति+शक्लृ+सामर्थ्ये-अच्। मणत्सु विद्वत्सु शक्तः ॥
विषय
सुन्दर जीवन
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार यह वीर्यरक्षण करनेवाला-सोमयज्ञ करनेवाला व्यक्ति (यवान:) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] अपने से बुराइयों को दूर करता है और अच्छाइयों का अपने से मिश्रण करता है। यह (यतिस्वभिः) = [यति+स्व-भा+इ] संयत जीवनवाला व आत्मदीप्तिवाला होता है। (कु-भि:) = [कु+भा+इ] इस पृथिवी पर अपने कर्मों से यह दीस होता है। २. (अकुप्यन्तः) = [कुप्+ सच-अन्त] यह कभी क्रोध नहीं करता। (कुपायकु:) = इस पृथिवी पर सबका रक्षण करनेवाला बनता है। ३. (आमणक:) = [मण् to sound] यह चारों ओर ज्ञानोपदेश करनेवाला होता है। (मणत्सक:) = सदा स्तुतिवचनों के उच्चारण के स्वभाववाला बनता है। ४. यह मणत्सक इसप्रकार प्रभु का स्मरण करता है कि [क] (देव) = प्रभो! आप प्रकाशमय हो-दिव्यगुणों के पुञ्ज हो। तु-दिव्यगुणों के पुञ्ज होने के साथ आप (अ-प्रतिसूर्य) = एक अद्वितीय सूर्य हो। सूर्य के समान अन्धकारमात्र को विनष्ट करनेवाले हो। ५. यह प्रभु-स्मरण मणत्सक को भी 'देव व सूर्य' बनने की प्रेरणा देता है।
भावार्थ
सोम का रक्षण करनेवाला अनुपम सुन्दर जीवनवाला बनता है। [क] यह ब्रह्मचर्याश्रम में बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों का ग्रहण करता है [ख] संयत जीववाला व आत्मदीसिवाला होता है [ग] इस पृथिवी पर यशोदीप्त होता है [घ] गृहस्थ में क्रोध नहीं करता [ङ] सब सन्तानों का रक्षण करता है [च] ज्ञान का प्रचार करता है [छ] प्रभु का स्तवन करता है कि आप दिव्यगुणों के पुञ्ज हो, ज्ञान के सूर्य हो। इस स्तवन से वह ऐसा बनने की ही प्रेरणा लेता है। अब संन्यस्थ होकर स्वयं देव व सूर्य बनता है।
भाषार्थ
हे सद्गुरो! आप (आमणकः) सर्वत्र सदुपदेश करते हैं, (मणत्सकः) सदुपदेश करनेवालों में आप आसक्ति अर्थात् प्रेम रखते हैं।
टिप्पणी
[आमणकः=आ (सर्वत्र)+मणकः (मण् शब्दे)। मणत्सकः=मण्+शतृ+षच् (समवाये)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
The speaker and teacher is the man of love and power among others.
Translation
The man who preaches becomes strong among wise men.
Translation
The man who preaches becomes strong among wise men.
Translation
All people of the world run after fortunes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(आमणकः) कुञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ।३। आ+मण शब्दे-वुन्। उपदेशकः (मणत्सकः) वर्त्तमाने पृषद्बृहन्। उ० २।८४। मण शब्दे-अति+शक्लृ+सामर्थ्ये-अच्। मणत्सु विद्वत्सु शक्तः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ
भाषार्थ
(আমণকঃ) উপদেশক অথবা (মণৎসকঃ) বিদ্বানদের মধ্যে শক্তিমান হয়ে ॥৯॥
भावार्थ
মনুষ্য শরীর এবং আত্মায় বলবান হয়ে ভূমির রক্ষা এবং বিদ্যার বৃদ্ধি করুক ॥৭-১০॥
भाषार्थ
হে সদ্গুরু! আপনি (আমণকঃ) সর্বত্র সদুপদেশ করেন, (মণৎসকঃ) সদুপদেশকারীদের প্রতি আপনি আসক্তি অর্থাৎ প্রেম করেন।
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