अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 2
को अ॑सि॒द्याः पयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । असि॒द्या: । पय॑: । १३०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
को असिद्याः पयः ॥
स्वर रहित पद पाठक: । असिद्या: । पय: । १३०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
(कः) कौन (असिद्याः) बिना बन्धनवाली क्रिया के (पयः) अन्न को ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥
टिप्पणी
२−(कः) (असिद्याः) षिञ् बन्धने-क्तिन्, तस्य दः। असित्याः। बन्धनरहितक्रियायाः (पयः) पय गतौ-असुन्। अन्नम्-निघ० २।७ ॥
विषय
सोम-यज्ञ
पदार्थ
१.(क:) = कौन (बहुलिमा) = शक्तियों के बाहुल्यवाले (इषूनि) = सोमयज्ञों को-शरीर में ही प्रतिदिन सोम [वीर्य] की आहुति देनेरूप यज्ञों को (अर्य) = [ऋगतौ] प्राप्त होता है। शक्तियों के बाहुल्य को प्राप्त करानेवाले इन सोमयज्ञों का करनेवाला यह ब्रह्मचारी ही तो होता है। सोम-रक्षण द्वारा यह अपने में शक्ति का संचय करता है। २. (असिद्याः) = [अविद्यमाना सिति: बन्धनं यस्याः]-गृहस्थ में रहते हुए भी विषयों में अनासक्तवृत्ति का (पय:) = [semen virile] (वीर्यक:) = कौन-सा होता है। गृहस्थ में होते हुए भी जो विषय-विलास के जीवनवाला नहीं बन जाता, वह सु-वीर्य बनता ही है। ३. (अर्जुन्या:) = [अर्जुन श्वेत] राग-द्वेष से अनाक्रान्त शुद्ध [श्वेत] चित्तवृत्तिवाले का (पय:) = वीर्य (क:) = कौन-सा होता है? गृहस्थ के कार्यों को समाप्त करके मनुष्य वानप्रस्थ बनता है। इस वानप्रस्थ में राग-द्वेष से ऊपर उठने पर शरीर में वीर्य शुद्ध [उबाल से रहित] बना रहता है। [४] वानप्रस्थ से ऊपर उठकर मनुष्य संन्यस्त होता है। इस संन्यास में 'काणी' वृत्ति को अपनाता है। इधर-उधर भटकनेवाली इन्द्रियों व मन को यह अन्तर्मुखी करने का प्रयत्न करता है उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करता है। इस कार्या:-काणी वृत्ति का पयः-वीर्य का कौन-सा है? संन्यस्त होकर-सब इन्द्रियों को अपने अन्दर आकृष्ट करके यह वीर्य को सुरक्षित करनेवाला होता है।
भावार्थ
ब्रह्मचर्य तो है ही सोमयज्ञ। इस आश्रम में सोम [वीर्य] को शरीर में सरक्षित रखना होता है। गृहस्थ में भी हम विषयों से बद्ध न हो जाएँ। वानप्रस्थ में अत्यन्त शुद्धवृत्ति [अर्जुनी]-वाले बनें। संन्यास में इन्द्रियों व मन को अपने अन्दर आकृष्ट करनेवाले बनें। इसप्रकार हम आजीवन सोमयज्ञ करनेवाले हों।
भाषार्थ
(कः) कौन (असिद्याः) असित अर्थात् अशुक्ल-चित्तवृत्तियों का (पयः) फल देता है?
टिप्पणी
[असिद्याः=असित अर्थात् अशुक्ल, राजस-तामस तथा राजस-तामस-मिश्रित चित्तवृत्तियाँ।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Who brings you the fruit of uncontrolled acts of mental darkness?
Translation
Who does attain the corn of uncontrolled efforts ?
Translation
Who does attain the corn of uncontrolled efforts ?
Translation
Ask this learned person? Where should I ask?
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(कः) (असिद्याः) षिञ् बन्धने-क्तिन्, तस्य दः। असित्याः। बन्धनरहितक्रियायाः (पयः) पय गतौ-असुन्। अन्नम्-निघ० २।७ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ
भाषार्थ
(কঃ) কে (অসিদ্যাঃ) বন্ধনরহিত ক্রিয়ার (পয়ঃ) অন্নকে ॥২॥
भावार्थ
মনুষ্য বিবেকী, ক্রিয়াকুশল বিদ্বানদের থেকে শিক্ষা গ্রহণ করে বিদ্যাবল দ্বারা অবিশ্বাস্য, নতুন-নতুন আবিষ্কার করে উদ্যোগী হোক ॥১-৬॥
भाषार्थ
(কঃ) কে (অসিদ্যাঃ) অসিত অর্থাৎ অশুক্ল-চিত্তবৃত্তির (পয়ঃ) ফল প্রদান করে?
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