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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 8
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अकु॑प्यन्तः॒ कुपा॑यकुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अकु॑प्यन्त॒: । कुपा॑यकु: ॥१३०.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अकुप्यन्तः कुपायकुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अकुप्यन्त: । कुपायकु: ॥१३०.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (अकुप्यन्तः) कोप नहीं करनेवाला, (कुपायकुः) पृथिवी की रक्षा करनेवाला ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ८−(अकुप्यन्तः) जॄविशिभ्यां झच् उ० ३।१२६। कुप क्रोधे-झच्, अत्र कित् यकारश्च। क्रोधरहितः (कुपायकुः) कठिकुषिभ्यां काकुः। उ० ३।७७। काकुरेव ककुः। कु+पा रक्षणे-ककु, यकारश्च। कुं भूमिं पातीति सः। पृथिवीपालः ॥

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    विषय

    सुन्दर जीवन

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार यह वीर्यरक्षण करनेवाला-सोमयज्ञ करनेवाला व्यक्ति (यवान:) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] अपने से बुराइयों को दूर करता है और अच्छाइयों का अपने से मिश्रण करता है। यह (यतिस्वभिः) = [यति+स्व-भा+इ] संयत जीवनवाला व आत्मदीप्तिवाला होता है। (कु-भि:) = [कु+भा+इ] इस पृथिवी पर अपने कर्मों से यह दीस होता है। २. (अकुप्यन्तः) = [कुप्+ सच-अन्त] यह कभी क्रोध नहीं करता। (कुपायकु:) = इस पृथिवी पर सबका रक्षण करनेवाला बनता है। ३. (आमणक:) = [मण् to sound] यह चारों ओर ज्ञानोपदेश करनेवाला होता है। (मणत्सक:) = सदा स्तुतिवचनों के उच्चारण के स्वभाववाला बनता है। ४. यह मणत्सक इसप्रकार प्रभु का स्मरण करता है कि [क] (देव) = प्रभो! आप प्रकाशमय हो-दिव्यगुणों के पुञ्ज हो। तु-दिव्यगुणों के पुञ्ज होने के साथ आप (अ-प्रतिसूर्य) = एक अद्वितीय सूर्य हो। सूर्य के समान अन्धकारमात्र को विनष्ट करनेवाले हो। ५. यह प्रभु-स्मरण मणत्सक को भी 'देव व सूर्य' बनने की प्रेरणा देता है।

    भावार्थ

    सोम का रक्षण करनेवाला अनुपम सुन्दर जीवनवाला बनता है। [क] यह ब्रह्मचर्याश्रम में बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों का ग्रहण करता है [ख] संयत जीववाला व आत्मदीसिवाला होता है [ग] इस पृथिवी पर यशोदीप्त होता है [घ] गृहस्थ में क्रोध नहीं करता [ङ] सब सन्तानों का रक्षण करता है [च] ज्ञान का प्रचार करता है [छ] प्रभु का स्तवन करता है कि आप दिव्यगुणों के पुञ्ज हो, ज्ञान के सूर्य हो। इस स्तवन से वह ऐसा बनने की ही प्रेरणा लेता है। अब संन्यस्थ होकर स्वयं देव व सूर्य बनता है।

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    भाषार्थ

    हे सद्गुरो! आप (कुपायकुः) कुत्सित कर्मों से रक्षा करनेवाले हैं, इसलिए (अकुप्यन्तः) हम कोप-क्रोध आदि से रहित हो गये हैं।

    टिप्पणी

    [कुपायकुः=कु (कुत्सित कर्म)+पाय (पा रक्षणे)+कुः (करनेवाला)। पायुः=पाति रक्षति स पायुः रक्षकः (उणादि कोष १.१), रामलाल कपूर ट्रस्ट, बहालगढ़। कुपायकुः=कुपायुकः।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The man of peace free from hate and anger is saviour of earth from evil and negativities.

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    Translation

    The man without anger and arrogance becomes the guardian of earth.

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    Translation

    The man without anger and arrogance becomes the guardian of earth.

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    Translation

    O Lord, that White Lustre, effacer of all troubles and miseries is Thine. Thou art the Destroyer of all unhappiness and pain.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(अकुप्यन्तः) जॄविशिभ्यां झच् उ० ३।१२६। कुप क्रोधे-झच्, अत्र कित् यकारश्च। क्रोधरहितः (कुपायकुः) कठिकुषिभ्यां काकुः। उ० ३।७७। काकुरेव ककुः। कु+पा रक्षणे-ककु, यकारश्च। कुं भूमिं पातीति सः। पृथिवीपालः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অকুপ্যন্তঃ) অক্রোধী/ক্রোধরহিত, (কুপায়কুঃ) পৃথিবীর রক্ষাকারী ॥৮॥

    भावार्थ

    মনুষ্য শরীর এবং আত্মায় বলবান হয়ে ভূমির রক্ষা এবং বিদ্যার বৃদ্ধি করুক ॥৭-১০॥

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    भाषार्थ

    হে সদ্গুরু! আপনি (কুপায়কুঃ) কুৎসিত কর্ম থেকে রক্ষাকারী, এইজন্য (অকুপ্যন্তঃ) আমরা কোপ-ক্রোধাদি রহিত হয়ে গেছি।

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