Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 16
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    0

    इरा॑वेदु॒मयं॑ दत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इरा॑वेदुमयम् । द॒त ॥१३०.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इरावेदुमयं दत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इरावेदुमयम् । दत ॥१३०.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (इरावेदुमयम्) भूमि के ज्ञानवाला व्यवहार [उस को] (दत) तुम दो ॥१६॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग गुणवती स्त्री के सन्तानों को उत्तम शिक्षा देकर महान् विद्वान् और उद्योगी बनावें। ऐसा न करने से बालक निर्गुणी और पीड़ादायक होकर कुत्ते के समान अपमान पाते हैं ॥१-२०॥

    टिप्पणी

    १६−(इरावेदुमयम्) ऋज्रेन्द्राग्र०। उ० २।२८। इण् गतौ-रन्, गुणाभावः। भृमृशीङ्०। उ० १।७। विद ज्ञाने-उप्रत्ययः। इराया भूमेर्ज्ञानयुक्तं व्यवहारम् (दत) तलोपः। यूयं दत्त ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वशा का पुत्र

    पदार्थ

    १. (वशाया:) = वशा के-बन्ध्या गौ के (पुत्रम्) = पुत्र को (आयन्ति) = ये धन व सब दिव्यगुण प्राप्त होते हैं। एक व्यक्ति जो न्याय्य मार्गों से धर्नाजन करता है और उस धन को भोगविलास में व्ययित नहीं करता, इस पुरुष के लिए यह धन वन्ध्या गौ के समान है। यह इस लक्ष्मी को माता समझता है। यह विष्णु की पत्नी है-मेरी तो माता है, मैं इसका पुत्र हूँ' ऐसा समझनेवाला व्यक्ति धन का उपभोग क्योंकर करेगा? २. वह धन से शरीर का रक्षण करता हुआ भी उसे उपभोग्य वस्तु नहीं समझ लेता। प्रभु कहते हैं कि देव तो वशा के पुत्र को ही प्राप्त होते हैं, अत: तुम इस धन को (इरा-वेदु-मयम्) = [इरा-सरस्वती] सरस्वती के ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता के ज्ञान से पूरिपूर्ण पुरुष के लिए दत [दत्त]-देनेवाले बनो। धन कमाओ और ज्ञानी ब्राह्मणों के लिए देनेवाले बनो। वे इस धन का विनियोग शिक्षा के विस्तार में करनेवाले हों।

    भावार्थ

    हम धन कमाएँ। इस धन को उपभोग्य वस्तु न बनाकर इसे ज्ञानी पुरुषों के लिए दें-ताकि धन का विनियोग शिक्षा के विस्तार के लिए हो।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे कामवासनाओ! (इरावेदुमयम्) सांसारिक भोगरूपी मदिरा की प्राप्ति पर जो व्यक्ति तन्मय हो जाता है उस की, तुम (दत) जड़ काट देती हो।

    टिप्पणी

    [इरा=मद्य (उणादि कोष २.२९)+वेदु=विद्लृ लाभे (विद्+उ; उणादि कोष १.७, बाहुकात्)+ मयट्=प्रचुरार्थ। दत=दो अखण्डने; दाप् लवने।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Give man the knowledge of earthly life, uproot the love and sufferance of worldly passion and evil.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O men, spread the knowledge enriched with informations of earth and land.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O men, spread the knowledge enriched with information’s of earth and land.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let not the souls, the active enjoyers of this all, be destroyed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(इरावेदुमयम्) ऋज्रेन्द्राग्र०। उ० २।२८। इण् गतौ-रन्, गुणाभावः। भृमृशीङ्०। उ० १।७। विद ज्ञाने-उप्रत्ययः। इराया भूमेर्ज्ञानयुक्तं व्यवहारम् (दत) तलोपः। यूयं दत्त ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইরাবেদুময়ম্) ভূমির জ্ঞানযুক্ত ব্যবহার [তাঁকে] (দত) তুমি দাও/প্রদান করো॥১৬॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ গুণবতী স্ত্রী-এর সন্তানদের উত্তম শিক্ষাদান করে মহান বিদ্বান এবং উদ্যোগী করুক। এমনটা না করলে বালকরা/শিশুরা নির্গুণী এবং পীড়াদায়ক হয়ে কুকুরের সমান অপমানিত হয়।।১৫-২০॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    হে কামবাসনা! (ইরাবেদুময়ম্) সাংসারিক ভোগরূপী মদ্য প্রাপ্তিতে যে ব্যক্তি তন্ময় হয়ে যায় তাঁর, তুমি (দত) মূল ছিন্ন করো।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top