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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४
    1

    यः शश्व॑तो॒ मह्ये॑नो॒ दधा॑ना॒नम॑न्यमाना॒ञ्छर्वा॑ ज॒घान॑। यः शर्ध॑ते॒ नानु॒ददा॑ति शृ॒ध्यां यो दस्यो॑र्ह॒न्ता स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । शश्व॑त: । महि॑ । एन॑: । दधा॑नात् । अम॑न्यमानान् । शुर्वा॑ । ज॒घान॑ ॥ य: । शर्ध॑ते । न । अ॒नु॒ऽददा॑ति । शृ॒ध्याम् । य: । दस्यो॑: । ह॒न्ता । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः शश्वतो मह्येनो दधानानमन्यमानाञ्छर्वा जघान। यः शर्धते नानुददाति शृध्यां यो दस्योर्हन्ता स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । शश्वत: । महि । एन: । दधानात् । अमन्यमानान् । शुर्वा । जघान ॥ य: । शर्धते । न । अनुऽददाति । शृध्याम् । य: । दस्यो: । हन्ता । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जिसने (महि) बड़े (एनः) पाप को (दधानान्) धारण करनेवाले (शश्वतः) बहुत से (अमन्यमानान्) अज्ञानियों को (शर्वा) शासनरूपी वज्र से (जघान) मारा है। (यः) जो (शर्धते) अपमान करनेवाले को (शृध्याम्) उत्साह (न) नहीं (अनुददाति) कभी देता है, और (यः) जो (दस्योः) डाकू का (हन्ता) मारनेवाला है, (जनासः) हे मनुष्यो ! (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला परमेश्वर] है ॥१०॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा पापियों, निन्दकों और डाकुओं को बिना दण्ड दिये नहीं छोड़ता, अर्थात् दण्डनीय को दण्ड ही देता है, उसीको न्यायकारी जगदीश्वर जानो ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(यः) परमेश्वरः (शश्वतः) बहून्-निघ०३।१। (महि) महत् (एनः) पापम् (दधानान्) धरतः (अमन्यमानान्) अज्ञानिनः। शठान् (शर्वा) नुडभावः। शरुणा। शासनरूपवज्रेण (जघान) नाशितवान् (यः) (शर्धते) शृधु शब्दकुत्सायाम्, अपमाने उत्साहे च-शतृ। अपमानं कुर्वते (न) निषेधे (अनुददाति) आनुकूल्येन प्रयच्छति (शृध्याम्) शृधु उत्साहे-क्यप्। शर्धो बलनाम-निघ०२।९। उत्साहम् (यः) (दस्योः) परपदार्थापहारकस्य (हन्ता) घातकः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    'दस्यु-हन्ता' प्रभु

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (शश्वत:) = बहुत ही (महि एनः दधानान्) = महान् पापों को धारण करनेवाले, (अमन्यमानान्) = प्रभु में आस्था न रखनेवाले पापियों को (शर्वा) = हनन-साधन वन आदि से जधान नष्ट कर डालते हैं। हे (जनासः) = लोगो! (सः इन्द्रः) = वे ही परमैश्वर्यशाली प्रभु हैं। २. प्रभु वे हैं, (य:) = जो (शर्धते) = बल के अभिमान में निर्बलों का हिंसन करनेवाले के लिए (शुभ्याम्) = शत्रु प्रसहनशक्ति को न अनुददाति नहीं देते हैं और (य:) = जो (दस्योः हन्ता) = औरों का उपक्षय करनेवाले दस्युओं के हन्ता हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही पापियों का विनाश करते हैं। अत्याचारियों की शक्तियों को छीन लेते हैं तथा दस्युओं के विनाशक हैं।

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    भाषार्थ

    (यः) जो (शर्वा) अपने न्यायायुध द्वारा, (शश्वतः) शाश्वत काल से (महि एनः दधानान्) महापापधारी (अमन्यमानान्) अमननशील नास्तिकों का (जघान) हनन करता रहा है, (यः) जो (शर्धते) बलात्कारी को (शृध्याम्) विनाश करने की शक्ति का (न अनुददाति) अनुदान नहीं करता, (यः) जो (दस्योः) उपक्षकारी का (हन्ता) हनन करता है—(जनासः) हे प्रजाजनो! (सः इन्द्रः) वह परमेश्वर है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    He who holds and governs the eternal constituents of existence, who with his power of justice and punishment destroys the disreputables taking recourse to great sins and crimes, who disapproves, scotches and silences the evil tongue of the maligner, and who eliminates the wicked exploiter: such, O people, is Indra.

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    Translation

    He—who by his power of dispersing justice always punishes them who have committed great sins and do not know their consequences, who does give courage to him who indulg not in bad actions and who is the dispeller of cloud—O men, is Indra.

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    Translation

    He—who by his power of dispersing justice always punishes them who have committed great sins and do not know their consequences, who does give courage to him who indulge not in bad actions and who is the dispeller of cloud—O men, is Indra.

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    Translation

    O people, He is the mighty God, Who, by His power of destruction punishes those, who are constant bearers of great sins, and yet refuse to give them up and even to admit them, Who does not bless the wicked fault-finder, with any power of control, and Who destroys the violent person.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यः) परमेश्वरः (शश्वतः) बहून्-निघ०३।१। (महि) महत् (एनः) पापम् (दधानान्) धरतः (अमन्यमानान्) अज्ञानिनः। शठान् (शर्वा) नुडभावः। शरुणा। शासनरूपवज्रेण (जघान) नाशितवान् (यः) (शर्धते) शृधु शब्दकुत्सायाम्, अपमाने उत्साहे च-शतृ। अपमानं कुर्वते (न) निषेधे (अनुददाति) आनुकूल्येन प्रयच्छति (शृध्याम्) शृधु उत्साहे-क्यप्। शर्धो बलनाम-निघ०२।९। उत्साहम् (यः) (दस्योः) परपदार्थापहारकस्य (हन्ता) घातकः। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যিনি (মহি) বড় (এনঃ) পাপ (দধানান্) ধারণকারী (শশ্বতঃ) বহু (অমন্যমানান্) অজ্ঞানীদের (শর্বা) শাসনরূপী বজ্র দ্বারা (জঘান) নাশ করেন। (যঃ) যিনি (শর্ধতে) অপমানকারীদের (শৃধ্যাম্) উৎসাহ (ন) না (অনুদদাতি) কখনো দেন, এবং (যঃ) যিনি (দস্যোঃ) দস্যুদের (হন্তা) হন্তারক, (জনাসঃ) হে মনুষ্যগণ ! (সঃ) তিনিই (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর] ॥১০॥

    भावार्थ

    যে পরমাত্মা পাপী, নিন্দুক ও ডাকাতদের শাস্তি দেন, উনাকেই ন্যায়কারী জগদীশ্বর জেনো ॥১০॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যিনি (শর্বা) নিজের ন্যায়ায়ুধ/শাসনরূপী বজ্র দ্বারা, (শশ্বতঃ) শাশ্বত কাল থেকে (মহি এনঃ দধানান্) মহাপাপধারী (অমন্যমানান্) অমননশীল নাস্তিকদের (জঘান) হনন করেছেন/করছেন, (যঃ) যিনি (শর্ধতে) ধর্ষককে (শৃধ্যাম্) বিনাশ করার শক্তির (ন অনুদদাতি) অনুদান করেন না, (যঃ) যিনি (দস্যোঃ) উপক্ষকারীর (হন্তা) হনন করেন—(জনাসঃ) হে প্রজাগণ! (সঃ ইন্দ্রঃ) তিনি পরমেশ্বর।

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