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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४
    1

    यस्मा॒न्न ऋ॒ते वि॒जय॑न्ते॒ जना॑सो॒ यं युध्य॑माना॒ अव॑से॒ हव॑न्ते। यो विश्व॑स्य प्रति॒मानं॑ ब॒भूव॒ यो अ॑च्युत॒च्युत्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्मा॑त् । न । ऋ॒ते । वि॒ऽजय॑न्ते । जना॑स: । यम् । युध्य॑माना: । अव॑से । हव॑न्ते ॥ य: । विश्व॑स्य । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । ब॒भूव॑ । य: । अ॒च्यु॒त॒ऽच्युत् । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्मान्न ऋते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते। यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत्स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्मात् । न । ऋते । विऽजयन्ते । जनास: । यम् । युध्यमाना: । अवसे । हवन्ते ॥ य: । विश्वस्य । प्रतिऽमानम् । बभूव । य: । अच्युतऽच्युत् । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यस्मात् ऋते) जिसके बिना (जनासः) मनुष्य (न) नहीं (विजयन्ते) विजय पाते हैं, (यम्) जिसको (युध्यमानाः) लड़ते हुए लोग (अवसे) रक्षा के लिये (हवन्ते) पुकारते हैं। (यः) जो (विश्वस्य) संसार का (प्रतिमानम्) प्रत्यक्ष नापने का साधन और (यः) जो (अच्युतच्युत्) नहीं हिलनेवालों का हिलानेवाला (बभूव) है, (जनासः) हे मनुष्यो ! (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला परमेश्वर] है ॥९॥

    भावार्थ

    जिस जगदीश्वर की उपासना से ही मनुष्य युद्ध में जय पाते हैं, जो सब संसार को ठीक-ठीक जानता और जो अत्यन्त से अत्यन्त दृढ़ स्वभाववालों को वश में रखता है, उसकी उपासना सब करें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(यस्मात्) परमेश्वरात् (न) निषेधे (ऋते) विना (विजयन्ते) विजयं प्राप्नुवन्ति (जनासः) मनुष्याः (यम्) (युध्यमानाः) युद्धं कुर्वाणाः (अवसे) रक्षणाय (हवन्ते) आह्वयन्ति (यः) (विश्वस्य) संसारस्य (प्रतिमानम्) प्रत्यक्षमानसाधनम् (बभूव) लडर्थे लिट्। भवति (यः) (अच्युतच्युत्) अच्युतानाम्, अच्यावयितव्यानां स्थावरादीनां च्यावयिता प्रेरयिता। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    'सर्वविजेता' प्रभु

    पदार्थ

    १. हे (जनास:) = लोगो (इन्द्रः स:) = परमैश्वर्यशाली प्रभु वे हैं, (यस्मात् ऋते) = जिनके विना (जनास:) = लोग न (विजयन्ते) = विजय को प्राप्त नहीं करते। वस्तुतः सब विजय प्रभु की ही है 'जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि, सत्त्वं सत्त्ववतामहम्'। २. प्रभु वे है, (यम्) = जिनको (युध्यमाना:) = युद्ध करते हुए लोग अवसे रक्षण के लिए (हवन्ते) = पुकारते हैं। प्रभु ही युद्ध में हमें शत्रुपराभव की शक्ति प्राप्त कराते हैं। ३. प्रभु वे हैं (य:) = जो (विश्वस्य) = संसार का प्रतिमानम् [An adversary]: प्रतिस्पर्द्धा करनेवाले योद्धा (बभूव) = हैं। सारा संसार हमारे विरुद्ध हो, परन्तु प्रभु का हमें साथ प्राप्त हो तो हम पराजित न होंगे। प्रभु तो वे हैं, (य:) = जो (अच्युतच्युत) = दृढ़-से-दृढ़ [च्यावयितुम् अशक्यम्] भी लोकों को च्युत करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ही सब विजयों के करनेवाले हैं। सबके रक्षक हैं। अनन्तशक्तिवाले हैं। सब शत्रुओं के पराजेता हैं।

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    भाषार्थ

    (यस्मात् ऋते) जिसकी सहायता के विना (जनासः) लोग (विजयन्ते न) विरोधी शक्तियों पर विजय नहीं पाते, (युध्यमानाः) और युद्ध करते हुए (अवसे) रक्षार्थ (यम्) जिसको (हवन्ते) पुकारते हैं, (यः) जो (विश्वस्य) समग्र संसार की (प्रतिमानम्) प्रत्येक वस्तु का निर्माण करता (बभूव) है, (यः) जो (अच्युतच्युत्) अच्युतों को भी च्युत कर देता है—(जनासः) हे प्रजाजनो! (सः इन्द्रः) वह परमेश्वर है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Without whom the people win no victories, on whom the warriors depend for protection, who is the comprehending measure of the universe and the unmoved mover of the cosmic dynamics: he, O people of the world, is Indra.

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    Translation

    He—without whom men do not conquer whom fighting warriors invoke for succour, who become the measurement of the universe and who is the mover of unmoved—O man is Indra.

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    Translation

    He—without whom men do not conquer, whom fighting warriors invoke for succour, who become the measurement of the universe and who is the mover of unmoved—O man is Indra,

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    Translation

    O men, He is the Almighty Lord, without Whom people cannot win. Whom the fighting people call for protection and safety, Who, being the Creator of the world has become its model or idol, Who is the Smasher of the imperishable even.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(यस्मात्) परमेश्वरात् (न) निषेधे (ऋते) विना (विजयन्ते) विजयं प्राप्नुवन्ति (जनासः) मनुष्याः (यम्) (युध्यमानाः) युद्धं कुर्वाणाः (अवसे) रक्षणाय (हवन्ते) आह्वयन्ति (यः) (विश्वस्य) संसारस्य (प्रतिमानम्) प्रत्यक्षमानसाधनम् (बभूव) लडर्थे लिट्। भवति (यः) (अच्युतच्युत्) अच्युतानाम्, अच्यावयितव्यानां स्थावरादीनां च्यावयिता प्रेरयिता। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যস্মাৎ ঋতে) যাকে ছাড়া (জনাসঃ) মনুষ্য (ন) না (বিজয়ন্তে) বিজয়ী হয়, (যম্) যাকে (যুধ্যমানাঃ) যুদ্ধরত মনুষ্য (অবসে) রক্ষার জন্য (হবন্তে) আহ্বান করে। (যঃ) যিনি (বিশ্বস্য) সংসারের (প্রতিমানম্) প্রত্যক্ষ পরিমাপের সাধন এবং (যঃ) যিনি (অচ্যুতচ্যুৎ) অচ্যুতদেরও চ্যুতকারী (বভূব) হয়/হন, (জনাসঃ) হে মনুষ্যগণ ! (সঃ) তিনিই (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমেশ্বর] ॥৯॥

    भावार्थ

    যে জগদীশ্বরের উপাসনা দ্বারা মনুষ্য যুদ্ধে জয়ী হয়, যিনি সমগ্র সংসারকে সঠিকভাবে জানেন এবং যিনি অত্যন্ত দৃঢ়স্বভাবযুক্তদের বশে রাখেন, সেই পরমেশ্বরের উপাসনা সকলে করে/করুক॥৯॥

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    भाषार्थ

    (যস্মাৎ ঋতে) যার সহায়তা বিনা (জনাসঃ) লোকজন (বিজয়ন্তে ন) বিরোধী শক্তির ওপর বিজয় প্রাপ্ত হয় না, (যুধ্যমানাঃ) এবং যুদ্ধ করে (অবসে) রক্ষার্থে (যম্) যাকে (হবন্তে) আহ্বান করে, (যঃ) যিনি (বিশ্বস্য) সমগ্র সংসারের (প্রতিমানম্) প্রত্যেক বস্তুর নির্মাণকারী (বভূব) হয়েছেন, (যঃ) যিনি (অচ্যুতচ্যুৎ) অচ্যুতকেও চ্যুত করেন—(জনাসঃ) হে প্রজাগণ! (সঃ ইন্দ্রঃ) তিনি পরমেশ্বর।

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