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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४
    1

    यो र॒ध्रस्य॑ चोदि॒ता यः कृ॒शस्य॒ यो ब्र॒ह्मणो॒ नाध॑मानस्य की॒रेः। यु॒क्तग्रा॑व्णो॒ योऽवि॒ता सु॑शि॒प्रः सु॒तसो॑मस्य॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । र॒ध्रस्य॑ । चो॒दि॒ता: । य: । कृ॒शस्य॑ । य: । ब्र॒ह्मण॑: । नाध॑मानस्य । की॒रे: ॥ यु॒क्तऽग्रा॑व्ण: । य: । अ॒वि॒ता । सु॒शि॒प्र: । सु॒तऽसो॑मस्य । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रध्रस्य चोदिता यः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः। युक्तग्राव्णो योऽविता सुशिप्रः सुतसोमस्य स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । रध्रस्य । चोदिता: । य: । कृशस्य । य: । ब्रह्मण: । नाधमानस्य । कीरे: ॥ युक्तऽग्राव्ण: । य: । अविता । सुशिप्र: । सुतऽसोमस्य । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [परमेश्वर] (रध्रस्य) धनी का, और (यः) जो (कृशस्य) दुर्बल का, (यः) जो (नाधमानस्य) ऐश्वर्यवाले, (कीरेः) गुणों के व्याख्याता (ब्रह्मणः) ब्रह्मा [ब्रह्मज्ञानी] का (चोदिता) आगे बढ़ानेवाला है। (यः) जो (युक्तग्राव्णः) योगाभ्यासी पण्डित का और (सुतसोमस्य) मोक्ष पा लेनेवाले का (सुशिप्रः) बड़ा सेवनीय (अविता) रक्षक है, (जनासः) हे मनुष्यो ! (सः) वह (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला परमेश्वर] है ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य उस परमात्मा की उपासना से सदा उत्तम कर्म करें, जो सबको श्रेष्ठ कर्म द्वारा उन्नति के लिये आज्ञा देता है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(यः) परमेश्वरः (रध्रस्य) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। रध हिंसासंराद्ध्योः-रक्। समृद्धस्य। धनिकस्य (चोदिता) प्रेरकः (यः) (कृशस्य) दुर्बलस्य (यः) (ब्रह्मणः) वेदज्ञानिनः पुरुषस्य (नाधमानस्य) नाधृ याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु-शानच्। ऐश्वर्ययुक्तस्य (कीरेः) अ०२०।१७।१२। गुणव्याख्यातुः (युक्तग्राव्णः) युज समाधौ-क्त। अन्येभ्येऽपि दृश्यन्ते। पा०३।२।७। गॄ शब्दे विज्ञापे स्तुतौ च-क्वनिप्। अभ्यस्तयोगस्य पण्डितस्य (यः) (अविता) रक्षकः (सुशिप्रः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। शेवृ सेवायाम्-रक्, पृषोदरादित्वाद् रूपसिद्धिः। सुसेवनीयः (सुतसोमस्य) षु गतौ प्रसवैश्वर्ययोश्च-क्त, सोमो मोक्षः। प्राप्तमोक्षस्य। अन्यत् गतम् ॥

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    विषय

    'युक्तग्राव्ण-सुतसोम'

    पदार्थ

    १. हे (जनास:) = लोगो! (इन्द्रः सः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु वे हैं, (य:) = जो (रधस्य) = समृद्ध पुरुषों के (चोदिता) = प्रेरक हैं। उन्हें यज्ञादि कर्मों में धन के उपयोग की प्रेरणा देनेवाले ये प्रभु ही हैं। प्रभु वे है, (यः) = जो कशस्यदुर्बल के भी प्रेरक हैं। इसे उत्साहित करते हुए आगे बढ़ने के योग्य बनाते हैं। प्रभु वे हैं (य:) = जो (नाधमानस्य) = याचना करते हुए (कीरेः) = स्तोता के लिए धनों को प्रेरित करते हैं तथा (ब्रह्मण:) = ज्ञानी के प्रेरक हैं-ज्ञानी के लिए ज्ञान देनेवाले प्रभु ही हैं। २. प्रभु वे हैं (यः) = जो (युक्तग्नाव्यः) = [ग्रावा-प्राण]-प्राणायाम द्वारा चित्तवृत्ति को प्रभु में लगानेवाले के (अविता) = रक्षक हैं तथा (सुतसोमस्य) = अपने अन्दर सोम का सम्पादन करनेवाले पुरुष को (सुशिप्र:) = उत्तम जबड़ों व नासिका-छिद्रों को प्राप्त करानेवाले है। वस्तुत: जबड़ों से भोजन को ठीक चबाता हुआ तथा नासिका-छिद्रों से प्राणायाम करता हुआ ही यह सुतसोम बन पाता है।

    भावार्थ

    प्रभु 'धनी, निर्धन, ज्ञानी व स्तोता' सभी को समचित प्रेरणा देनेवाले हैं। प्राणसाधना करनेवाले व सोम का सम्पादन करनेवाले पुरुष को उत्तम जबड़ों व नासिका को प्राप्त कराते हैं।

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    भाषार्थ

    (यः) जो (रध्रस्य) इन्द्रियों को वश में करनेवाले या स्ववशीभूत व्यक्ति को (चोदिता) प्रेरणाएँ देता, (यः) जो (कृशस्य) तपःकृश व्यक्ति को प्रेरणाएँ देता, (यः) जो (नाधमानस्य) याचना करनेवाले, (कीरेः) स्तुतिकर्त्ता (ब्रह्मणः) ब्रह्मवेत्ता व्यक्ति को प्रेरणाएँ देता है, (यः) जो (सुशिप्रः) तेजस्वी (युक्तग्राव्णः) उपयुक्त अर्थात् यथार्थ स्तुतियाँ करनेवाले, तथा (सुतसोमस्य) भक्तिरस सम्पन्न व्यक्ति की (अविता) रक्षा करता है—(जनासः) हे प्रजाजनो! (सः इन्द्रः) वह परमेश्वर है।

    टिप्पणी

    [रध्रस्य=रध्यतिः वशगमने (निरु০ ६.६.३२)। कीरिः=स्तोता (निघं০ ३.१३)। ग्रावा=स्तोता; गृणातेः (निरु০ ९.१.५)।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    He is inspirer of the obedient worshipper, support of the weak and emaciated, promoter of knowledge and Veda, saviour of the poor and destitute, and strength of the celebrant; he is protector of the person who is dedicated to learning and soma-yajna, commands knowledge and creates the joy of soma in society: Such is Indra, O people of the world.

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    Translation

    He-who is giver of initiative to wealthy man and the weak, of priest of suppliant singing praises and prayers, who is guardian of learned man endowed with mystric power, and who is the object of worship for the man who has atained height of trance-O men, is Indra.

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    Translation

    He-who is giver of initiative to wealthy man and the weak, of priest. of suppliant singing praises and prayers, who is guardian of learned man endowed with mystric power, and who is the object of worship for the man who has attained height of trance-O men, is Indra.

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    Translation

    O people, He is the Almighty Lord, Who showers fortunes on the rich as well as the poor; who gives to the beseeching Brahman and any other supplicant of disturbed mind; Who is the protector of an energetic yogi, given to deep meditation through Pranayam, and immersed in deep bliss.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(यः) परमेश्वरः (रध्रस्य) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। रध हिंसासंराद्ध्योः-रक्। समृद्धस्य। धनिकस्य (चोदिता) प्रेरकः (यः) (कृशस्य) दुर्बलस्य (यः) (ब्रह्मणः) वेदज्ञानिनः पुरुषस्य (नाधमानस्य) नाधृ याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु-शानच्। ऐश्वर्ययुक्तस्य (कीरेः) अ०२०।१७।१२। गुणव्याख्यातुः (युक्तग्राव्णः) युज समाधौ-क्त। अन्येभ्येऽपि दृश्यन्ते। पा०३।२।७। गॄ शब्दे विज्ञापे स्तुतौ च-क्वनिप्। अभ्यस्तयोगस्य पण्डितस्य (यः) (अविता) रक्षकः (सुशिप्रः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। शेवृ सेवायाम्-रक्, पृषोदरादित्वाद् रूपसिद्धिः। सुसेवनीयः (सुतसोमस्य) षु गतौ प्रसवैश्वर्ययोश्च-क्त, सोमो मोक्षः। प्राप्तमोक्षस्य। अन्यत् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [পরমেশ্বর] (রধ্রস্য) ধনীর, এবং (যঃ) যিনি (কৃশস্য) দুর্বলের, (যঃ) যিনি (নাধমানস্য) ঐশ্বর্যবানের, (কীরেঃ) গুণের ব্যাখ্যাতা (ব্রহ্মণঃ) ব্রহ্মা [ব্রহ্মজ্ঞানী] এর (চোদিতা) প্রেরক। (যঃ) যিনি (যুক্তগ্রাব্ণঃ) যোগাভ্যাসী পণ্ডিতের এবং (সুতসোমস্য) মোক্ষ প্রাপ্তগণের (সুশিপ্রঃ) সুসেবনীয় (অবিতা) রক্ষক, (জনাসঃ) হে মনুষ্যগণ! (সঃ) তিনি (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর] ॥৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্য সেই পরমাত্মার উপাসনা দ্বারা সদা উত্তম কর্ম করবে/করুক, যিনি সকলকে শ্রেষ্ঠ কর্মদ্বারা উন্নতির জন্য আজ্ঞা দেন ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যিনি (রধ্রস্য) ইন্দ্রিয়-সমূহকে বশবর্তীকারী/নিয়ন্ত্রণকারী/সংযমকারী বা স্ববশীভূত ব্যক্তিকে (চোদিতা) প্রেরণা প্রদান করেন, (যঃ) যিনি (কৃশস্য) তপঃকৃশ ব্যক্তিকে প্রেরণা প্রদান করেন, (যঃ) যিনি (নাধমানস্য) যাচনাকারী, (কীরেঃ) স্তুতিকর্ত্তা (ব্রহ্মণঃ) ব্রহ্মবেত্তা ব্যক্তিকে প্রেরণা প্রদান করেন, (যঃ) যিনি (সুশিপ্রঃ) তেজস্বী (যুক্তগ্রাব্ণঃ) উপযুক্ত অর্থাৎ যথার্থ স্তোতা, তথা (সুতসোমস্য) ভক্তিরস সম্পন্ন ব্যক্তির (অবিতা) রক্ষা করেন—(জনাসঃ) হে প্রজাগণ! (সঃ ইন্দ্রঃ) তিনি পরমেশ্বর।

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