अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 18
यः सु॑न्व॒ते पच॑ते दु॒ध्र आ चि॒द्वाजं॒ दर्द॑र्षि॒ स किला॑सि स॒त्यः। व॒यं त॑ इन्द्र वि॒श्वह॑ प्रि॒यासः॑ सु॒वीरा॑सो वि॒दथ॒मा व॑देम ॥
स्वर सहित पद पाठय: । सु॒न्व॒ते । पच॑ते । दु॒ध्र: । आ । चि॒त् । वाज॑म् । दर्द॑र्षि । स: । किल॑ । अ॒सि॒ । स॒त्य: ॥ व॒यम् । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । वि॒श्वह॑ । प्रि॒यास॑: । सु॒ऽवीरा॑स: । वि॒दथ॑म् । आ । व॒दे॒म॒ ॥३४.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद्वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः। वयं त इन्द्र विश्वह प्रियासः सुवीरासो विदथमा वदेम ॥
स्वर रहित पद पाठय: । सुन्वते । पचते । दुध्र: । आ । चित् । वाजम् । दर्दर्षि । स: । किल । असि । सत्य: ॥ वयम् । ते । इन्द्र । विश्वह । प्रियास: । सुऽवीरास: । विदथम् । आ । वदेम ॥३४.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो तू (दुध्रः) पूर्ण होकर (चित्) ही (सुन्वते) तत्त्व निचोड़ते हुए और (पचते) परिपक्व करते हुए के लिये (वाजम्) अत्र [वा बल] (आ दर्दर्षि) फाड़कर देता है, (सः) सो तू (किल) निश्चय करके (सत्यः) सच्चा (असि) है। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (वयम्) हम (ते) तेरे (प्रियासः) प्यारे होकर (सुवीरासः) सुन्दर वीरोंवाले (विश्वह) सब दिनों (विदथम्) ज्ञान का (आ) सब ओर (वदेम) उपदेश करें ॥१८॥
भावार्थ
परिपूर्ण सत्यस्वरूप परमात्मा तत्त्वदर्शी परिपक्व ज्ञानियों को धनवान् और बलवान् करता है, उसीके गुणों को विचारकर हम उत्तम वीरोंवाले होवें ॥१८॥
टिप्पणी
१८−(यः) परमेश्वरः (सुन्वते) तत्त्वं निष्पादयते (पचते) परिपक्वं कुर्वते (दुध्रः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। दुह प्रपूरणे-रक्, हस्य धः। पूर्णः सन् (आ) समन्तात् (चित्) अपि (वाजम्) अन्नम्। बलम् (दर्दर्षि) दॄ विदारणे-यङ्लुकि लट्। भृशं विदृणासि। अत्यन्तं ददासि (सः) (किल) निश्चयेन (असि) (सत्यः) यथार्थस्वरूपः (वयम्) (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (विश्वह) अकारलोपो विभक्तेर्लुक् च। विश्वेषु अहःसु दिनेषु (प्रियासः) प्रियाः सन्तः (सुवीरासः) शोभनवीरोपेताः (विदथम्) ज्ञानम् (आ) समन्तात् (वदेम) उपदिशेम ॥
विषय
प्रियासः-सुवीरासः
पदार्थ
१. (यः) = जो (दुध्रः) = दुर्धर्ष व अजेय प्रभु (सुन्वते) = अपने अन्दर सोम का अभिषव करनेवाले के लिए तथा (पचते) = ज्ञानाग्नि में अपना परिपाक करनेवाले के लिए (चित्) = निश्चय से (वाजम्) -=शक्ति को (आदर्दर्षि) = खूब ही प्राप्त कराते हैं। (स:) = वे आप (किल) = निश्चय से (सत्यः असि) = सत्यस्वरूप हैं। २. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो। (वयम्) = हम (विश्वह) = सदा (ते) = आपके (प्रियास:) = प्रिय बनें, तथा (सुवीरास:) = उत्तम वीर बनते हुए (विदशम् आवदेम) = ज्ञान की बाणियों का उच्चारण करें ज्ञानी बनने के लिए यत्नशील हों।
भावार्थ
सोमरक्षक, ज्ञानाग्नि में अपना परिपाक करनेवाले पुरुष को प्रभु शक्ति देते हैं। हम सदा प्रभु के प्रिय, बीर होते हुए ज्ञान की वाणियों का ही उच्चारण करें। यह ज्ञान की वाणियों का उच्चारण करनेवाला व्यक्ति प्रभु का प्रिय स्तोता बनता है, अत: 'नोधा:' कहलाता है-स्तुति का धारण करनेवाला। यह अपने अन्दर शक्ति को भर पाता है, अत: 'भरद्वाज' होता है। यह स्तवन करता हुआ कहता है कि -
भाषार्थ
हे परमेश्वर! (यः) जो आप, (सुन्वते) जो भक्तिरस का निष्पादन कर रहा है उसके लिए, (पचते) जो भक्तिरस को परिपक्व कर रहा है उसके लिए, (दुध्रे) जो अपने व्रतों में दुर्धर है उसके लिए, (वाजम्) बल और शक्ति (आ दर्दषि) आदर पूर्वक देते है, (सः) वे आप (किल) निश्चय से (सत्यः असि) सत्यस्वरूप हैं। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (विश्वह) हे विश्वव्यापी! (वयम्) हम (ते) आपके (प्रियासः) प्रिय बने रहें। और (सुवीरासः) धर्मकार्यों में सुवीर बनकर (विदथम्) आपके ज्ञान को (आ वदेम) सर्वत्र करते रहें। [विश्वह=विश्व+हाङ् (गतौ, सम्बुद्धौ)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Indra, lord of light and life, potent and inviolable, you provide all power and protection with speed of advancement for the creative and struggling perfectionist, and you ward off all force of opposition from him. Lord of existence, surely you are the ultimate Truth, you are Eternal. Lord giver of life and potency, we love you, we are your dear darlings. We pray that confident and brave, blest with noble progeny, we may always honour you with holy songs of celebration and creative action in yajna.
Translation
That you, O Almighty God, are surely true and strong (Dudhra) one who gives grain and knowledge to him who performs Yajna and who cooks Purodasha etc. O Lord, we are evermore, your friends may we blessed with good heros adore and describe you in assmbly of men.
Translation
That you, O Almighty God, are surely true and strong (Dudhra) one who gives grain and knowledge to him who performs Yajna and who cooks Purodasha etc. O Lord, we are evermore, your friends may we blessed with good heroes adore and describe you in assembly of men.
Translation
O Almighty God, surely True art Tice, Who, being Invincible, showers all power and food-grains, knowledge and wealth on the sacrificing and hospitable person. May we ever be loved by Thee and being brave and courageous, ever sing Thy praise.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८−(यः) परमेश्वरः (सुन्वते) तत्त्वं निष्पादयते (पचते) परिपक्वं कुर्वते (दुध्रः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ०२।१३। दुह प्रपूरणे-रक्, हस्य धः। पूर्णः सन् (आ) समन्तात् (चित्) अपि (वाजम्) अन्नम्। बलम् (दर्दर्षि) दॄ विदारणे-यङ्लुकि लट्। भृशं विदृणासि। अत्यन्तं ददासि (सः) (किल) निश्चयेन (असि) (सत्यः) यथार्थस्वरूपः (वयम्) (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (विश्वह) अकारलोपो विभक्तेर्लुक् च। विश्वेषु अहःसु दिनेषु (प्रियासः) प्रियाः सन्तः (सुवीरासः) शोभनवीरोपेताः (विदथम्) ज्ञानम् (आ) समन्तात् (वदेम) उपदिशेम ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(যঃ) যে তুমি (দুধ্রঃ) পূর্ণ হয়ে (চিৎ) ই (সুন্বতে) তত্ত্ব নিষ্পাদনকারী এবং (পচতে) পরিপক্বকারীর জন্য (বাজম্) অত্র [বা বল] (আ দর্দর্ষি) প্রদান করো, (সঃ) সেই তুমি (কিল) নিশ্চয়ই (সত্যঃ) সত্য (অসি) হও। (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর] (বয়ম্) আমরা (তে) তোমার (প্রিয়াসঃ) প্রিয় হয়ে (সুবীরাসঃ) সুন্দর বীরযুক্ত (বিশ্বহ) সকল দিন (বিদথম্) জ্ঞানকে (আ) সকল দিকে (বদেম) উপদেশ করি ॥১৮॥
भावार्थ
পরিপূর্ণ সত্যস্বরূপ পরমাত্মা তত্ত্বদর্শী পরিপক্ব জ্ঞানীদের ধনবান ও বলবান করেন, পরমেশ্বরের গুণসমূহ বিচার করে আমরা উত্তম বীরযুক্ত হব॥১৮॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! (যঃ) যে আপনি, (সুন্বতে) ভক্তিরস নিষ্পাদন করছে তাঁর জন্য, (পচতে) যে ভক্তিরস পরিপক্ব করছে তাঁর জন্য, (দুধ্রে) যে নিজ ব্রতে দুর্ধর তাঁর জন্য, (বাজম্) বল এবং শক্তি (আ দর্দষি) আদর পূর্বক প্রদান করেন, (সঃ) সেই আপনি (কিল) নিশ্চিতরূপে (সত্যঃ অসি) সত্যস্বরূপ। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (বিশ্বহ) হে বিশ্বব্যাপী! (বয়ম্) আমরা (তে) আপনার (প্রিয়াসঃ) প্রিয় হয়ে থাকি। এবং (সুবীরাসঃ) ধর্মকার্যে সুবীর হয়ে (বিদথম্) আপনার জ্ঞান (আ বদেম) সর্বত্র করতে থাকি। [বিশ্বহ=বিশ্ব+হাঙ্ (গতৌ, সম্বুদ্ধৌ)।]
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