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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 14
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - क्षत्रपतिर्देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    4

    योगे॑योगे त॒वस्त॑रं॒ वाजे॑वाजे हवामहे। सखा॑य॒ऽइन्द्र॑मू॒तये॑॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    योगे॑योग॒ इति योगे॑ऽयोगे। त॒वस्त॑र॒मिति॑ त॒वःऽत॑रम्। वाजे॑वाज॒ इति॒ वाजे॑ऽवाजे। ह॒वा॒म॒हे॒। सखा॑यः। इन्द्र॑म्। ऊ॒तये॑ ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    योगेयोगे तवस्तरँवाजेवाजे हवामहे । सखायऽइन्द्रमूतये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    योगेयोग इति योगेऽयोगे। तवस्तरमिति तवःऽतरम्। वाजेवाज इति वाजेऽवाजे। हवामहे। सखायः। इन्द्रम्। ऊतये॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 14
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    प्रजाजनाः कीदृशं राजानमङ्गीकुर्य्युरित्याह॥

    अन्वयः

    हे सखायः! यथा वयमूतये योगेयोगे वाजेवाजे तवस्तरमिन्द्रं हवामहे, तथा यूयमप्येतमाह्वयत॥१४॥

    पदार्थः

    (योगेयोगे) युञ्जते यस्मिन् यस्मिन् (तवस्तरम्) अत्यन्तं बलयुक्तम्। तव इति बलनामसु पठितम्॥ (निघं॰२।९) ततस्तरप् (वाजेवाजे) सङ्ग्रामे सङ्ग्रामे (हवामहे) आह्वयामहे (सखायः) परस्परं सुहृदः सन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्ययुक्तं राजानम् (ऊतये) रक्षणाद्याय॥१४॥

    भावार्थः

    ये परस्परं मित्रा भूत्वाऽन्योन्यस्य रक्षार्थं बलिष्ठं धार्मिकं राजानं स्वीकुर्वन्ति, ते निर्विघ्नाः सन्तः सुखमेधन्ते॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रजाजन कैसे पुरुष को राजा मानें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (सखायः) परस्पर मित्रता रखने हारे लोगो! जैसे हम लोग (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (योगेयोगे) जिस-जिस में युक्त होते हैं, उस-उस तथा (वाजेवाजे) सङ्ग्राम-सङ्ग्राम के बीच (तवस्तरम्) अत्यन्त बलवान् (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्त पुरुष को राजा (हवामहे) मानते हैं, वैसे ही तुम लोग भी मानो॥१४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परस्पर मित्र हो के एक दूसरे की रक्षा के लिये अत्यन्त बलवान् धर्मात्मा पुरुष को राजा मानते हैं, वे सब विघ्नों से अलग हो के सुख की उन्नति कर सकते हैं॥१४॥

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    विषय

    तवस्तर

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र में अपने जीवन-मार्ग में प्रभु को युक्त करने का उपदेश था। उसी प्रसङ्ग में कहते हैं कि ( योगेयोगे ) = जब-जब हम प्रभु से अपना योग करते हैं तब वे प्रभु ( तवस्तरम् ) = [ तवस् = बल ] हमारे बल को अधिक और अधिक बढ़ाते हैं। पिछले मन्त्र में प्रभु से मेल करनेवाले पति-पत्नी को वृषण्वसू कहा था—शक्तिशाली, प्रभुरूप धनवाले। प्रभु को अपना धन बनाकर वे ( वाजी ) = शक्तिशाली बने थे। उस १३वें मन्त्र का विषय [ देवता ] यह ‘वाजी’ ही था। प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि शुनःशेप = सुख का निर्माण करनेवाला है। शक्तिशाली का ही जीवन सुखी होता है। यह ‘शुनःशेप’ भी प्रभु के योग के कारण ‘क्षत्रपति’ है, बल का स्वामी है। यही प्रस्तुत मन्त्र का देवता = विषय है। 

    २. ( वाजे-वाजे ) = प्रत्येक संग्राम में ( हवामहे ) = हम उस प्रभु को पुकारते हैं। वस्तुतः उस प्रभु ने ही विजय करानी है। हमारी शक्ति विजय करने की नहीं। हमारा रथ प्रभु से अधिष्ठित होता है तो विजयी होता है अन्यथा इसके लिए पराजय-ही-पराजय है। 

    ३. ( सखायः ) = अतः हम उस प्रभु के सखा बनने के लिए प्रयत्नशील होते हैं। वे प्रभु हमारे द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया = सयुज् सखा हैं—कभी साथ न छोड़नेवाले मित्र हैं। 

    ४. ( इन्द्रम् ) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु को ( ऊतये ) = रक्षा के लिए हम अपने साथ युक्त करते हैं। प्रभु से युक्त होने पर इस प्रभु के नाम-श्रवण से ही शत्रुओं के सेनापति काम का संहार हो जाता है। सब शत्रुओं का विजय करके हम अपने जीवन को बड़ा सुखी बना पाते हैं और प्रस्तुत मन्त्र के ऋषि ‘शुनःशेप’ होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ — प्रभु की उपासना हमें शक्तिशाली बनाती है। शत्रुओं के साथ संग्राम में हमें विजयी करती है। हमारा जीवन सुखमय होता है।

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    विषय

    ऐश्वर्यवान् पुरुष को उच्च स्थानों पर बैठाना।

    भावार्थ

    हे ( सखायः ) मित्रजनो ! आप लोग ( योगे योगे ) प्रत्येक नियुक्त होने के पद पर ( तवस्तरम् ) औरों से अधिक बलशाली (इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान् पुरुष को ( ऊतये ) अपनी रक्षा के लिये ( वाजे वाजे ) प्रत्येक संग्राम के अवसर पर ( हवामहे ) हम आदर से बुलावें । उसे अपना नेता बनावें ॥ शत० ६ । ३ । २ । ४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेष ऋषिः । इन्द्रः । क्षत्रपतिर्देवता । गायत्री षड्जः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे परस्पर मित्र बनतात व एकमेकांच्या रक्षणासाठी अत्यंत बलवान धार्मिक पुरुषाला राजा मानतात त्यांची सर्व विघ्ने दूर होतात व सुख वाढते.

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    विषय

    प्रजाजनांनी कशाप्रकारच्या मनुष्यास राजा म्हणून मान्य करावे, (राजा कोणकोणत्या गुणांनी संपन्न असावा) याविषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (सुखाय:) परस्पराचे मित्र असलेल्या लोकहो, (आम्ही तुमचे मित्र तुम्हास सांगत आहोत की) ज्याप्रमाणे आम्ही (ऊतये) आमच्या रक्षण, (पोषण, धारण आदीसाठी) (योगेयोगे) ज्या वेळी (आवश्यकप्रसंगी) तसेच (वाजेवाजे) युद्धादींमध्ये (तवस्तरम्) अत्यंत शक्तिशाली आणि (इन्द्रम्) परमऐश्वर्यशाली राजाला (हवामहे) आवाहन करतो वा त्यास सम्मान देतो, त्याप्रमाणे तुम्ही (रक्षणाची अपेक्षा करणारे लोक देखील त्या राजाला आवाहन करीत जा. ॥14॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक एकमेकाचे मित्र होऊन (संकटकाळी) एकमेकाच्या रक्षणाकरिता अत्यंत बलवान मनुष्यास आपला राजा मानतात (व त्याच्या आदेशाप्रमाणे वागतात) ते सर्व विघ्न-भयापासून मुक्त राहून सुखी राहू शकतात (अन्य नव्हे) ॥14॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O friends, in every deed and battle, we call for succour, our King, the mightiest of all.

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    Meaning

    Friends, in project on project, and battle after battle, we call upon Indra, our powerful ruler, to protect us and defend the country.

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    Translation

    On every occasion, in every noble work, we invoke the resplendent God, the best among our friends, for our protection and happiness. (1)

    Notes

    According to the ritualists, this mantra, taken from Rgveda I. 30. 7, is addressed to a he-goat. But there is nothing in the text of the mantra to suggest any such conclusion. Tavastaram, बलवत्तरम्, mightier than the mighty. Yoga, action. Vāja, conflict, battle.

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    बंगाली (1)

    विषय

    প্রজাজনাঃ কীদৃশং রাজানমঙ্গীকুর্য়্যুরিত্যাহ ॥
    প্রজাগণ কোন পুরুষকে রাজা করিবে পরবর্ত্তী মন্ত্রে তাহা বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (সখায়ঃ) পরস্পর মিত্রতা স্থাপনকারী ব্যক্তিগণ ! যেমন আমরা (ঊতয়ে) রক্ষাদি হেতু (য়োগেয়োগে) যাহাতে যাহাতে যুক্ত হই তাহাতে তাহাতে তথা (বাজে বাজে) সংগ্রাম সংগ্রামের মধ্যে (তবস্তরম্) অত্যন্ত বলবান (ইন্দ্রম্) পরমৈশ্বর্য্যযুক্ত পুরুষকে রাজা (হবামহে) মানি সেইরূপ তোমরাও মান ॥ ১৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য পরস্পর মিত্র হইয়া একে অন্যের রক্ষা হেতু অত্যন্ত বলবান ধর্মাত্মা পুরুষকে রাজা মানেন তাহারা সর্ব বিঘ্ন হইতে পৃথক থাকিয়া সুখের উন্নতি করিতে পারেন ॥ ১৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়োগে॑য়োগে ত॒বস্ত॑রং॒ বাজে॑বাজে হবামহে ।
    সখা॑য়॒ऽইন্দ্র॑মূ॒তয়ে॑ ॥ ১৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়োগেয়োগ ইত্যস্য শুনঃশেপ ঋষিঃ । ক্ষত্রপতির্দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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