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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 79
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः देवता - सेनापतिर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    ये जने॑षु म॒लिम्ल॑व स्ते॒नास॒स्तस्क॑रा॒ वने॑। ये कक्षे॑ष्वघा॒यव॒स्ताँस्ते॑ दधामि॒ जम्भ॑योः॥७९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। जने॑षु। म॒लिम्ल॑वः। स्ते॒नासः॑। तस्क॑राः। वने॑। ये। कक्षे॑षु। अ॒घा॒यवः॑। अ॒घ॒यव॒ इत्य॑घ॒ऽयवः॑। तान्। ते॒। द॒धा॒मि॒। जम्भ॑योः ॥७९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये जनेषु मलिम्लव स्तेनासस्तस्करा वने । ये कक्षेष्वघायवस्ताँस्ते दधामि जम्भयोः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। जनेषु। मलिम्लवः। स्तेनासः। तस्कराः। वने। ये। कक्षेषु। अघायवः। अघयव इत्यघऽयवः। तान्। ते। दधामि। जम्भयोः॥७९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 79
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरेते काँस्कान् निवर्त्तयेयुरित्याह॥

    अन्वयः

    हे सभेश! सेनापतिरहं ये जनेषु मलिम्लवः स्तेनासो ये वने तस्करा ये कक्षेष्वघायवः सन्ति, ताँस्ते जम्भयोर्ग्रासमिव दधामि॥७९॥

    पदार्थः

    (ये) (जनेषु) मनुष्येषु (मलिम्लवः) ये मलिनाः सन्तो म्लोचन्ति गच्छन्ति ते (स्तेनासः) गुप्ताश्चोराः (तस्कराः) प्रसिद्धाः (वने) अरण्ये (ये) (कक्षेषु) सामन्तेषु (अघायवः) आत्मनोऽघेन पापेनायुरिच्छवः (तान्) (ते) तव (दधामि) (जम्भयोः) बन्धने मुखमध्ये ग्रासमिव। [अयं मन्त्रः शत॰६.६.३.१० व्याख्यातः]॥७९॥

    भावार्थः

    सेनापत्यादिराजपुरुषाणामिदमेव कर्त्तव्यमस्ति यद् ग्रामारण्यस्थाः प्रसिद्धा अप्रसिद्धाश्चोराः पापाचाराश्च पुरुषाः सन्ति, तेषां राजाधीनत्वं कुर्य्युरिति॥७९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर ये राजपुरुष किस-किस का निवारण करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे सभापते! मैं सेनाध्यक्ष (ये) जो (जनेषु) मनुष्यों में (मलिम्लवः) मलिन स्वभाव से आते-जाते (स्तेनासः) गुप्त चोर जो (वने) वन में (तस्कराः) प्रसिद्ध चोर लुटेरे और (ये) जो (कक्षेषु) कटरी आदि में (अघायवः) पाप करते हुए जीवन की इच्छा करने वाले हैं (तान्) उन को (ते) आप के (जम्भयोः) फैलाये मुख में ग्रास के समान (दधामि) धरता हूं॥७९॥

    भावार्थ

    सेनापति आदि राजपुरुषों का यही मुख्य कर्त्तव्य है कि जो ग्राम और वनों में प्रसिद्ध चोर तथा लुटेरे आदि पापी पुरुष हैं, उन को राजा के आधीन करें॥७९॥

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    विषय

    जम्भाधान

    पदार्थ

    १. हे राजन्! ( तान् ) = उन्हें ( ते ) = तेरे ( जम्भयोः ) = तीव्र दाँतों में ( दधामि ) = स्थापित करता हूँ, अर्थात् आपके द्वारा उनका नाश करवाता हूँ, ( ये ) = जो ( जनेषु ) = लोगों के विषय में ( मलिम्लवः ) = मलिन आचरणवाले हैं, अर्थात् अपने आचरणों से सज्जनों के जीवनों में अशान्ति पैदा करते हैं। २. ( ये ) = जो ( स्तेनासः ) = चोर हैं, जो रात्रि के समय औरों के द्रव्यों को हरने का प्रयत्न करते हैं। ३. और जो ( वने ) = वन में रहनेवाले ( तस्कराः ) = लुटेरे हैं, ( ये ) = जो ( कक्षेषु ) = [ नदीपर्वतगहनेषु ] नदियों और पर्वतों के दुर्गम स्थानों में छिपे हुए ( अघायवः ) = दूसरों का अशुभ चाहनेवाले हैं, अर्थात् जो झाड़-झंकाड़ों में छिपे हुए आने-जानेवाले पथिकों की घात में बैठे होते हैं, उन्हें तेरे तीव्र दाँतों में स्थापित करता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ — राजा का कर्त्तव्य है कि वह मलिनाचरणवालों, चोरों, लुटेरों तथा परिपन्थियों को [ घात लगाकर बैठे लोगों को ] समाप्त कर दे।

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    विषय

    दातों और दाढों के दृष्टान्त से दुष्टों के नाशकारी दमन का वर्णन।

    भावार्थ

    ( ये ) जो ( जनेषु ) प्रजा के लोगों में ( मलिम्लवः ) सलिनाचार वाले और जो ( बने ) वन में ( स्तेनास: ) चोर और ( तस्क- रास ) डाकू छिपे हों ( कक्षेषु ) हमारे गृहों के इधर उधर या नदी पर्वतादि के तटों में या राजा के पार्श्ववत्ती सामन्त राजाओं और श्रमात्य आदि में ( अधायः ) अपने पाप से दूसरों पर पापाचार करना चाहते हैं ( तान् ) उन सबको ( जम्भयो: ) दादों में ग्रास के समान (ते) तेरे श में (दधामि ) धरता हूं ॥ शत० ६ । ६ । ३ । १० ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    सेनापती व राजपुरुषांचे हे कर्तव्य आहे की ग्रामीण भागातील व वनातील चोर, लुटारू इत्यादी पापी पुरुषांना राजाच्या स्वाधीन करावे.

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    विषय

    राजपुरुषांनी आणखी कोणाकोणावर नियंत्रण ठेवावे वा त्यांचे निवारण करावे, याविषयी पुढील मंत्रात प्रतिपादन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे सभापती, (राष्ट्राध्यक्ष), (जनेषु) माणसामधे (समाजात) (ये) जे (मलिम्लव:) मलीनचित व मलिन कर्म करणारे लोक येतात जातात, तसेच जे (स्तेनास:) चोर, आणि (वने) वनात (तस्करा:) लुटारु वा दरोडेखोड लपलेले असतात आणि जे (कक्षेषु) सीमावर्ती प्रदेशात वा जवळपास राहत (अद्यायव:) पाप करीत जीवन जगतात, (तान्ट) त्या दुष्टजनांना मी सेनाध्यक्ष (ते) आपल्या (जम्भयो:) उघडलेल्या मुखामध्ये जसे अन्नाचा घास ठेवतात, त्याप्रमाणे त्या दुष्टांना (ते) आपल्या निर्णयासाठी आपल्यासमोर (दधामि) पकडून आणून ठेवतो (आपण त्यांना योग्य ते शासन करा) ॥79॥

    भावार्थ

    भावार्थ - सेनापती आदी राजपुरुषांचे मुख्य कर्तव्य आहे की गावात वा वनात जे चोर, लुटारू आदी पापी लोक असतात, त्यांना पकडून राजाच्या स्वाधीन करावे. ॥79॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The burglars living among men, the thieves and robbers in the wood, criminals lurking in their lairs, these do I lay between thy jaws.

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    Meaning

    Chief of law and order, those who commit despicable acts in the public, rob and smuggle in the forests, and commit crimes in high and hiding places and live a life of sin and crime, all these I put into the court of your justice.

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    Translation

    Those, who are snatchers in the cities and who are thieves and robbers in forests, and who commit crimes in their lairs, all of them I consign to your jaws. (1)

    Notes

    Aghayavah, (plural), अघं परस्य इच्छंति ये ते, those who wish ill for others. अघेन पापेन आयुरिच्छव: ; those who wish to live on sins; habitual criminals.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরেতে কাঁস্কান্ নিবর্ত্তয়েয়ুরিত্যাহ ॥
    এই সব রাজপুরুষগণ কাহাকে কাহাকে নিবারণ করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে সভাপতে ! আমি সেনাধ্যক্ষ (য়ে) যে (জনেষু) মনুষ্যদিগের মধ্যে (মলিম্নবঃ) মলিন স্বভাব পূর্বক যাতায়াত করে (স্তেনাসঃ) গুপ্ত চোর, যে (বনে) বনে (তস্করাঃ) কুখ্যাত তস্কর, লুন্ঠনকারী এবং (য়ে) যে (কক্ষেষু) পঙ্কিল আবর্ত্তে (অঘায়বঃ) পাপ করিতে থাকিয়া জীবন নির্বাহ করিতে ইচ্ছা করে (তান্) তাহাদিগকে (তে) আপনার (জম্ভয়োঃ) বিস্তৃত মুখে গ্রাসের ন্যায় (দধামি) ধরি ॥ ৭ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- সেনাপতি ইত্যাদি রাজপুরুষদিগের মুখ্য কর্ত্তব্য যে, গ্রাম ও বনে যে কুখ্যাত তস্কর ও লুন্ঠনকারী ইত্যাদি পাপী পুরুষ আছে তাহাদিগকে রাজার অধীন করিবে ॥ ৭ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ে জনে॑ষু ম॒লিম্ল॑ব স্তে॒নাস॒স্তস্ক॑রা॒ বনে॑ ।
    য়ে কক্ষে॑ষ্বঘা॒য়ব॒স্তাঁস্তে॑ দধামি॒ জম্ভ॑য়োঃ ॥ ৭ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ে জনেষ্বিত্যস্য নাভানেদিষ্ঠ ঋষিঃ । সেনাপতির্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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