यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 82
ऋषिः - नाभानेदिष्ठ ऋषिः
देवता - सभापतिर्यजमानो देवता
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
उदे॑षां बा॒हूऽअ॑तिर॒मुद्वर्चो॒ऽअथो॒ बल॑म्। क्षि॒णोमि॒ ब्रह्म॑णा॒मित्रा॒नुन्न॑यामि॒ स्वाँ२अ॒हम्॥८२॥
स्वर सहित पद पाठउत्। ए॒षा॒म्। बा॒हूऽइति॑ बा॒हू। अ॒ति॒र॒म्। उत्। वर्चः॑। अथो॒ऽइत्यथो॑। बल॑म्। क्षि॒णोमि॑। ब्रह्म॑णा। अ॒मित्रा॑न्। उत्। न॒या॒मि॒। स्वान्। अ॒हम् ॥८२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उदेषाम्बाहूऽअतिरमुद्वर्चाऽअथो बलम् । क्षिणोमि ब्रह्मणामित्रानुन्नयामि स्वाँऽअहम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
उत्। एषाम्। बाहूऽइति बाहू। अतिरम्। उत्। वर्चः। अथोऽइत्यथो। बलम्। क्षिणोमि। ब्रह्मणा। अमित्रान्। उत्। नयामि। स्वान्। अहम्॥८२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्यजमानः पुरोहितं प्रति कथं वर्त्तेतेत्याह॥
अन्वयः
अहं यजमानः पुरोहितो वा ब्रह्मणैषां बाहू उदतिरम्। वर्चो बलममित्रांश्चोत्क्षिणोम्यथो स्वान् सुहृदो वर्चो बलं चोन्नयामि प्रापयामि॥८२॥
पदार्थः
(उत्) (एषाम्) पूर्वोक्तानां चोरादीनां दुष्कर्मकारिणाम् (बाहू) बलवीर्य्ये (अतिरम्) सन्तरेयमुल्लङ्घेयम् (उत्) (वर्चः) तेजः (अथो) आनन्तर्ये (बलम्) सामर्थ्यम् (क्षिणोमि) हिनस्मि (ब्रह्मणा) वेदेश्वरविज्ञानप्रदानेन (अमित्रान्) शत्रून् (उत्) (नयामि) ऊर्ध्वं बध्नामि (स्वान्) स्वकीयान् (अहम्)। [अयं मन्त्रः शत॰६.६.३.१५ व्याख्यातः]॥८२॥
भावार्थः
राजादिभिर्यजमानैः पुरोहितादिभिश्च पापिनां सर्वस्वक्षयो धर्मात्मनां सर्वस्ववृद्धिश्च सर्वथा कार्य्या॥८२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर यजमान पुरोहित के साथ कैसे वर्त्ते, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(अहम्) मैं यजमान वा पुरोहित (ब्रह्मणा) वेद और ईश्वर के ज्ञान देने से (एषाम्) इन पूर्वोक्त चोर आदि दुष्टों के (बाहू) बल और पराक्रम को (उदतिरम्) अच्छे प्रकार उल्लङ्घन करूं (वर्चः) तेज तथा (बलम्) सामर्थ्य को और (अमित्रान्) शत्रुओं को (उत्क्षिणोमि) मारता हूं (अथो) इस के पश्चात् (स्वान्) अपने मित्रों के तेज और सामर्थ्य को (उन्नयामि) वृद्धि के साथ प्राप्त करूं॥८२॥
भावार्थ
राजा आदि यजमान तथा पुरोहितों को चाहिये कि पापियों के सब पदार्थों का नाश और धर्मात्माओं के सब पदार्थों की वृद्धि सदैव सब प्रकार से किया करें॥८२॥
विषय
उन्नयन
पदार्थ
१. एक पुरोहित अपने राष्ट्र-पुरुषों में शक्ति का सञ्चार करता हुआ कहता है कि ( एषाम् ) = इन राष्ट्र-पुरुषों की ( बाहू ) = भुजाओं को—पुरुषार्थ-साधक बाहुओं को ( उत् अतिरम् ) = मैं बढ़ाता हूँ। ( एषाम् ) = इनकी ( वर्चः ) = रोगनिवारक शक्ति को ( अथो ) = और ( बलम् ) = शत्रु-विनाशक शक्ति को भी ( उत् अतिरम् ) = बढ़ाता हूँ। २. ( ब्रह्मणा ) = ज्ञान के द्वारा ( अमित्रान् ) = शत्रुओं को ( क्षिणोमि ) = हिंसित करता हूँ तथा ( स्वान् ) = अपनों को ( अहम् ) = मैं ( उन्नयामि ) = उन्नत करता हूँ। ३. राष्ट्र-पुरोहित सदा इस प्रकार प्रेरणा देने का प्रयत्न करता है कि सब राष्ट्र-पुरुषों की भुजाएँ शक्तिशाली बनें, उनका वर्चस् व बल बढे़। इस प्रकार ज्ञान के प्रसार से वह शत्रुओं को क्षीण व अपनों को प्रबल बनाने के लिए सदा यत्नशील हो।
भावार्थ
भावार्थ — पुरोहित का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्र-पुरुषों में शक्ति का सञ्चार करे, उन्हें सब प्रकार से उन्नत करने के लिए यत्नशील हो।
विषय
ब्राह्म और क्षात्र बल से शत्रु का विनाश ।
भावार्थ
( एषाम् ) मैं इन दुष्ट पुरुषों एवं शत्रुओं के ( बाहू ) बल वीयों को ( उत् अतिरम् ) उल्लंघन कर जाऊं । ( अथो) और उनके ( वर्चः ) तेज और ( बलम् ) शरीर-बल या सेना-बलको भी ( उद अतिरम् ) अतिक्रमण कर जाऊं, उनसे अधिक होजाऊं । ( ब्रह्म ) वेदज्ञान के बल से अथवा अपने महान् बड़े भारी क्षात्रवल से मैं ( अमित्रान् ) शत्रुओं का ( क्षिणोमि ) विनाश करूं। और ( अहम् ) मैं ( स्वान ) अपने पक्ष के योद्धा, वीर पुरुषों को ( उत् नयामि ) ऊंचा उठाऊं उनको उन्नत पद प्रदान करूं ॥ शत० ६ | ३ । ३ । १५ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निः सभापतिर्यजमानो वा देवता । विराडनुष्टुप् । गान्धारः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
राजा, यजमान व पुरोहित यांनी सदैव पापी लोकांच्या सर्व वस्तूंचा नाश करावा. धार्मिक लोकांच्या वस्तूंची सदैव वृद्धी करावी.
विषय
यजमानाने पुरोहिताशी कसे वागावे, पुढील मंत्रात याविषयी सांगितले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (अहम्) मी पुरोहित, अथवा यजमान, (ब्रह्मणा) वेदज्ञानाने आणि ईश्वराने मला (दिलेल्या ज्ञानाद्वारे (प्रेरणेमुळे) (एषाम्) पूर्वी सांगितलेल्या चोर, लुटारु आदी दुष्टांच्या शक्तीला आणि पराक्रमाला (उदतिरम्) क्षीण करून त्यावर विजय मिळवावे, तसेच आपल्या (वर्च) तेज आणि (बलम्) बळाने मी (अमित्रान्) शत्रूंचा (उत्क्षिणोमि) नायनाट करतो (अथो) यानंतर (स्वान्) मी आपल्या मित्रांचे तेज आणि पराक्रमाची (उन्नयामि) वृद्धी करतो ॥82॥
भावार्थ
भावार्थ - राजा आदी यजमानांना तसेच पुरोहितांना पाहिजे की त्यांनी सदैव पापीजनांच्या सर्व पदार्थांचा नाश करावा आणि धर्मात्मा लोकांच्या सर्व पदार्थांची वृद्धी सर्वप्रकारे करावी ॥82॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May I, with the strength of vedic knowledge and aid of God excel the wicked persons, in strength, and might. I ruin the foes and lift my friends to a high position.
Meaning
I am the high-priest of the yajamana. With my knowledge and science of the Veda, I overcome the strength of arms, power and valour, honour and lustre of the others, i. e. , thieves, robbers and cut-throats, etc. , reduce their strength to nullity, and raise our honour and lustre high.
Translation
I have got raised up the arms of these warriors; I have got raised up their valour, as well as their strength. With my intellect I destroy the enemies and raise my own (people) to a high status. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনর্য়জমানঃ পুরোহিতং প্রতি কথং বর্ত্তেতেত্যাহ ॥
পুনঃ যজমান পুরোহিতের সঙ্গে কীভাবে আচরণ করিবেন এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- (অহম্) আমি যজমান বা পুরোহিত (ব্রহ্মণা) বেদ ও ঈশ্বরের জ্ঞান প্রদানের সাহায্যে (এষাম্) এই পূর্বোক্ত তস্করাদি দুষ্টদিগের (বাহু) বল ও পরাক্রমকে (উদরিতম্) সম্যক্ প্রকার উল্লঙ্ঘন করি । (বর্চঃ) তেজ তথা (বলম্) সামর্থ্যকে এবং (অমিত্রান্) শত্রুদিগকে (উৎক্ষিণোমি) মারি (অথো) তৎপশ্চাৎ (স্বান্) স্বীয় মিত্রদিগের তেজ ও সামর্থ্যকে (উন্নয়ামি) বৃদ্ধি সহ প্রাপ্ত করি ॥ ৮২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- রাজাদি যজমান তথা পুরোহিতদিগের উচিত যে, পাপীদের সকল পদার্থ নাশ এবং ধর্মাত্মাদিগের সকল পদার্থের বৃদ্ধি সর্বদা সব প্রকারে করিতে থাকিবে ॥ ৮২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
উদে॑ষাং বা॒হূऽঅ॑তির॒মুদ্বর্চো॒ऽঅথো॒ বল॑ম্ ।
ক্ষি॒ণোমি॒ ব্রহ্ম॑ণা॒মিত্রা॒নুন্ন॑য়ামি॒ স্বাঁ২অ॒হম্ ॥ ৮২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
উদেষামিত্যস্য নাভানেদিষ্ঠ ঋষিঃ । সভাপতির্য়জমানো দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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