यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 59
ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः
देवता - अदितिर्देवता
छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
अदि॑त्यै॒ रास्ना॒स्यदि॑तिष्टे॒ बिलं॑ गृभ्णातु। कृ॒त्वाय॒ सा म॒हीमु॒खां मृ॒न्मयीं॒ योनि॑म॒ग्नये॑। पु॒त्रेभ्यः॒ प्राय॑च्छ॒ददि॑तिः श्र॒पया॒निति॑॥५९॥
स्वर सहित पद पाठअदि॑त्यै। रास्ना॑। अ॒सि॒। अदि॑तिः। ते॒। बिल॑म्। गृ॒भ्णा॒तु॒। कृ॒त्वाय॑। सा। म॒हीम्। उ॒खाम्। मृ॒न्मयी॒मिति॑ मृ॒त्ऽमयी॑म्। योनि॑म्। अ॒ग्नये॑। पु॒त्रेभ्यः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। अदि॑तिः। श्र॒पया॑न्। इति॑ ॥५९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदित्यै राम्नासिस्यदितिष्टे बिलङ्गृभ्णातु । कृत्वाय सा महीमुखाम्मृन्मयीँयोनिमग्नये । पुत्रेभ्यः प्रायच्छददितिः श्रपयानिति ॥
स्वर रहित पद पाठ
अदित्यै। रास्ना। असि। अदितिः। ते। बिलम्। गृभ्णातु। कृत्वाय। सा। महीम्। उखाम्। मृन्मयीमिति मृत्ऽमयीम्। योनिम्। अग्नये। पुत्रेभ्यः। प्र। अयच्छत्। अदितिः। श्रपयान्। इति॥५९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे अध्यापिके विदुषि! यतस्त्वमदित्यै रास्नासि, तस्मात् ते तव सकाशाद् बलं ब्रह्मचर्य्यधारणं कृत्वायादितिर्विद्या गृभ्णातु साऽदितिर्भवती मृन्मयीं योनिं महीमुखामग्नये पुत्रेभ्यश्च प्रायच्छत्। विद्यासुशिक्षाभ्यां युक्ता भूत्वोखामिति श्रपयानन्नादिपाकं कुर्वन्तु॥५९॥
पदार्थः
(अदित्यै) दिवे विद्याप्रकाशाय (रास्ना) दात्री (असि) (अदितिः) पुत्रः पुत्री च (ते) तव सकाशात् (बिलम्) भरणं धारणम्। बिलं भरं भवति बिभर्तेः॥ (निरु॰२।१७) (गृभ्णातु) गृह्णातु (कृत्वाय) (सा) (महीम्) महतीम् (उखाम्) पाकस्थालीम् (मृन्मयीम्) मृद्विकाराम् (योनिम्) मिश्रिताम् (अग्नये) अग्निसम्बन्धे स्थापनाय (पुत्रेभ्यः) सन्तानेभ्यः (प्र) (अयच्छत्) दद्यात् (अदितिः) माता (श्रपयान्) श्रपयन्तु परिपाचयन्तु (इति) अनेन प्रकारेण। [अयं मन्त्रः शत॰६.५.२.१३,२०,२१ व्याख्यातः]॥५९॥
भावार्थः
कुमाराः पुरुषशालां कुमार्य्यश्च स्त्रीशालां गत्वा ब्रह्मचर्य्यं विधाय सुशीलतया विद्याः पाकविधिं च गृह्णीयुः। आहारविहारानपि सुनियमेन सेवयेयुः। न कदाचिद्विषयकथां शृणुयुः। मद्यमांसालस्यातिनिद्रां विहायाध्यापकसेवानुकूलताभ्यां वर्त्तित्वा सुव्रतानि धरेयुः॥५९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे पढ़ाने हारी विदुषी स्त्री! जिस कारण तू (अदित्यै) विद्याप्रकाश के लिये (रास्ना) दानशील (असि) है इसलिये (ते) तुझ से (बिलम्) ब्रह्मचर्य्य को धारण (कृत्वाय) करके (अदितिः) पुत्र और कन्या विद्या को (गृभ्णातु) ग्रहण करें सो (सा) तू (अदितिः) माता (मृन्मयीम्) मट्टी की (योनिम्) मिली और पृथक् (महीम्) बड़ी (उखाम्) पकाने की बटलोई को (अग्नये) अग्नि के निकट (पुत्रेभ्यः) पुत्रों को (प्रायच्छत्) देवे। विद्या और अच्छी शिक्षा से युक्त होकर बटलोई में (इति) इस प्रकार (श्रपयान्) अन्नादि पदार्थों को पकाओ॥५९॥
भावार्थ
लड़के पुरुषों की और लड़कियां स्त्रियों की पाठशाला में जा ब्रह्मचर्य्य की विधिपूर्वक सुशीलता से विद्या और भोजन बनाने की क्रिया सीखें और आहार-विहार भी अच्छे नियम से सेवें। कभी विषय की कथा न सुनें। मद्य, मांस, आलस्य और अत्यन्त निद्रा को त्याग के पढ़ाने वाले की सेवा और उस के अनुकूल वर्त्त के अच्छे नियमों को धारण करें॥५९॥
विषय
अदिति की रास्ना
पदार्थ
१. हे पत्नि! तू ( अदित्यै ) = अदिति के लिए ( रास्ना ) = मेखला है, अर्थात् अदिति बनने के लिए कटिबद्ध है। तुझे ‘अदीना देवमाता’ बनना है, सब प्रकार की दीनताओं से ऊपर दिव्य गुणों का निर्माण करनेवाली बनना है। २. अब पिता सन्तान से कहता है कि ( अदितिः ) = यह अदीना देवमाता ( ते ) = तेरे ( बिलम् ) = [ भरण—द० ] भरण-पोषण को ( गृभ्णातु ) = स्वीकार करे, अर्थात् तेरा ऐसी उत्तमता से पालन करे कि तू सब रोगों से मुक्त, पूर्ण स्वस्थ हो और तुझमें अदीनता व दिव्य गुणों का विकास हो। ३. ( सा अदितिः ) = वह अदिति माता ( महीम् ) = अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ( उखाम् ) = पाकस्थाली ( कृत्वाय ) = करके तथा ( मृन्मयीम् ) = मिट्टी के बने हुए ( अग्नये योनिम् ) = अग्नि के लिए स्थान को, अर्थात् चूल्हे को ( कृत्वाय ) = करके ( पुत्रेभ्यः ) = पुत्रों के लिए उत्तम भोजन को ( प्रायच्छत् ) = देती है, ( श्रपयान् इति ) = जिससे उनका ठीक परिपाक हो सके। ४. सन्तानों के जीवन का निर्माण बहुत कुछ भोजन पर निर्भर है। उस भोजन के परिपाक को गृहपत्नी अत्यन्त महत्त्व देती है। बच्चों की माता इस बात के लिए कटिबद्ध हो कि मैंने ‘अदिति’ बनना है। [ क ] सन्तानों के स्वास्थ्य को कभी खण्डित नहीं होने देना है, [ ख ] उन्हें अदीन बनाना है, [ ग ] उनमें दिव्य गुणों का पोषण करना है।
भावार्थ
भावार्थ — माता का मुख्य कर्त्तव्य बच्चों को स्वस्थ बनाना तथा उनके जीवन का उत्तम परिपाक करना है। इसी दृष्टिकोण से वह भोजन को महत्त्व देती है, क्योंकि भोजन ने ही उनके शरीर व मनों को स्वस्थ करना है।
विषय
विदुषी माता का वर्णन।
भावार्थ
हे विदुषि स्त्रि ! तू ( आदित्यै ) अदिति अर्थात् अखण्ड विद्या का (रास्ना) दान करनेवाली ( असि ) हैं । हे विद्ये ! ( ते बिलम् ) तेरे विज्ञानप्रकाश, या गूढ़ रहस्य को ( अदितिः ) अखण्ड व्रत का पालन करनेवाला कुमार और कुमारी ( गृभ्णातु ) ग्रहण करे । ( अदितिः ) पुत्रों की माता जिस प्रकार (मृन्मयीम् उखां कृत्वाय ) मट्टी की हांडी को बना कर ( पुत्रेभ्यः प्रायच्छत् ) पुत्रों को दे देती हैं और आज्ञा दे दिया करती है कि ( श्रपयान् इति ) उसको आग पर पकाओ । उसी प्रकार (सा) वह विदुषी माता महीम् ) पूजनीय ( अन्नये ) अग्निस्वरूप ज्ञानवान आचार्य के अधीन (योनिम् ) अपने पुत्र पुत्रियों का आश्रय निवासस्थान में प्राप्त होनेवाली ( उखाम् ) उत्तम फलदात्री विद्या को ( कृत्वाय ) प्राप्त करके ( अदितिः ) स्वयं अखण्ड व्रत होकर विद्या का प्रदानकर्ता आचार्य (पुत्रेभ्यः प्रायच्छत् ) पुत्रों को विधा प्रदान करे । और कहे कि इस ब्रह्मविद्या रूप परमानन्दरस की दात्री को ( श्रपयान् इति तप द्वारा परिपक्व करो ॥ शत० ६ । ५ । २ । १२ ।।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः साध्या वा ऋषयः।अदिती रास्ना देवता । आर्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
मुलांनी मुलांच्या शाळेत व मुलींनी मुलींच्या शाळेत जावे. ब्रह्मचर्य पाळून सुशील बनावे. विद्या प्राप्त करून भोजन तयार करण्याची क्रिया शिकावी. चांगल्या प्रकारे नियमपूर्वक आहार-विहार करावा. विषयाच्या गोष्टी कधी ऐकू नयेत. मद्य, मांसाचे सेवन करू नये, आळस व अतिनिद्रा सोडावी. शिकविणाऱ्यांची सेवा करून त्यांच्या अनुकूल वागावे व चांगल्या नियमांचे पालन करावे.
विषय
पुन्हा पुढील मंत्रात तोच विषय कथित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (मुला-मुलीचे माता पिता अध्यापिकेस म्हणत आहेत) हे अध्यापन करणार्या विदुषी स्त्री, तुम्ही (अदिव्यै) विद्यादानासाठी रास्ना) दानशील वा सक्षम (असि) आहात, म्हणून तुम्हाला प्रार्थना करीत आहोत की (ते) तुमच्याकडून (बिलम्) ब्रह्मचर्य धारणाचेव्रत (कृत्वा) घेऊन (अदिति:) या पुनि आणि या कन्येने विद्या (गृभ्णात) ग्रहण करावी. (सा) ती म्हणजे तू (आदिति:) त्या मुलामुलीच्या मातेस (मातेप्रमाणे असलेल्या अध्यापिकेने) (मृन्मयीम्) मातीने (योनिम्) बनलेल्या (पृथक्) या मोठ्या (उखाम्) शिजविण्यासाठी वा पाककलेसाठी उपयोगात येणार्या पातेल्याला (अग्नये) अग्नीजवळ नेऊन (पुत्रेभ्य:) मुलाला/मुलीला द्यावे. आणि यास/हीस (पाककलेचे उत्कृष्ट ज्ञान देऊन) या पातेल्यात (इति) अशाप्रकारे (यापद्धतीने) (श्रपयान्) अग्नीदी पदार्थ शिजविणे शिकवावे (वा दोघांनी शिजवावे). ॥59॥
भावार्थ
भावार्थ - मुलांनी मुलांसाठी असलेल्या आणि मुलींनीमुलींसाठी असलेल्या पाठशाळेत जाऊन त्यांनी तिथे ब्रह्मचर्यपूर्वक सुशिल स्वभावाने आणि योग्य विधीप्रमाणे विद्या आणि भोजन तयार करण्याची क्रिया शिकावी. आणि आहार-विहाराचे उचित नियम ही शिकावेत. विषयवासनेच्या कथा, वार्ता कधीही ऐकू नये. मद्यपान, मांसाहार वर्ज्य करून आलस्य व अतिनिद्रेचा त्याग करून अद्यापक/अध्यापिकेची सेवा करावी तसेच त्यांच्या आज्ञेप्रमाणे वागून चांगल्या नियमांचा स्वीकार करावा. ॥59॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned teachress, thou art the bestower of education. Let the son and daughter, observing celibacy, receive education from thee. Thou, like a mother, handest over the big earthen cooking-pan to thy pupils, to be placed near the fire, so that being trained in the art of cooking, they cook nicely their meals.
Meaning
Mother teacher, you are the giver of knowledge for the girl-child, your disciple. Let the disciple receive your body of knowledge with observance of the discipline of ‘brahmacharya’ (celibacy and austerity). Let the mother give the big, sacred, earthen sacrificial tray to the disciples to mix and cook the materials and prepare these for the fire of yajna.
Translation
You аге a girdle for the Eternity. (1) May the Eternity hold you at hollow. (2) She having made the great cauldron a place for fire, hands the same over to her sons, so that they may bake it. (3)
Notes
Rasna, रशना, a girdle.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে অধ্যাপনকারিণী বিদুষী স্ত্রী ! যে কারণে তুমি (অদিত্যৈ) বিদ্যাপ্রকাশ হেতু (রাস্না) দানশীল (অসি) হও এইজন্য (তে) তোমার দ্বারা (বিলম্) ব্রহ্মচর্য্য ধারণ (কৃত্বায়) করিয়া (অদিতিঃ) পুত্র ও কন্যা বিদ্যাকে (গৃভ্নাতু) গ্রহণ করুক সুতরাং (সা) তুমি (অদিতিঃ) মাতা (মৃন্ময়ীম্) মৃত্তিকা (য়োনিম্) মিশ্রিত ও পৃথক (মহীম্) বৃহৎ (উত্থাম্) রন্ধন করিবার পাত্রকে (অগ্নয়ে) অগ্নির নিকট (পুত্রেভ্যঃ) পুত্রদিগকে (প্রায়চ্ছৎ) প্রদান করিবে এবং সুশিক্ষাযুক্ত হইয়া পাত্রে (ইতি) এবম্বিধ (শ্রপয়ান্) অন্নাদি পদার্থ রন্ধন কর ॥ ৫ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- বালক পুরুষদিগের এবং বালিকা স্ত্রীদিগের পাঠশালায় যাইয়া ব্রহ্মচর্য্য বিধিবৎ পালন করিয়া বিদ্যা ও রন্ধন করিবার প্রক্রিয়া শিখিবে এবং আহার-বিহারও নিয়মপূর্বক করিবে । কখনও বিষয়-কথা শ্রবণ করিবে না । মদ্য, মাংস, আলস্য ও অত্যন্ত নিদ্রা পরিত্যাগ করিয়া অধ্যাপনকারীর সেবা এবং তদনুরূপ আচরণ করিয়া সুষ্ঠু নিয়মগুলি ধারণ করিবে ॥ ৫ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অদি॑ত্যৈ॒ রাস্না॒স্যদি॑তিষ্টে॒ বিলং॑ গৃভ্ণাতু ।
কৃ॒ত্বায়॒ সা ম॒হীমু॒খাং মৃ॒ন্ময়ীং॒ য়োনি॑ম॒গ্নয়ে॑ ।
পু॒ত্রেভ্যঃ॒ প্রায়॑চ্ছ॒দদি॑তিঃ শ্র॒পয়া॒নিতি॑ ॥ ৫ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অদিত্যা ইত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । অদিতির্দেবতা । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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