अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 5
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
1
हि॑ङ्कृण्व॒ती व॑सु॒पत्नी॒ वसू॑नां व॒त्समि॒च्छन्ती॒ मन॑सा॒भ्यागा॑त्। दु॒हाम॒श्विभ्यां॒ पयो॑ अ॒घ्न्येयं सा व॑र्धतां मह॒ते सौभ॑गाय ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒ङ्ऽकृ॒ण्व॒ती । व॒सु॒ऽपत्नी॑ । वसू॑नाम् । व॒त्सम् । इ॒च्छन्ती॑ । मन॑सा । अ॒भि॒ऽआगा॑त् । दु॒हाम् । अ॒श्विऽभ्या॑म् । पय॑: । अ॒घ्न्या । इ॒यम् । सा । व॒र्ध॒ता॒म् । म॒ह॒ते । सौभ॑गाय ॥१५.५॥
स्वर रहित मन्त्र
हिङ्कृण्वती वसुपत्नी वसूनां वत्समिच्छन्ती मनसाभ्यागात्। दुहामश्विभ्यां पयो अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय ॥
स्वर रहित पद पाठहिङ्ऽकृण्वती । वसुऽपत्नी । वसूनाम् । वत्सम् । इच्छन्ती । मनसा । अभिऽआगात् । दुहाम् । अश्विऽभ्याम् । पय: । अघ्न्या । इयम् । सा । वर्धताम् । महते । सौभगाय ॥१५.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
जीवात्मा और परमात्मा के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(हिङ्कृण्वती) गति वा वृद्धि करनेवाली, (वसुपत्नी) धन की रक्षा करनेवाली, (वसूनाम्) श्रेष्ठों के बीच (वत्सम्) उपदेशक पुरुष को (इच्छन्ती) चाहनेवाली [वेदवाणी] (मनसा) विज्ञान के साथ (अभ्यागात्) सब ओर से प्राप्त हुई है। (इयम्) यह (अघ्न्या) हिंसा न करनेवाली विद्या (अश्विभ्याम्) दोनों चतुर स्त्री पुरुषों के लिये (पयः) विज्ञान को (दुहाम्) परिपूर्ण करे, (सा) वही [विद्या] (महते) अत्यन्त (सौभगाय) सुन्दर ऐश्वर्य के लिये (वर्धताम्) बढ़े ॥५॥
भावार्थ
यह जो वेदवाणी संसार का उपकार करती है, उसको सब स्त्री-पुरुष प्राप्त होकर यथावत् वृद्धि करें ॥५॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ७।७३।८। (अभ्यागात्) के स्थान पर वहाँ [न्यागन्] पद है। पदपाठ में (अभि-आगात्) के स्थान पर [अभि। आ। अगात्] हैं−ऋग्वेद १।१६४।२७। तथा निरु० ११।४५ ॥
टिप्पणी
५−(अभ्यागात्) आभिमुख्येन आगतवती, प्राप्तवती। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ७।७३।८ ॥
विषय
सुदुघा धेनु
पदार्थ
व्याख्या देखें-अथर्व०७।७३।७-८ वहाँ 'अभ्यागात्' के स्थान पर 'न्यागन्' पाठ है। अर्थ समान ही है।
भाषार्थ
(अघ्न्या) न हनन के योग्य गौ जैसे (हिड्कृण्वती) हिङ्कारती हुई, और (मनसा) मन से (वत्सम्) बछड़े को (इच्छन्ती) चाहती हुई, (अभ्यागात्) बछड़े के अभिमुख आती है, वैसे (वसूनां वसुपत्नी) सम्पत्तियों की स्वामिनी वेदमाता, निज स्वाध्यायी पुत्र की, मानो स्वेच्छया चाहती हुई, प्राप्त हो जाती है। (इयम्) यह (अघ्न्या) नित्या वेदमाता, (अश्विभ्याम्) स्वाध्यायी स्त्री-पुरुषों के लिये, (पयः) ज्ञान दुग्ध (दुग्धाम्) देती है, (सा) वह (महते सौभमाय) हमारे महासौभाग्य के लिये (वर्धताम्) बढ़े, सर्वत्र उस का विस्तार हो।
टिप्पणी
[हिङ्कृण्वती = इस पद द्वारा ऋचाओं पर सामगान को सूचित किया है "ऋच्यधिरूढं साम गीयते"। सामगान के ५ अवयव होते हैं, (१) हिं, (२) प्रस्ताव, (३) उद्गीथ (४) प्रतिहार, (५) निधन। हिङ्कृण्वती द्वारा पंचविध सामगान का निर्देश किया है जो कि गेयरूपी वैदिक ऋचाओं पर गाया जाता है। वसुपत्नी= वेद में नाना विध सम्पत्तियों का वर्णन है, तथा वसुरूप सदुपदेशों का वर्णन है अतः वह वसुपत्नी है। वेद का नित्य स्वाध्याय होने पर वेद का रहस्य स्वयमेव प्रकट होने लगता है "उतो त्वस्मै तन्वं विसस्रे" (ऋ० १०।७१।४)। अघ्न्या= न हनन योग्या चतुष्पाद् गौ (निघं० २।११); तथा पदनाम (निघं० ५।५)। गौ के सम्बन्ध में हिङकृण्वती= हम्भारती हुई।
इंग्लिश (4)
Subject
Spiritual Realisation
Meaning
Lowing and loving, this holy Cow, this Vedic Voice, this sustainer of breath and supports of life, caressing her children with a heart of tenderness comes to bless us all round. May she, never never to be killed or hurt, distil the milk of life’s energy from the sun and wind and ever grow for the great good fortune and prosperity of life on earth.
Translation
She comes lowing, abounding in riches (products); desiring her calf in her mind; may this cow grant her milk to the cosmic twins; may she thrive for our grea, advantage. (calf = world or mankind; cow = cloud, milk = rain; and again calf = the seeker ‘or self; cow = divine speech; milk = knowledge). (Also Rg. I.164.27)
Translation
The Cow who is the preserver of all treasures yearnning in spirit for her calf and lowing and lieking it comes hither. Let this cow who is not ever to be killed yield milk for man and woman and (et her prosper for our great benefit.
Translation
Just as a cow longing for the calf, lowing approaches her child, so does mental power, through its strength approach its children the breaths. Just as this indestructible cow yields milk for the males and females of the family, so does the thinking faculty give life-infusing knowledge to the soul and mind. May she prosper to our high advantage.
Footnote
See Atharva, 7-73-8. ‘She’ refers to the thinking faculty.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(अभ्यागात्) आभिमुख्येन आगतवती, प्राप्तवती। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ७।७३।८ ॥
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