अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 7/ मन्त्र 42
सूक्त - अथर्वा, क्षुद्रः
देवता - स्कन्धः, आत्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
त॒न्त्रमेके॑ युव॒ती विरू॑पे अभ्या॒क्रामं॑ वयतः॒ षण्म॑यूखम्। प्रान्या तन्तूं॑स्ति॒रते॑ ध॒त्ते अ॒न्या नाप॑ वृञ्जाते॒ न ग॑मातो॒ अन्त॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठत॒न्त्रम् । एके॒ इति॑ । यु॒व॒ती इति॑ । विरू॑पे इति॒ विऽरू॑पे । अ॒भि॒ऽआ॒क्राम॑म् । व॒य॒त॒: । षट्ऽम॑यूखम् । प्र । अ॒न्या । तन्तू॑न् । ति॒रते॑ । ध॒त्ते । अ॒न्या । न । अप॑ । वृ॒ञ्जा॒ते॒ इति॑ । न । ग॒मा॒त॒: । अन्त॑म् ॥७.४२॥
स्वर रहित मन्त्र
तन्त्रमेके युवती विरूपे अभ्याक्रामं वयतः षण्मयूखम्। प्रान्या तन्तूंस्तिरते धत्ते अन्या नाप वृञ्जाते न गमातो अन्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठतन्त्रम् । एके इति । युवती इति । विरूपे इति विऽरूपे । अभिऽआक्रामम् । वयत: । षट्ऽमयूखम् । प्र । अन्या । तन्तून् । तिरते । धत्ते । अन्या । न । अप । वृञ्जाते इति । न । गमात: । अन्तम् ॥७.४२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 42
विषय - ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )
मन्त्रार्थ -
(एके विरूपे युवती) एक लक्ष्यवाली भिन्न-भिन्न रूप वाली दो मिश्रण स्वभाववाली रजोवीर्यशक्तियां (परामयूखं तन्त्रम्-अभ्याक्रमं वयतः) रस, रक्त, मांस ये तीन रेतः शक्तियों से तथा स्त्राव - नाडी तन्तु जाल, मज्जा-चर्बी, अस्थी-हड्डी ये तीन वीर्यशक्तियों से । 'इस प्रकार ये छः धातुएं कील के समान जिसमें हैं' ऐसे शरीर तानें वाने को परस्पर सहयोग के साथ बुनती हैं- विस्तृत करती हैं (अन्य तन्तून् प्रतिरते-अन्या धत्ते) उन दोनों में से एक नलिका समान वीर्यशक्ति सन्तानतन्तुओं को बिखेरती है - डालती है उससे भिन्न दूसरी रजः शक्ति सन्धान करती है उनको मिलाती है (न-अपवृञ्जाते न अन्तं गमातः ) एवं ये दोनों शक्तियां सन्तानकार्य से अलग न होती हैं न कार्य का अन्त प्राप्त करती हैं, इस प्रकार संसार प्रवर्तित रहता है ॥४२॥
विशेष - इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥
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