अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
सूक्त - आत्मा
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
सू॒र्याया॑वह॒तुः प्रागा॑त्सवि॒ता यम॒वासृ॑जत्। म॒घासु॑ ह॒न्यन्ते॒ गावः॒ फल्गु॑नीषु॒व्युह्यते ॥
स्वर सहित पद पाठसू॒र्याया॑: । व॒ह॒तु । प्र । अ॒गा॒त् । स॒वि॒ता । यम् । अ॒व॒ऽअसृ॑जत् । म॒घासु॑ । ह॒न्यन्ते॑ । गाव॑: । फल्गु॑नीषु । वि । उ॒ह्य॒ते॒ ॥१.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्यायावहतुः प्रागात्सविता यमवासृजत्। मघासु हन्यन्ते गावः फल्गुनीषुव्युह्यते ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्याया: । वहतु । प्र । अगात् । सविता । यम् । अवऽअसृजत् । मघासु । हन्यन्ते । गाव: । फल्गुनीषु । वि । उह्यते ॥१.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 13
विषय - गोदान
पदार्थ -
१. (सूर्यायाः वहतु प्रागात्) = सूर्या का दहेज [गाय के रूप में दिया जानेवाला सामान] आज गया है। (सविता) = सूर्या के जन्मदाता पिता ने (यम् अवासजत्) = जिसको दिया है या भेजा है। (मघास) = मघा नक्षत्र में (गाव: हन्यन्ते) = दहेज के रूप में दी जानेवाली गौएँ भेजी जाती हैं [हन् गतौ] और (फल्गुनीषु) = फल्गुनी नक्षत्र में (पर्युह्यते) = कन्या का विवाह कर दिया जाता है। २. मघा नक्षत्रवाली पूर्णिमा माघी कहलाती है और फल्गुनी नक्षत्रवाली पूर्णिमा फाल्गुनी। एवं विवाह से एक मास पूर्व गोदान-विधि सम्पन्न हो जाती है। ये गौ इसलिए दी जाती है कि गुरुकुल में शिक्षित होनेवाला यह तपःकृश युवक गोदुग्ध से आप्लावित शरीरवाला हो जाए।
भावार्थ -
गोदान-विधि विवाह से एक मास पूर्व सम्पन्न हो जाती है।
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