अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 26
सूक्त - आत्मा
देवता - सोम
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
नी॑ललोहि॒तंभ॑वति कृ॒त्यास॒क्तिर्व्यज्यते। एध॑न्ते अस्या ज्ञा॒तयः॒ पति॑र्ब॒न्धेषु॑बध्यते ॥
स्वर सहित पद पाठनी॒ल॒ऽलो॒हि॒तम् । भ॒व॒ति॒ । कृ॒त्या । आ॒स॒क्ति: । वि । अ॒ज्य॒ते॒ । एध॑न्ते । अ॒स्या॒: । ज्ञा॒तय॑: । पति॑: । ब॒न्धेषु॑ । ब॒ध्य॒ते॒ ॥१.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
नीललोहितंभवति कृत्यासक्तिर्व्यज्यते। एधन्ते अस्या ज्ञातयः पतिर्बन्धेषुबध्यते ॥
स्वर रहित पद पाठनीलऽलोहितम् । भवति । कृत्या । आसक्ति: । वि । अज्यते । एधन्ते । अस्या: । ज्ञातय: । पति: । बन्धेषु । बध्यते ॥१.२६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 26
विषय - अनुरागयुक्त क्रियाशील जीवन
पदार्थ -
१. (नीललोहितम्) = [पूर्व नीलं, पश्चात् लोहितम्] ब्रह्मचर्याश्रम में जो हदय सांसारिक रंगों में न रंगा जाकर बिल्कुल नीरंग [कृष्ण]-सा था अब गृहस्थ में आने पर वह लोहितम्-कुछ कुछ प्रेम की लालिमावाला (भवति) = होता है। 'अनुराग' [प्रेम] युक्त होता है। पति-पत्नी के परस्पर अनुरागयुक्त जीवन में (कृत्यासक्ति:) = कर्तव्य-कर्मों के प्रति रुचि (व्यज्यते) = विशेषरूप से दीस हो जाती है। पति-पत्नी मिलकर घर को स्वर्ग बनाने का निश्चय करते हैं और आलस्यशुन्य होकर क्रियाओं में तत्पर होते हैं। २. हृदय में अनुराग तथा क्रियाशीलता होने पर (अस्या:) = इस नव विवाहिता पत्नी के (ज्ञातयः एधन्ते) = सब बन्धु बढ़ते हैं, उन्हें प्रसन्नता का अनुभव होता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पति (बन्धेषु बध्यते) = उस युवति का पति उसके प्रति प्रेम-बन्धनों में बद्ध हो जाता है। पत्नी का विशुद्ध प्रेम तथा क्रियाशीलता पति को उसकी ओर आकृष्ट करते हैं।
भावार्थ -
पत्नी अनुरागयुक्त हृदयवाली व क्रियाशील जीवनवाली होती हुई बन्धु-बान्धवों की प्रसन्नता का और पति के आकर्षण का कारण बनती है।
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