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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 30
    सूक्त - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    स इत्तत्स्यो॒नंह॑रति ब्र॒ह्मा वासः॑ सुम॒ङ्गल॑म्। प्राय॑श्चित्तिं॒ यो अ॒ध्येति॒ येन॑ जा॒या नरिष्य॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । इत् । तत् । स्यो॒नम् । ह॒र॒ति॒ । ब्र॒ह्मा । वास॑: । सु॒ऽम॒ङ्गल॑म् । प्राय॑श्चित्त‍िम् । य: । अ॒धि॒ऽएति॑ । येन॑ । जा॒या । न । रिष्य॑ति ॥१.३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स इत्तत्स्योनंहरति ब्रह्मा वासः सुमङ्गलम्। प्रायश्चित्तिं यो अध्येति येन जाया नरिष्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । इत् । तत् । स्योनम् । हरति । ब्रह्मा । वास: । सुऽमङ्गलम् । प्रायश्चित्त‍िम् । य: । अधिऽएति । येन । जाया । न । रिष्यति ॥१.३०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 30

    पदार्थ -

    १. (स: ब्रह्मा इत्) = वह अपने हृदय को विशाल बनानेवाला ज्ञानी पुरुष ही (तत्) = उस (स्योनम्) = सुखकर (सुमंगलम्) = उत्तम मंगल के साधनभूत (वास:) = वस्त्र को (हरति) = घर में प्राप्त कराता है, (येन) = जिस वस्त्र से जाया (न रिष्यति) = पत्नी हिंसित नहीं होती। पत्नी के लिए वस्त्र सुखकर भी हों, अच्छे भी लगें और स्वास्थ्य-रक्षा के लिए भी आवश्यक हों। २. वह ब्रह्मा इन वस्त्रों को प्राप्त करता है (यः) = जो (प्रायश्चित्तिं अध्येति) = 'प्रायोनाम तपः प्रोकं चितं निश्चय उच्यते। तपोनिश्चयसंयोगात् प्रायश्चित्तमितीर्यते ॥' तपस्यापूर्वक जीवन बिताने का निश्चय करता है, इस बात को भूलता नहीं [अध्येति-remembers] कि आराम का जीवन विनाश की ओर ले-जाता चतुर्थदर्श काण्डम् है। Ease, disease का कारण है। यह तपस्वी जीवन घरवालों के लिए अति उत्तम प्रभाव पैदा करता है।

    भावार्थ -

    विशाल हृदयवाला पति इस बात का ध्यान करता है कि पत्नी को आवश्यक वस्तुओं की कमी न हो। वह अपना जीवन तपस्यापूर्वक बिताता है, यह तपस्या ही उसे ब्रह्मा बनाती है।

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