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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 23
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - नृर्णा विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒नृ॒क्ष॒रा ऋ॒जव॑: सन्तु॒ पन्था॒ येभि॒: सखा॑यो॒ यन्ति॑ नो वरे॒यम् । सम॑र्य॒मा सं भगो॑ नो निनीया॒त्सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॑मस्तु देवाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒नृ॒क्ष॒राः । ऋ॒जवः॑ । स॒न्तु॒ । पन्थाः॑ । येभिः॑ । सखा॑यः । यन्ति॑ । नः॒ । व॒रे॒ऽयम् । सम् । अ॒र्य॒मा । सम् । भगः॑ । नः॒ । नि॒नी॒या॒त् । सम् । जाः॒ऽप॒त्यम् । सु॒ऽयम॑म् । अ॒स्तु॒ । दे॒वाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनृक्षरा ऋजव: सन्तु पन्था येभि: सखायो यन्ति नो वरेयम् । समर्यमा सं भगो नो निनीयात्सं जास्पत्यं सुयममस्तु देवाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनृक्षराः । ऋजवः । सन्तु । पन्थाः । येभिः । सखायः । यन्ति । नः । वरेऽयम् । सम् । अर्यमा । सम् । भगः । नः । निनीयात् । सम् । जाःऽपत्यम् । सुऽयमम् । अस्तु । देवाः ॥ १०.८५.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 23
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (देवाः) हे विद्वानों ! (पन्थाः) तुम्हारे बताए मार्ग (अनृक्षराः) कण्टकरहित-बाधारहित (ऋजवः) सरल (सन्तु) हों (येभिः) जिन मार्गों से (नः) हमारे (वरेयं सखायः) यह मेरा वर और उसके सहायक मित्रसम्बन्धी जन (यन्ति) जाते हैं और (नः) हमारा (अर्यमा) आशीर्वाद देनेवाला वृद्धजन (सं निनीयात्) सम्यक् ले जाये (भगः) भाग्यविधाता पुरोहित (सम्) सम्यक् ले जाये (जास्पत्यम्) जायापतिकर्म-सन्तानोत्पादन  (संसुयमम्)  सम्यक् सुनियन्त्रित (अस्तु) होवे ॥२३॥

    भावार्थ

    विद्वान् जन वर वधू को गृहस्थ का ऐसा मार्ग सुझावें, जो बाधा से रहित हो तथा जिससे वर और उसके पारिवारिक जन ठीक चलें। वृद्धजन पुरोहित आशीर्वाद देवें कि सन्तानोत्पत्ति अच्छी हो ॥२३॥

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    विषय

    सुदृढ़ दाम्पत्य का उपदेश।

    भावार्थ

    (नः) हमारे (पन्थाः) मार्ग (अनृक्षराः) कांटों से रहित (सन्तु) हों। और (ऋजवः) सरल धर्मयुक्त हों। (येभिः) जिनसे (सखायः) मित्र, स्नेही, समान वाणी और ज्ञानदृष्टि सहित विद्वान् जन (वरेयम्) श्रेष्ठ पुरुषों से प्रार्थित प्रभु वा श्रेष्ठ फल को यन्ति प्राप्त होते हैं। (नः) हमें (अर्यमा) शत्रुओं का नियन्ता, न्यायकारी और (भगः) सुखदायी, ऐश्वर्यवान् उन मार्गों से (सं निनियात्) उत्तम प्रकार से ले जावे। हे (देवाः) विद्वान् पुरुषो ! (नः) हमारा (जाः-पत्यम्) पति-पत्नी भाव (सुयमम् अस्तु) उत्तम विवाह बन्धन और सुखदायक शुभ इन्द्रियदमन वा संयम सहित हो।

    टिप्पणी

    ऋक्षरः कण्टक उच्यते। वरेयं वरैर्याचितव्यं, वरेण यातव्यं, वरेण्यं अत्र णकारादर्शनम्। श्रेष्ठमिति यावत्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥

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    विषय

    विवाहिता के लिये प्रार्थना का स्वरूप

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र में कहा था कि विवाहिता कन्या के लिये पिता प्रभु से प्रार्थना करें। उस प्रार्थना को स्वरूप यह हो कि हमारी कन्या (अनृक्षरा:) = कण्टकरहित कुटिलता से शून्य (पन्थाः) = मार्ग से चलनेवाली हो। (येभिः) = जिनके कारण (सखायः) = उसके पति के अन्य मित्र भी (वरेयम्) = हमारी अन्य कन्या के वरण के लिये (नः) = हमारे समीप यन्ति गति करते हैं । हमारी विवाहिता कन्या के उत्तम व्यवहार को देखकर दूसरों की भी इच्छा इस रूप में होगी कि हमें भी इसी कुल की कन्या मिल सके तो ठीक है । [२] हम भी यह चाहते हैं कि हमारी कन्या को (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] जितेन्द्रिय (सं भग:) = उत्तम ऐश्वर्यशाली पुरुष (सं भिनीयात्) = सम्यक् शास्त्रविधि के अनुसार ले जानेवाला हो और हे (देवा:) = सब देवो ! इन युवक-युवति का (जास्पत्यम्) = पति-पत्नी भाव (सं सुयमम्) = मिलकर उत्तम शासन व नियमवाला हो। हमारा (जास्पति) = [son-in-lew] धर्मपुत्र अपने जास्पत्य को, धर्मपुत्रत्व को अच्छे प्रकार से निभाये ।

    भावार्थ

    भावार्थ - विवाहित कन्या का व्यवहार इतना उत्तम हो कि अन्य लोग भी हमारे कुल की कन्या को चाहे उन्हें भी हमारे कुल से कन्या के वरण की कामना हो। हमें हमारी कन्याओं के लिये जितेन्द्रिय ऐश्वर्यशाली पति प्राप्त हों ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवाः) हे विद्वांसः ! (पन्थाः) पन्थानो मार्गाः (अनृक्षराः-ऋजवः सन्तु) कण्टकरहिता बाधारहिताः “अनृक्षरा ऋक्षरः कण्टकः” [निरु० ९।३०] सरलाः सन्तु (येभिः-नः-वरेयं सखायः-यन्ति) यैर्मार्गैरस्माकमयं वरस्तत्सहायकाः सखायः सम्बन्धिनो गच्छन्ति (नः-अर्यमा सन्निनीयात्-भगः सम्) अस्माकं वृद्धजनो य आशीर्वादं ददाति “अर्यमेति तमाहुर्यो ददाति” [तै० १।१।२।४] सम्यग्नयेत्-भगो भाग्यविधाता पुरोहितो यः सम्यग्नयेत् (जास्पत्यं संसुयमम्-अस्तु) जायापतिकर्म सन्तानोत्पादनं सम्यक् सुनियन्त्रितं भवतु ॥२३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let our paths be simple, natural and comfortable, free from obstacles, by which our friends may win the goal of their choice. May Aryama, lord of vision, justice and rectitude, and Bhaga, lord of power, prosperity and glory, lead us on to fulfilment. O divinities of nature and humanity, may our married life be happy, noble and fruitful.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानांनी वर-वधूला असा मार्ग सुचवावा, की जो बाधारहित असावा. ज्यामुळे वर व त्यांचे पारिवारिक जन ठीक राहावेत. वृद्धजन पुरोहितांनी संतानोत्पत्ती व्हावी, असा आशीर्वाद द्यावा. ॥२३॥

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