ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 39
पुन॒: पत्नी॑म॒ग्निर॑दा॒दायु॑षा स॒ह वर्च॑सा । दी॒र्घायु॑रस्या॒ यः पति॒र्जीवा॑ति श॒रद॑: श॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठपुन॒रिति॑ । पत्नी॑म् । अ॒ग्निः । अ॒दा॒त् । आयु॑षा । स॒ह । वर्च॑सा । दी॒र्घऽआ॑युः । अ॒स्याः॒ । यः । पतिः॑ । जीवा॑ति । श॒रदः॑ । श॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुन: पत्नीमग्निरदादायुषा सह वर्चसा । दीर्घायुरस्या यः पतिर्जीवाति शरद: शतम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुनरिति । पत्नीम् । अग्निः । अदात् । आयुषा । सह । वर्चसा । दीर्घऽआयुः । अस्याः । यः । पतिः । जीवाति । शरदः । शतम् ॥ १०.८५.३९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 39
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अग्निः) वैवाहिक अग्नि (पत्नीं पुनः) पत्नी-पत्नीभाव को प्राप्त हुई कन्या को पुनः (आयुषा वर्चसा-अदात्) आयु से और तेज सम्पन्न की हुई को देती है, किसके लिये देती है ? यह कहा जाता है (अस्याः-यः पतिः) इसका जो पति (दीर्घायुः शरदः शतं जीवाति) दीर्घायु होता हुआ सौ वर्षों तक जीवित रहे ॥३९॥
भावार्थ
विवाह में अग्नि के सम्पर्क से कन्या-वधू तेज और आयु से सम्पन्न हो जाती है और जो दीर्घायु सौ वर्षों तक जीने के योग्य हो, ऐसे पति के लिये दी जानी चाहिये ॥३९॥
विषय
ऋतुकालानुसार पत्नी का पति से पुनः संसर्ग का उपदेश।
भावार्थ
(अग्निः) अग्नि गुण से युक्त उष्णता वाला धर्म ही (आयुषा वर्चसा सह) दीर्घ आयु और तेज, कान्ति आदि सहित (पत्नीम्) पत्नी को (पुनः अदात्) फिर दे। (अस्याः यः पतिः) इसका जो पालक पति हो वह (दीर्घायुः) दीर्घायु होकर (शरदः शतं जीवाति) सौ वर्ष तक जीवे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
सम्बन्ध के ठीक होने पर 'दीर्घजीवन'
पदार्थ
[१] (अग्निः) = आचार्य, जिसे कि कन्या के माता-पिता ने कन्या के सम्बन्ध का कार्यभार सौंपा था, (पुनः) = फिर (पत्नीम्) = पत्नी को पति के लिये (अदात्) = देता है। वह उस पत्नी को (आयुषा वर्चसा सह) = आयुष्य और वर्चस [शक्ति] के साथ पति के लिये प्राप्त कराता है। पत्नी दीर्घायुष्य व वर्चस्वाली बनती है। [२] (अस्या:) = इस पत्नी का (यः पतिः) = जो पति है वह भी (दीर्घायुः) = दीर्घजीवनवाला होता है और (शतं शरद:) = सौ वर्ष (जीवाति) = जीनेवाला होता है । आचार्य ठीक सम्बन्ध कराके इन पति-पत्नी के दीर्घजीवन का कारण बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- पति-पत्नी के ठीक सम्बन्ध पर इनके दीर्घजीवन का निर्भर है।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्निः पत्नीं पुनः-आयुषा-वर्चसा-अदात्) वैवाहिकाग्निः पत्नीं पत्नीभावं प्राप्ताम् “पत्युर्नो यज्ञसंयोगे” [अष्टा० ४।१।३३] आयुषा वर्चसा सम्पन्नां तां वधूं पुनः प्रयच्छति कस्मै प्रयच्छतीत्युच्यते (अस्याः-यः-पतिः-दीर्घायुः शरदः शतम्-जीवाति) अस्याः पतिः स दीर्घायुः सन् शतवर्षाणि जीव्यात् ॥३९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni then gives Surya, now a wife, when the wedding ceremony is complete, to the husband along with her health and age, honour and lustre of life with the blessing: Long live the man who is her husband for a full hundred years.
मराठी (1)
भावार्थ
विवाहात अग्नीच्या संपर्काने कन्या-वधू तेज व आयूने संपन्न होते व जो दीर्घायू शंभर वर्षांपर्यंत जीवंत राहण्यायोग्य असेल अशा पतीला ती देण्यात यावी. ॥३९॥
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