ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 28
ऋषिः - सूर्या सावित्री
देवता - नृर्णा विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
नी॒ल॒लो॒हि॒तं भ॑वति कृ॒त्यास॒क्तिर्व्य॑ज्यते । एध॑न्ते अस्या ज्ञा॒तय॒: पति॑र्ब॒न्धेषु॑ बध्यते ॥
स्वर सहित पद पाठनी॒ल॒ऽलो॒हि॒तम् । भ॒व॒ति॒ । कृ॒त्या । आ॒स॒क्तिः । वि । अ॒ज्य॒ते॒ । एध॑न्ते । अ॒स्याः॒ । ज्ञा॒तयः॑ । पतिः॑ । ब॒न्धेषु॑ । ब॒ध्य॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नीललोहितं भवति कृत्यासक्तिर्व्यज्यते । एधन्ते अस्या ज्ञातय: पतिर्बन्धेषु बध्यते ॥
स्वर रहित पद पाठनीलऽलोहितम् । भवति । कृत्या । आसक्तिः । वि । अज्यते । एधन्ते । अस्याः । ज्ञातयः । पतिः । बन्धेषु । बध्यते ॥ १०.८५.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 28
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(नीललोहितं भवति) जब नीलवर्णयुक्त रक्त-रज होता है, कन्या रजस्वला होती है, तब (आसक्तिः) पतिकामवासना (कृत्या व्यज्यते) क्रिया व्यक्त सफल हो जाती है (अस्याः) इस वधू की (ज्ञातयः-वर्धन्ते) सन्ततियाँ बढ़ती हैं (पतिः) इसका पति (बन्धेषु) कर्तव्यबन्धनों में (बध्यते) बन्ध जाता है ॥२८॥
भावार्थ
वधू के रजस्वला हो जाने पर पति के प्रति इसकी कामवासना जाग जाती है, पुनः सन्तानों का उत्पन्न होना चालू हो जाता है, फिर पति भी सन्तानों के पालन कर्तव्यबन्धनों में बन्ध जाता है ॥२८॥
विषय
यज्ञ द्वारा पति-पत्नी का प्रेम-बन्धन और संसारिक बन्धन का उपदेश। पक्षान्तर में—स्त्री पुरुष के परस्पर सम्बन्धित होने का काल स्त्री के रजोदर्शन के अनन्तर ही है।
भावार्थ
(नील-लोहितम्) नीले धूम वाला लोहित वर्ण का अग्निमय यज्ञ (भवति) होता है। तब (कृत्या) करने योग्य (आसक्तिः) परस्पर प्रेमभाव (वि अज्यते) विशेष रूप से प्रकट होता है। उस समय (अस्याः) इस कन्या के (ज्ञातयः) बन्धुवर्ग (एधन्ते) वृद्धि को प्राप्त होते हैं और (पतिः) पति, पुरुष (बन्धेषु) सांसारिक प्रेम और कर्त्तव्य के बन्धनों में (बध्यते) बंध जाता है। (२) अथवा—(नील-लोहितम् भवति) नील रंग मिश्रित रक्त आर्त्तव प्रवृत्त होता है उसके अनन्तर (कृत्या) गृहस्थ के उचित पति-प्रेम कार्य में (आसक्तिः) स्त्री की प्रवृत्ति (व्यज्यते) पति के प्रति प्रकट होनी उचित हैं। उस समय उसके सम्बन्धी खुश होते हैं। और पति गृहस्थ-धर्मों में बंध जाता है। ऋतु होने के अनन्तर ही स्नात होकर कन्या पति का वरण करे, उन्हीं तिथियों में विवाह हो और श्वशुर गृह में ही गर्भाधान हो, ऐसा ऋषि दयानन्द ने लिखा है। (संस्कारविधि विवाहप्रकरण)।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्या सावित्री। देवता-१–५ सोमः। ६-१६ सूर्याविवाहः। १७ देवाः। १८ सोमार्कौ। १९ चन्द्रमाः। २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशीः प्रायाः। २९, ३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा। ३१ यक्ष्मनाशिनी दम्पत्योः। ३२–४७ सूर्या॥ छन्द:- १, ३, ८, ११, २५, २८, ३२, ३३, ३८, ४१, ४५ निचृदनुष्टुप्। २, ४, ५, ९, ३०, ३१, ३५, ३९, ४६, ४७ अनुष्टुपू। ६, १०, १३, १६, १७, २९, ४२ विराडनुष्टुप्। ७, १२, १५, २२ पादनिचृदनुष्टुप्। ४० भुरिगनुष्टुप्। १४, २०, २४, २६, २७ निचृत् त्रिष्टुप्। १९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। २१, ४४ विराट् त्रिष्टुप्। २३, २७, ३६ त्रिष्टुप्। १८ पादनिचृज्जगती। ४३ निचृज्जगती। ३४ उरोबृहती॥
विषय
अनुराग तथा क्रियाशीलता
पदार्थ
[१] [पूर्वं नीलंपश्चात् लोहितं इति नील लोहितं] ब्रह्मचर्याश्रम में जो हृदय सांसारिक रंगों में न रंगा जाकर बिल्कुल नीरंग [=कृष्ण ] - सा था अब गृहस्थ में आने पर वह (लोहित) = प्रेम की कुछ लालिमावाला (भवति) = होता है । 'अनुराग' शब्द कुछ लालिमा के भाव को व्यक्त कर रहा है । इस युवति का हृदय अब बिल्कुल प्रेयशून्य, ठण्डा-ही-ठण्डा नहीं है। ऐसा होने पर तो यह पति के जीवन को बड़ी उदासवाला बना देती । यह पति के प्रेम की पूर्ण प्रतिक्रियावाली होती है । [२] इसके जीवन में (कृत्यासक्तिः) = कर्मों के प्रति रुचि (व्यज्यते) = प्रकट होती है। यह कर्मों में बड़ी दिलचस्पी लेती है, अकर्मण्यवाला इसका जीवन नहीं। [३] इन दो बातों के होने पर, अर्थात् प्रेमपूर्ण हृदय तथा कर्मों में रुचिवाली जब यह युवति होती है तो (अस्याः) = इसके (ज्ञातयः) = सब रिश्तेदार-सम्बन्धी राधन्ते बढ़ते हैं, अर्थात् सबको बड़ी प्रसन्नता होती है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह कि (पतिः) = इसके पति (बन्धेषु बध्यते) = स्नेहपाशों से इसके साथ बद्ध हो जाते हैं। अर्थात् पति को पत्नी पर पूर्ण प्रेम होता है।
भावार्थ
भावार्थ- वधू प्रेममय हृदय से तथा अपनी क्रियाशीलता से सभी को अपनानेवाली होती हैऔर पति के पूर्ण प्रेम को प्राप्त कर पाती है ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नीललोहितं भवति) यदा नीलवर्णयुक्तं रक्तं रजो भवति कन्या रजस्वला भवति, तदा (आसक्तिः कृत्या व्यज्यते) पतिकामवासना क्रिया सफला भवति (अस्याः-ज्ञातयः-वर्धन्ते) अस्या वध्वाः-ज्ञातयः सन्ततयो वर्धन्ते, तदैव (पतिः-बन्धेषु बध्यते) पतिर्बन्धनेषु-कर्तव्यबन्धनेषु बध्यते ॥२८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Then the blood grows dark and red, love and desire vibrates for fulfilment, the near kinsmen of this bride swell with hope and expectation, and the husband is bound in new responsibilities.
मराठी (1)
भावार्थ
वधू रजस्वला झाल्यानंतर पतीबद्दल कामवासना जागृत होते. नंतर संताननिर्मिती सुरू होते. मग पतीही संतानांच्या पालन कर्तव्यबंधनात बांधला जातो. ॥२८॥
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