Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 27 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 13
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - आदित्याः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शुचि॑र॒पः सू॒यव॑सा॒ अद॑ब्ध॒ उप॑ क्षेति वृ॒द्धव॑याः सु॒वीरः॑। नकि॒ष्टं घ्न॒न्त्यन्ति॑तो॒ न दू॒राद्य आ॑दि॒त्यानां॒ भव॑ति॒ प्रणी॑तौ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचिः॑ । अ॒पः । सु॒ऽयव॑साः । अद॑ब्धः । उप॑ । क्षे॒ति॒ । वृ॒द्धऽव॑याः । सु॒ऽवीरः॑ । नकिः॑ । तम् । घ्न॒न्ति॒ । अन्ति॑तः । न । दू॒रात् । यः । आ॒दि॒त्याना॑म् । भव॑ति । प्रऽनी॑तौ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिरपः सूयवसा अदब्ध उप क्षेति वृद्धवयाः सुवीरः। नकिष्टं घ्नन्त्यन्तितो न दूराद्य आदित्यानां भवति प्रणीतौ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिः। अपः। सुऽयवसाः। अदब्धः। उप। क्षेति। वृद्धऽवयाः। सुऽवीरः। नकिः। तम्। घ्नन्ति। अन्तितः। न। दूरात्। यः। आदित्यानाम्। भवति। प्रऽनीतौ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 13
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः कीदृशो राजा भवेदित्याह।

    अन्वयः

    यः शुचिरदब्धो राजा सुयवसा अप उपक्षेति। यो वृद्धवयाः सुवीर आदित्यानां प्रणीतौ वर्त्तमानो भवति तं नकिरन्तितो न दूरात् केऽपि घ्नन्ति ॥१३॥

    पदार्थः

    (शुचिः) पवित्रः (अपः) जलानि (सूयवसाः) शोभनानि यवसानि याभ्यस्ताः। अत्र संहितायामिति दीर्घः (अदब्धः) अहिंसितः (उप) (क्षेति) उपनिवसति (वृद्धवयाः) वृद्धं वयो जीवनं यस्य सः (सुवीरः) शोभना वीरा यस्य सः (नकिः)(तम्) (घ्नन्ति) हन्ति (अन्तितः) समीपतः (नः) (दूरात्) (यः) (आदित्यानाम्) पूर्णब्रह्मचर्यविद्यावताम् (भवति) (प्रणीतौ) प्रकृष्टायां नीतौ ॥१३॥

    भावार्थः

    यः पवित्राचरणो हिंसादिदोषरहितोऽलंसामग्रीक: चिरञ्जीवी विदुषां शासने सदा वर्त्तते तस्य समीपस्था दूरस्थाश्च शत्रवः पराजयं कर्त्तुं न शक्नुवन्ति ॥१३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर कैसा राजा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (यः) जो शुचिः पवित्र (अदब्धः) हिंसा अर्थात् किसी से दुःख को न प्राप्त हुआ राजा (सुयवसाः) जिनसे अच्छे जौ आदि अन्न उत्पन्न हों उन (पय:) जलों के (उप,क्षेति) निकट वसता है जो (वृद्धवयाः) बड़े जीवनवाला (सुवीरः) सुन्दर वीर पुरुषों से युक्त (आदित्यानाम्) पूर्ण ब्रह्मचर्य और विद्यावाले पुरुषों की (प्रणीतौ) उत्तम नीति में वर्त्तमान (भवति) होता है (तम्) उसको (नकिः) नहीं कोई (अन्तितः) समीप से (न)(दूरात्) दूर से कोई (घ्रन्ति) मार सकते हैं ॥१३॥

    भावार्थ

    जो पवित्र आचरणवाला हिंसादि दोषों से रहित पूर्ण सामग्रीवाला दीर्घजीवी विद्वानों की रक्षा में सदा रहता, उसका समीपस्थ और दूरस्थ शत्रु लोग पराजय कदापि नहीं कर सकते ॥१३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    जल व अन्न

    पदार्थ

    १. (शुचिः) = गतमन्त्र में वर्णित पवित्र जीवनवाला यह व्यक्ति (अपः) = जलों को तथा (सूयवसा:) = शोभन सस्यों को (अदब्धः) = अहिंसित होता हुआ (उपक्षेति) = खाकर जीवन धारण करता है [उप जीवति]। जलों और अन्नों का ही सेवन करता है उनका भी सेवन मात्रा में ही करता है ताकि वे इसे हिंसित करनेवाले न हों। इस प्रकार यह (वृद्धवयाः) = दीर्घ व उत्कृष्ट जीवनवाला बनता है। (सुवीरः) = उत्तम वीर होता है । २. (यः) = जो भी इस प्रकार (आदित्यानाम्) = देवों के (प्रणीतौ) = प्रणयन में होता है, अर्थात् देवों की तरह ही (हविर्भुक्) = होता है न कि पिशाच, (तम्) = उसको (नकिः अन्तितः) = न तो समीप से और (न दूरात्) = न दूर से (घ्नन्ति) = शत्रु मारनेवाले होते हैं। न आन्तरशत्रु उसे मार पाते हैं और न ही बाह्य-शत्रु ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मनुष्य देवों का अनुकरण करता हुआ जल पीये और अन्न खाये तो वह शत्रुओं के आक्रमण से बचा रहता है। मांसभोजन ही काम, क्रोध, लोभादि को जन्म देता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जो ( शुचिः ) शुद्ध, पवित्र आचारवान् ( अदब्धः ) कभी हिंसित और हिंसक न होकर ( सुयवसाः ) उत्तम अन्नोत्पादक ( अपः ) जलों को ( उप क्षेति ) सेवन करता है ( सः ) वह ( वृद्धवयाः ) दीर्घजीवी ( सुवीरः ) उत्तम वीर्यवान्, उत्तम वीरों और पुत्रों सहित रहता है। जो ( आदित्यानां ) तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के ( प्रणीतौ ) उत्तम शासन में ( भवति ) रहता है ( तं ) उसको शत्रुगण और विपत्तियां भी ( नकिः अन्तितः ) न समीप से ( न दूरात् ) और न दूर से ही ( घ्नन्ति ) नाश कर सकती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः॥ अदित्यो देवता॥ छन्दः- १,३, ६,१३,१४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ८, १२, १७ त्रिष्टुप् । ११, १६ विराट् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ९, १० स्वराट् पङ्क्तिः॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पवित्र आचरण करणारा, हिंसा इत्यादी दोषांनी रहित पूर्ण सामग्रीयुक्त, दीर्घजीवी, विद्वानांचे सदैव रक्षण करणारा असतो, कोणताही शत्रू त्याचा कधी पराजय करू शकत नाही. ॥ १३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The ruler, pure at heart, courageous and indomitable, who abides by the values, policies and guidance of Adityas, men of light, truth and justice, rules a long age, blest with noble children and followed by brave warriors, well-provided with plenty of food and water and doing noble acts of fame. None can hurt or damage or destroy him or his dominion either from far or near at hand.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of an ideal ruler are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The ruler who is pious, and not annoying to any one settles near the irrigation resources, where a good crop of food grains can be harvested, He enjoys longevity and follows. the policy of heroic and handsome persons, who follow strict celibacy and acquire knowledge. No body can hurt or kill him from adjacent or distant places.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The ruler with clean conduct and character, never annoying or killing anyone without justification and equipped with all resources, can never be defeated by the adjacent or distant enemies.

    Foot Notes

    (सूयवसा:) शोभनानि यवसानि याभ्यस्ताः = Where a good crop can be harvested of food grains like barley. (वृद्धवयाः) वृद्धं वयो जीवनं यस्य स = Enjoying longevity. (प्रणीतौ ) प्रकृष्टायां नीतौ = In ideal policy.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top