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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 15
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - आदित्याः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒भे अ॑स्मै पीपयतः समी॒ची दि॒वो वृ॒ष्टिं सु॒भगो॒ नाम॒ पुष्य॑न्। उ॒भा क्षया॑वा॒जय॑न्याति पृ॒त्सूभावर्धौ॑ भवतः सा॒धू अ॑स्मै॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒भे इति॑ । अ॒स्मै॒ । पी॒प॒य॒तः॒ । स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची । दि॒वः । वृ॒ष्टिम् । सु॒ऽभगः॑ । नाम॑ । पुष्य॑न् । उ॒भा । क्षयौ॑ । आ॒ऽजय॑न् । या॒ति॒ । पृ॒त्ऽसु । उ॒भौ । अर्धौ॑ । भ॒व॒तः॒ । सा॒धू इति॑ । अ॒स्मै॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभे अस्मै पीपयतः समीची दिवो वृष्टिं सुभगो नाम पुष्यन्। उभा क्षयावाजयन्याति पृत्सूभावर्धौ भवतः साधू अस्मै॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उभे इति। अस्मै। पीपयतः। समीची इति सम्ऽईची। दिवः। वृष्टिम्। सुऽभगः। नाम। पुष्यन्। उभा। क्षयौ। आऽजयन्। याति। पृत्ऽसु। उभौ। अर्धौ। भवतः। साधू इति। अस्मै॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 15
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    यथा समीची सुभगश्च दिवो वृष्टिं कुरुतो नाम पुष्यंस्तथाऽस्मानुभे पीपयतः। उभा क्षयावुभावर्द्धावस्मै साधू भवतस्तौ पृत्सु विजयमानौ स्याताम्। तत्संग्याजयन् सुखं याति ॥१५॥

    पदार्थः

    (उभे) पुरुषः स्त्री च (अस्मै) राष्ट्राय (पीपयतः) वर्द्धयतः (समीची) या दीप्तिं सम्यगञ्चति सा (दिवः) दिव्यादाकाशात् (वृष्टिम्) (सुभगः) शोभनैश्वर्यः (नाम) जलम् (पुष्यन्) पुष्यन्तौ। अत्र विभक्तिलुक् (उभा) उभौ (क्षयौ) निवसन्तौ (आजयन्) समन्ताद्विजयमानः (याति) गच्छति (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (उभौ) (अर्द्धौ) वर्द्धकौ (भवतः) (साधू) शुभचरित्रस्थौ (अस्मै) ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्त्रीपुरुषाः सूर्यदीप्तिर्जगत्वत्सर्वं राज्यं पोषयेयुः। शुभचरित्राश्च स्युस्ते न्यायाधीशत्वमर्हन्ति ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जैसे (समीची) जो दीप्ति को सम्यक् प्राप्त होती वह स्त्री और (सुभगः) शोभन ऐश्वर्यवाला राजा (दिवः) दिव्य शुद्ध आकाश से (वृष्टिम्) यज्ञादि द्वारा वर्षा कराते (नाम) जल को (पुष्यन्) पुष्ट करते हुए वैसे (अस्मै) इस राज्य के लिये (उभे) दोनों राजा-रानी (पीपयतः) उन्नति करते हैं (उभा) दोनों (क्षयौ) निवास करते हुए (अर्द्धौ) राज्य को समृद्ध करनेवाले (अस्मै) इस राज्य के लिये (साधू) शुभ चरित्र में स्थित (भवतः) होवें वे (पृत्सु) सङ्ग्रामों में विजय करनेवाले होवें, उन दोनों का सङ्गी (आ,जयन्) विजय करता हुआ सुखको (याति) प्राप्त होता है ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री-पुरुष सूर्यदीप्ति जगत् को जैसे, वैसे सब राज्य को पुष्ट करें और सुन्दर चरित्रोंवाले हों, वे न्यायाधीशपन को प्राप्त होते हैं ॥१५॥

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    विषय

    सौभाग्यशाली

    पदार्थ

    १. (अस्मै) = इस प्रकाशमय जीवनवाले के लिए (उभे) = दोनों (समीची) = संगत हुए हुए अर्थात् एक-दूसरे के पूरक होते हुए द्युलोक और पृथ्वीलोक पीपयतः आप्यायन वर्धन करनेवाले होते हैं। मस्तिष्करूप द्युलोक इसे ज्ञान से बढ़ाता है और शरीररूप पृथ्वीलोक इसे दृढ़ता व शक्ति से पुष्ट करता है। यह (सुभगः) = उत्तम भाग्यवाला पुरुष (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक से (वृष्टिम्) = ज्ञान की वर्षा को (नाम) = निश्चय से (पुष्यन्) = अपने में प्राप्त [Possess] करनेवाला होता है । २. यह व्यक्ति (पृत्सु) = अध्यात्म-संग्रामों में चलता हुआ (उभौ क्षयौ) = दोनों लोकों को– द्युलोक व पृथिवीलोक को–मस्तिष्क व शरीर को (आजयन्) = पूर्णरूप से जीतता हुआ (याति) = गति करता है। विजयी बनकर जीवनयात्रा में आगे बढ़ता है। (अस्मै) = इसके लिए (उभौ अर्धीये) = दोनों आधे-आधे लोक साधू (भवतः) = इसके स्वास्थ्य को सिद्ध करनेवाले होते हैं। शरीर की शक्ति के बिना मस्तिष्क अधूरा है, मस्तिष्क के बिना शक्ति अधूरी है। ये दोनों अलग-अलग अधूरे हैं। मिलकर एक दूसरे की पूर्ति करनेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सौभाग्यशाली वह है जिसके जीवन में द्युलोक व पृथिवीलोक का मेल होता है । 'ज्ञान' शक्ति का पूरक है, 'शक्ति' ज्ञान की। दोनों मिलकर इसके जीवन को पूर्ण बनाते हैं ।

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    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अस्मै ) उस राजा के लिये ( उभे ) शासकवर्ग और शास्यवर्ग या स्त्री और पुरुष दोनों (समीची) अच्छी तरह एक दूसरे को प्राप्त होकर (पीपयतः) बढ़ाते हैं । (सुभगः) उत्तम ऐश्वर्यवान् सूर्य जिस प्रकार ( दिवः वृष्टिं नाम पुष्यति ) आकाश से वृष्टि को अधिक प्रदान करके सब अन्न को पुष्ट करता है इसी प्रकार राजा भी (सुभगः) उत्तम ऐश्वर्यवान् होकर ( दिवः ) ज्ञानवान् पुरुषों से ( नाम ) उत्तम कीर्ति ( वृष्टिं ) सुख वृष्टि को प्रदान करता और प्रजा को पुष्ट करता है। वह ( उभौ क्षयौ ) अपने आश्रय भूत राजवर्ग और प्रजावर्ग दोनों गृहों को या स्वपक्ष और परपक्ष दोनों का ( पृत्सु ) संग्रामों में ( आ जयन् ) विजय करता हुआ ( याति ) प्रयाण करता है। और ( उभौ ) दोनों ही राजा, प्रजावर्ग या स्त्री पुरुष वर्ग ( अर्धौ ) समृद्ध होकर ( अस्मै ) इसके लिये ( साधु ) उत्तम कर्म साधने वाले ( भवतः ) होते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः॥ अदित्यो देवता॥ छन्दः- १,३, ६,१३,१४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ८, १२, १७ त्रिष्टुप् । ११, १६ विराट् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ९, १० स्वराट् पङ्क्तिः॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्याचे तेज जसे जगाला प्रकाशित करते, तसे जे स्त्री-पुरुष राज्याचे पोषण करतात व उत्तम चरित्राचे असतात ते न्यायाधीश बनतात. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Both the enlightened woman and the noble husband, the people and the noble ruler, conjoined in unison grow together for the sake of this Rashtra, the great social order of humanity, augmenting through yajna the showers of rain from heaven. Both live together and move forward, winning victories in the battles of life. Both are indispensable for the social order, complementing each other like two halves of a sphere in the interest of progress and prosperity for the sake of the family and the nation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The merits of ideal State officials are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    A shining wife of State official or queen and the bright glorious ruler (State official) preform the Yajnas (non-sacrificial ritual acts), which purify the clouds and ultimately downpour qualitative rain-water and thus bring their kingdom towards progress. The couple thus bring prosperity and noble character in their kingdom. They both score victory and their associate achieves all-round happiness.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the sunshine makes world brilliant, the ideal couple should endeavor to make their kingdom strong and of noble character as soon their reputation as a judge is established.

    Foot Notes

    (अस्मै) राष्ट्राय = For the kingdom. (नाम) जलम् = Water. (आजयन् ) समन्ताद्विजयमानः = Scoring victory. (साधू) शुभचरित्रस्थो == Of noble character.

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